तक्षशिला विश्व का पहला विश्वविद्यालय : Yogesh Mishra

प्राचीन भारत में गांधार देश की राजधानी और शिक्षा का प्रमुख केन्द्र आर्यावर्त की शान कहा जाने वाला विश्व का सर्वप्रथम तक्षशिला विश्वविद्यालय वर्तमान पाकिस्तान की राजधानी रावलपिण्डी से 18 मील उत्तर की ओर स्थित था ! जिस नगर में यह विश्वविद्यालय था ! उसके बारे में कहा जाता है कि श्री राम के भाई भरत के पुत्र तक्ष ने उस नगर की स्थापना की थी ! यह विश्व का प्रथम विश्विद्यालय था जिसकी स्थापना गौतम बुद्ध से पहले 700 वर्ष ईसा पूर्व में की गई थी ! इस तक्षशिला विश्वविद्यालय में पूरे विश्व के 11,000 से अधिक छात्र विभिन्न विषयों का अध्ययन करते थे ! 405 ई में फाह्यान यहाँ आया था !

अयोध्या के राजा रामचन्द्र की विजयों के उल्लेख के सिलसिले में हमें यह ज्ञात होता है कि उनके छोटे भाई भरत ने अपने नाना केकयराज अश्वपति के आमंत्रण और उनकी सहायता से गंधर्वो के देश (गांधार) को जीता और अपने दो पुत्रों को वहाँ का शासक नियुक्त किया ! गंधर्व देश सिंधु नदी के दोनों किनारे, स्थित था (सिंधोरुभयत: पार्श्वे देश: परमशोभन:, वाल्मिकि रामायण, सप्तम, 100-11) और उसके दानों ओर भरत के तक्ष और पुष्कल नामक दोनों पुत्रों ने तक्षशिला और पुष्करावती नामक अपनी-अपनी राजधानियाँ बसाई ! (रघुवंश पंद्रहवाँ, 88-9; वाल्मीकि रामायण, सप्तम, 101.10-11; वायुपुराण, 88.190, महाभारत, प्रथम 3.22) !

तक्षशिला सिंधु के पूर्वी तट पर थी ! उन रघुवंशी क्षत्रियों के वंशजों ने तक्षशिला पर कितने दिनों तक शासन किया, यह बता सकना कठिन है ! महाभारत युद्ध के बाद परीक्षित के वंशजों ने कुछ पीढ़ियों तक वहाँ अधिकार बनाए रखा और जनमेजय ने अपना नागयज्ञ वहीं किया था (महा0, स्वर्गारोहण पर्व, अध्याय 5) ! गौतम बुद्ध के समय गांधार के राजा पुक्कुसाति ने मगधराज बिम्बिसार के यहाँ अपना दूतमंडल भेजा था !

छठी शती ई0 पूर्व फारस के शासक कुरुष ने सिंधु प्रदेशों पर आक्रमण किया और बाद में भी उसके कुछ उत्तराधिकारियों ने उसकी नकल की ! लगता है, तक्षशिला उनके कब्जे में चली गई और लगभग 200 वर्षों तक उसपर फारस का अधिपत्य रहा ! मकदूनिया के आक्रमणकारी विजेता सिकंदर के समय की तक्षशिला की चर्चा करते हुए स्ट्रैबो ने लिखा है (हैमिल्टन और फाकनर का अंग्रेजी अनुवाद, तृतीय, पृष्ठ 90) कि वह एक बड़ा नगर था, अच्छी विधियों से शासित था, घनी आबादीवाला था और उपजाऊ भूमि से युक्त था !

वहाँ का शासक था बैसिलियस अथवा टैक्सिलिज ! उसने सिकंदर से उपहारों के साथ भेंट कर मित्रता कर ली ! उसकी मृत्यु के बाद उसका पुत्र भी, जिसका नाम आंभी था, सिकंदर का मित्र बना रहा, किंतु थोड़े ही दिनों पश्चात् चंद्रगुप्त मौर्य ने उत्तरी पश्चिमी सीमाक्षेत्रों से सिकंदर के सिपहसालारों को मारकर निकाल दिया और तक्षशिला पर उसका अधिकार हो गया ! वह उसके उत्तरापथ प्रांत की राजधानी हो गई और मौर्य राजकुमार मत्रियों की सहायता से वहाँ शासन करने लगे ! उसका पुत्र बिंदुसार, पौत्र सुसीम और पपौत्र कुणाल वहाँ बारी-बारी से प्रांतीय शासक नियुक्त किए गये ! दिव्यावदान से ज्ञात होता है कि वहॉँ मत्रियों के अत्याचार के कारण कभी कभी विद्रोह भी होते रहे और अशोक (सुसीम के प्रशासकत्व के समय) तथा कुणाल (अशोक के राजा होते) उन विद्रोहों को दबाने के लिये भेजे गये !

