मेरे एक चिकित्सक साथी मित्र ने प्रश्न किया है कि “जो लोग सनातन धर्म को नहीं मानते हैं, क्या उनके ऊपर भी ग्रहों का प्रभाव पड़ता है और यदि पड़ता है तो वह लोग ग्रहों की शांति के लिए उपाय उपचार क्यों नहीं करते हैं ?”
इस प्रश्न के उत्तर में मैं यह कहना चाहता हूं कि सनातन धर्म ही विश्व में एक मात्र ऐसा धर्म है जो अनेक महर्षियों और विद्वानों के सहयोग से विकसित हुआ है | शेष सभी धर्म किसी व्यक्ति विशेष के द्वारा विशेष प्रयोजन के लिए निर्मित किए गए थे |
जिन व्यक्ति विशेष ने किसी विशेष प्रयोजन के लिए कोई विशेष धर्म को स्थापित किया था उन्हें न तो ज्योतिष की जानकारी थी और न ही उन्होंने उस पर कोई सकारात्मक या नकारात्मक टिप्पणी की है | क्योंकि मूलतः वह लोग समाज सुधारक थे जो उस समय अपने समाज की विकृतियों को समाप्त करने के लिए या विकृत शासकों को नष्ट करने के लिए एक नये जीवन शैली या जीवन परंपरा की उन्होंने शुरुआत की |
जिसे बाद में उनकी विचारधारा की मार्केटिंग करने वालों ने उसे एक धर्म का नाम दे दिया और उसके द्वारा पूरी दुनिया में शोषण प्रारंभ कर दिया | जो की मूल धर्म के संस्थापक की भावनाओं के बिल्कुल विपरीत है |
अब रही ज्योतिष की बात कोई भी व्यक्ति जो इस मानव शरीर में है या 84 लाख योनियों में से किसी अन्य शरीर में है उसके ऊपर निश्चित रूप से कर्म कारण व्यवस्था के तहत ग्रहों का प्रभाव पड़ता है, अगर ग्रहों का प्रभाव सनातन धर्म को न मानने वाले के ऊपर नहीं पड़ता है तो सनातन धर्म से इतर धर्म को मानने वालों के साथ “हानि-लाभ, जीवन-मृत्यु, यश-अपयश” का भोग क्यों होता है |
यह 6 व्यवस्था ईश्वरीय विधान के आधीन हैं | इस पर किसी भी व्यक्ति का कोई भी नियंत्रण नहीं है | इस व्यवस्था का भोग प्रत्येक जीव को भोगना ही पड़ेगा है | यह प्रकृति द्वारा स्थापित की गई कर्म की व्यवस्था है इससे इतर कोई भी नहीं जा सकता, वह चाहे सनातन धर्म को मानने वाला हो या न मानने वाला हो | बल्कि कहा तो यह भी जाएगा कि 84 लाख योनियों में जो जीव हैं उसके अतिरिक्त भी इस सृष्टि में इंद्रियों से गोचर और बुद्धि की समझ के अंदर जो भी कुछ है वह सभी ग्रहों की गति और उसके प्रभाव से नियंत्रित है |
बड़े साम्राज्य बनते हैं और नष्ट हो जाते हैं | बड़े बड़े व्यवसाई घराने, विद्वानों के घराने, यशस्वीयों के घराने, तेजस्वीयों के घराने, काल के प्रवाह में समय के साथ उदित होते हैं और अस्त हो जाते हैं | इससे तो वह ईश्वर भी अछूता नहीं है | जिसने मानव शरीर धारण किया उसे ग्रहों के माध्यम से कर्म व्यवस्था का भोग भोगना ही पड़ेगा |
उदाहरण के लिए आप देखिए कि भगवान श्री राम के जीवन खंड में जिस तरह की अलग-अलग घटनाएं घटी जब भगवान श्री कृष्ण के रूप में विष्णु का अगला अवतार हुआ तो सारी घटनाएं उसके विपरीत घटी | जैसे भगवान श्री राम के जन्म की लालसा उनके माता-पिता में अत्यंत प्रबल थी, ठीक इसके विपरीत भगवान श्री कृष्ण के माता-पिता कंस के कारावास में कभी यह नहीं चाहते थे कि उनके आठवीं संतान के रूप में कृष्ण का जन्म हो |
भगवान श्री राम की बाल अवस्था राज महल में बड़ी ही सुख सुविधाओं में बीती ठीक इसके विपरीत भगवान श्रीकृष्ण की बाल अवस्था गायों को चराने और असुरों से संघर्ष करते हुए बड़ी ही कष्टप्रद अवस्था में जंगल में बीती | भगवान श्री राम अपने माता पिता के निर्देश पर जंगल में गये जहां पर अनेकों-अनेक लोगों की मदद मिली, ठीक इसके विपरीत भगवान श्री कृष्ण को अपने शत्रुओं से बचने के लिए मथुरा छोड़कर द्वारिका जाना पड़ा | भगवान श्री राम एक असुर से युद्ध किये जबकि भगवान श्रीकृष्ण को अपने ही कुल परिवार में युद्ध का संचालन करना पड़ा
| भगवान श्री राम समुद्र के उस पार जाकर असुरों से लड़े और भगवान श्रीकृष्ण को द्वारिका से समुद्र के इस पार आकर अपने ही परिवार में युद्ध का मार्गदर्शन किये | भगवान श्री राम के छोटे भाई लक्ष्मण सदैव उनके साथ हर सुख दुख और युद्ध में रहे जबकि इसके विपरीत भगवान श्री कृष्ण के बड़े भाई बलदाऊ महाभारत के समय भगवान श्री कृष्ण का साथ छोड़कर तीर्थ यात्रा पर चले गये |
भगवान श्री राम के मानव शरीर में न रहने के बाद उनके उत्तराधिकारी लव और कुश ने भगवान श्री राम द्वारा स्थापित साम्राज्य का भोग किया किंतु भगवान श्री कृष्ण के विलीन होने के साथ ही उनके कुल परिवार के समस्त लोग विलीन हो गये और द्वारिका भी समुद्र में समा गई |
इस तरह यह सिद्ध होता है कि कोई भी व्यक्ति, वह किसी भी धर्म को मानने वाला हो या साक्षात ईश्वर ही क्यों न हो, उसने यदि मानव शरीर धारण किया है, तो उसे ग्रहों के प्रभावों को भोगना ही पड़ेगा यही काल की व्यवस्था है |