शंकराचार्य के चार मठों का इतिहास : Yogesh Mishra

जब भारत सहित सम्पूर्ण एशिया में बौद्ध का प्रभाव इतना अधिक बढ़ गया कि सनातन धर्म विलुप्त होने लगा तब प्राचीन भारतीय सनातन परम्परा के विकास और हिंदू धर्म के प्रचार-प्रसार के लिये आदि गुरु शंकराचार्य का महान योगदान नाकारा नहीं जा सकता है ! उन्होंने भारतीय सनातन परम्परा को पूरे देश में फैलाने के लिये भारत के चारों कोनों में चार शंकराचार्य मठों की स्थापना की थी और इन मठों के मध्य से बौद्ध धर्म को उखाड़ फेंका !

शंकराचार्य आम तौर पर अद्वैत परम्परा के मठों के मुखिया के लिये प्रयोग की जाने वाली उपाधि है ! शंकराचार्य हिन्दू धर्म में सर्वोच्च धर्म गुरु का पद है जो कि बौद्ध धर्म में दलाईलामा एवं ईसाई धर्म में पोप के समकक्ष है !

इस पद की परम्परा आदि गुरु शंकराचार्य ने आरम्भ की ! यह उपाधि आदि शंकराचार्य, जो कि एक हिन्दू दार्शनिक एवं धर्मगुरु थे एवं जिन्हें हिन्दुत्व के सबसे महान प्रतिनिधियों में से एक के तौर पर जाना जाता है, के नाम पर है ! उन्हें जगद्गुरु के तौर पर सम्मान प्राप्त है एक उपाधि जो कि पहले केवल भगवान कृष्ण को ही प्राप्त थी !

उन्होंने सनातन धर्म की प्रतिष्ठा हेतु भारत के चार क्षेत्रों में चार मठ स्थापित किये तथा शंकराचार्य पद की स्थापना करके उन पर अपने चार प्रमुख शिष्यों को आसीन किया ! तबसे इन चारों मठों में शंकराचार्य पद की परम्परा चली आ रही है ! यह पद अत्यंत गौरवमयी माना जाता है !

यह चारों मठ आज भी चार शंकराचार्यों के नेतृत्व में सनातन परम्परा का प्रचार व प्रसार कर रहे हैं ! आइये जानते हैं आदिशंकराचार्य द्वारा स्थापित इन मठों के बारे में !

श्रृंगेरी मठ: श्रृंगेरी शारदा पीठ भारत के दक्षिण में रामेश्वरम् में स्थित है ! श्रृंगेरी मठ कर्नाटक के सबसे प्रसिद्ध मठों में से एक है ! इसके अलावा कर्नाटक में रामचन्द्रपुर मठ भी प्रसिद्ध है ! इसके तहत दीक्षा लेने वाले संन्यासियों के नाम के बाद सरस्वती, भारती, पुरी सम्प्रदाय नाम विशेषण लगाया जाता है जिससे उन्हें उस संप्रदाय का संन्यासी माना जाता है ! इस मठ का महावाक्य ‘अहं ब्रह्मास्मि’ है, मठ के तहत ‘यजुर्वेद’ को रखा गया है ! इसके पहले मठाधीश आचार्य सुरेश्वर थे !

गोवर्धन मठ: गोवर्धन मठ उड़ीसा के पुरी में है ! गोवर्धन मठ का संबंध भगवान जगन्नाथ मंदिर से है ! बिहार से लेकर राजमुंद्री तक और उड़ीसा से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक का भाग इस मठ के अंतर्गत आता है ! गोवर्द्धन मठ के तहत दीक्षा लेने वाले संन्यासियों के नाम के बाद ‘आरण्य’ सम्प्रदाय नाम विशेषण लगाया जाता है जिससे उन्हें उस संप्रदाय का संन्यासी माना जाता है ! इस मठ का महावाक्य है ‘प्रज्ञानं ब्रह्म’ और इस मठ के तहत ‘ऋग्वेद’ को रखा गया है !

शारदा मठ: द्वारका मठ को शारदा मठ के नाम से भी जाना जाता है ! यह मठ गुजरात में द्वारकाधाम में है ! इसके तहत दीक्षा लेने वाले संन्यासियों के नाम के बाद ‘तीर्थ’ और ‘आश्रम’ सम्प्रदाय नाम विशेषण लगाया जाता है जिससे उन्हें उस संप्रदाय का संन्यासी माना जाता है ! इस मठ का महावाक्य है ‘तत्त्वमसि’ और इसमें ‘सामवेद’ को रखा गया है ! शारदा मठ के पहले मठाधीश हस्तामलक (पृथ्वीधर) थे ! हस्तामलक आदि शंकराचार्य के प्रमुख चार शिष्यों में से एक थे !

ज्योतिर्मठ: ज्योतिर्मठ उत्तराखण्ड के बद्रिकाश्रम में है ! ऐतिहासिक तौर पर, ज्योतिर्मठ सदियों से वैदिक शिक्षा तथा ज्ञान का एक ऐसा केन्द्र रहा है जिसकी स्थापना 8वीं सदी में आदी शंकराचार्य ने की थी ! ज्योतिर्मठ के तहत दीक्षा लेने वाले संन्यासियों के नाम के बाद ‘गिरि’, ‘पर्वत’ और ‘सागर’ चारों दिशाओं में आदिशंकराचार्य ने स्थापित किए थे यह 4 मठसम्प्रदाय नाम विशेषण लगाया जाता है जिससे उन्हें उस संप्रदाय का संन्यासी माना जाता है ! इसका महावाक्य ‘अयमात्मा ब्रह्म’ है ! मठ के अंतर्गत अथर्ववेद को रखा गया है ! इसके पहले मठाधीश आचार्य तोटक थे !

अब यह बात अलग है कि धर्म में राजनीति के प्रवेश के कारण हिंदू धर्म पर इन मठों का प्रभाव काफी कम हो गया है ! इनके आधीन रहने वाले नागा संप्रदाय के लोग निरंकुश हो गए हैं धर्म एक व्यवसाय के रूप में अपनाया जाने लगा है ! जिसका परिणाम यह है कि हिंदुओं का हिंदू धर्म के मठाधीश ओं के कारण अपने सनातन धर्म से ही विश्वास और आस्था कम होने लगी है !

आज यह मठ एक पर्यटन स्थल के रूप में ही रह गये हैं ! इनका सामान्य हिंदू जन समाज पर प्रभाव काफी कम हो गया है इसलिये आवश्यकता है कि एक बार फिर भारत में सनातन धर्म की पुनर्स्थापना के लिए कोई बड़ा भव्य योजनाबद्ध आयोजन किया जाये !!

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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