मौर्य साम्राज्य की अवनति के दिनों में यूनानी बारिव्त्रयों के आक्रमण होने लगे और उनका उस पर अधिकार हो गया तथा दिमित्र (डेमेट्रियस) और यूक्रेटाइंड्स ने वहाँ शासन किया ! फिर पहली शताब्दी ईसवी पूर्व में सीथियों और पहली शती ईसवी में शकों ने बारी बारी से उसमर अधिकर किया ! कनिष्क और उसके निकट के वंशजों का उस पर अवश्य अधिकार था ! तक्षशिला का उसके बाद का इतिहास कुछ अंधकारपूर्ण है ! पाँचवीं शताब्दी में हूणों ने भारत पर जो ध्वंसक आक्रमण किये, उनमें तक्षशिला नगर भी ध्वस्त हो गया !

वास्तव में तक्षशिला के विद्याकेंद्र का ह्रास शकों और उनके यूची उत्तराधिकारियों के समय से ही प्रारभं हो गया था ! गुप्तों के समय जब फाह्यान वहाँ गया तो उसे वहाँ विद्या के प्रचार का कोई विशेष चिह्न नहीं प्राप्त हो सका था ! वह उसे चो-श-शिलो कहता है ! (लेगी फाह्यान की यात्राएँ अंग्रजी में, पृष्ठ 32) हूणों के आक्रमण के पश्चात् भारत आने वाले दूसरे चीनी यात्री युवान च्वांड् (सातवीं शताब्दी) को तो वहाँ की पुरानी श्री बिल्कुल ही हत मिली ! उस समय वहाँ के बौद्ध भिक्षु दु:खी अवस्था में थे तथा प्राचीन बौद्ध विहार और मठ खंडहर हो चुके थे ! असभ्य हूणों की दुर्दांत तलवारों ने भारतीय संस्कृति और विद्या के एक प्रमुख केंद्र को ढाह दिया था !

फिर भी यहां कभी 60 से भी अधिक विषयों को पढ़ाया जाता था ! 326 ईस्वी पूर्व में विदेशी आक्रमणकारी सिकन्दर के आक्रमण के समय यह संसार का सबसे प्रसिद्ध विश्वविद्यालय था ! यह उस समय के चिकित्साशास्त्र का एकमात्र सर्वोपरि केन्द्र था ! तक्षशिला विश्वविद्यालय का विकास विभिन्न रूपों में हुआ था ! इसका कोई एक केन्द्रीय स्थान नहीं था ! अपितु यह एक विस्तृत भू भाग में फैला हुआ था !

विविध विद्याओं के विद्वान आचार्यो ने यहां अपने विद्यालय तथा आश्रम बना रखे थे ! छात्र रुचिनुसार अध्ययन हेतु विभिन्न आचार्यों के पास जाते थे ! महत्वपूर्ण पाठयक्रमों में यहां वेद-वेदान्त, अष्टादश विद्याएं, दर्शन, व्याकरण, अर्थशास्त्र, राजनीति, युद्धविद्या, शस्त्र-संचालन, ज्योतिष, आयुर्वेद, ललित कला, हस्त विद्या, अश्व-विद्या, मन्त्र-विद्या, विविद्य भाषाएं, शिल्प आदि की शिक्षा विद्यार्थी प्राप्त करते थे ! प्राचीन भारतीय साहित्य के अनुसार पाणिनी, कौटिल्य, चन्द्रगुप्त, जीवक, कौशलराज, प्रसेनजित आदि महापुरुषों ने इसी विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की ! तक्षशिला विश्वविद्यालय में वेतनभोगी शिक्षक नहीं थे और न ही कोई निर्दिष्ट पाठयक्रम था !

