ॠषि कार्य को आगे बढाने हेतु आवाह्न
ज्योतिषीय परिवर्तन के क्रमबध्य अध्ययन की आवश्यकता हैसूर्य एक साल में 59 विकला आगे बढ़ता है। ध्यारन दीजिए कि अगले साल से मकर सक्रांति भी 14 के बजाय 15 जनवरी को होगी। सभी ग्रहों की सूर्य के चारों ओर की चाल के अतिरिक्ता पूरे सौर मण्डाल की चाल भी है। सूर्य आकाशगंगा के चक्कभर लगा रहा है। कुल 61 साल और 3 महीने में यह एक अंश पीछे रह जाता है। सूर्य की धीमी होती गति के कारण मौसमी परिवर्तन हो सकते हैं।
अब यह परिवर्तन इतने लम्बेे अंतराल में धीरे-धीरे होता है कि ज्यो तिषियों की एक या दो पीढ़ी इसे स्पकष्टि रूप से महसूस नहीं कर पाती। इस कारण ये सीधे-सीधे गणनाओं का हिस्सात नहीं बन पाती। पूर्व में हो सकता है ऐसा रहा हो कि एक ही ज्योनतिष स्कूसल के विद्यार्थियों की कई पीढि़यां इस विषय पर विश्लेतषण करती रहीं हों लेकिन वर्तमान में ऐसा कोई घराना नहीं है जो कई पीढि़यों तक ऐसा एक ही विषय लेकर विश्लेषण करे। सो एक ज्यो तिषी के व्यघक्तिगत विश्ले़षण से जितना हासिल हो सकता है उतना ही हो पाता है। इस परिवर्तन के क्रमबध्य अध्ययन की आवश्यकता है
पहली जनवरी के आसपास पृथ्वी का उत्तरी गोलार्द्ध सूर्य के निकटतम होता है और पहली जुलाई के आसपास सबसे दूर। इन दोनों स्थितियों में लगभग 40 लाख किमी का अंतर होता है परंतु इसके कारण पृथ्वी को सूर्य से प्राप्त होने वाली ऊर्जा की मात्रा में केवल 7 प्रतिशत की ही कमी होती है।जिसके परिणाम स्वरूप मौसम में इतना बडा परिर्वतन होता है इसी तरह अन्य ग्रहों की दूरियों में भी समय -समय पर परिर्वतन होता है जिसके गंभीर परिर्वतन पृथ्वी पर होते हैं जिस पर गहन शोध की आवश्यकता है
इसके अलावा पृथ्वी का झुकाव ०.468 विकला प्रति वर्ष के हिसाब से कम हो रहा है I किन्तु वर्तमान में झुकाव मध्यमान यानि 23.45 डिग्री है I महर्षि परासर के समय में पृथ्वी का झुकावलगभग 40 डिग्री था जिससे ज्योतिष के सिद्धांत जो 5500 वर्ष पूर्व महर्षि परासर द्वारा बनाये गये थे उसमे सुधार की आवश्यकता है जिस पर गहन शोध कार्य चल रहा है यदि आप चाहे तो सहयोग कर सकते है —