आज कल की तरह पाठयक्रम की अवधि भी निर्धारित नहीं थी और न कोई विशिष्ट प्रमाणपत्र या उपाधि दी जाती थी ! शिष्य की योग्यता और रुचि देखकर आचार्य उनके लिये अध्ययन की अवधि स्वयं निश्चित करते थे ! परंतु कहीं-कहीं कुछ पाठयक्रमों की समय सीमा भी निर्धारित थी ! चिकित्सा के कुछ पाठयक्रम सात वर्ष के थे तथा पढ़ाई पूरी हो जाने के बाद प्रत्येक छात्र को छ: माह का शोध कार्य करना पड़ता था ! इस शोध कार्य में वह कोई औषधि की जड़ी-बूटी पता लगाता था ! तब उसे डिग्री मिलती थी !

500 ई. पू. जब संसार में चिकित्सा शास्त्र की परंपरा भी नहीं थी तब तक्षशिला’आयुर्वेद विज्ञान’का सबसे बड़ा केन्द्र था ! जातक कथाओं एवं विदेशी पर्यटकों के लेख से पता चलता है कि यहां के स्नातक मस्तिष्क के भीतर तथा अंतड़ियों तक का ऑपरेशन बड़ी सुगमता से कर लेते थे ! अनेक असाध्य रोगों के उपचार सरल एवं सुलभ जड़ी बूटियों से करते थे ! इसके अतिरिक्त अनेक दुर्लभ जड़ी-बूटियों का भी उन्हें ज्ञान था !

शिष्य आचार्य के आश्रम में रहकर विद्याध्ययन करते थे ! एक आचार्य के पास अनेक विद्यार्थी रहते थे ! इनकी संख्या प्राय: सौ से अधिक होती थी और अनेक बार 500 तक पहुंच जाती थी ! अध्ययन में क्रियात्मक कार्य को बहुत महत्त्व दिया जाता था ! छात्रों को देशाटन भी कराया जाता था !

उस समय विश्वविद्यालय कई विषयों के पाठ्यक्रम उपलब्ध करता था, जैसे – भाषाएं , व्याकरण, दर्शन शास्त्र , चिकित्सा, शल्य चिकित्सा, कृषि , भूविज्ञान, ज्योतिष, खगोल शास्त्र, ज्ञान-विज्ञान, समाज-शास्त्र, धर्म , तंत्र शास्त्र, मनोविज्ञान तथा योगविद्या आदि !

विभिन्न विषयों पर शोध का भी प्रावधान था ! शिक्षा की अवधि 8 वर्ष तक की होती थी ! विशेष अध्ययन के अतिरिक्त वेद, तीरंदाजी, घुड़सवारी, हाथी का संधान व एक दर्जन से अधिक कलाओं की शिक्षा दी जाती थी ! तक्षशिला के स्नातकों का हर स्थान पर बड़ा आदर होता था ! यहां छात्र 15-16 वर्ष की अवस्था में प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण करने आते थे !

शिक्षा पूर्ण होने पर परीक्षा ली जाती थी ! तक्षशिला विश्वविद्यालय से स्नातक होना उससमय अत्यंत गौरवपूर्ण माना जाता था ! यहां धनी तथा निर्धन दोनों तरह के छात्रों के अध्ययन की व्यवस्था थी ! धनी छात्रा आचार्य को भोजन, निवास और अध्ययन का शुल्क देते थे तथा निर्धन छात्र अध्ययन करते हुए आश्रम के कार्य करते थे ! शिक्षा पूरी होने पर वे शुल्क देने की प्रतिज्ञा करते थे ! प्राचीन साहित्य से विदित होता है कि तक्षशिला विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले उच्च वर्ण के ही छात्र होते थे !

जिसे कालांतर में बौद्ध धर्मालम्बीयों ने हथिया लिया और यहाँ पर कई बौद्ध स्तूप, विहार, मंदिर आदि स्थापित कर दिये ! यहां पर बुद्ध काल में कोसल नरेश प्रसेनजित्, कुशीनगर के बंधुलमल्ल, वैशाली के महाली, मगध नरेश बिम्बिसार के प्रसिद्ध राजवैद्य जीवक, एक अन्य चिकित्सक कौमारभृत्य तथा वसुबंधु आदि इसी विश्व के प्रसिद्ध छात्र रहे थे ! पाणिनी ने अपनी पुस्तकों में तक्षशिला का उल्लेख तक किया है ! 400 ई. पूर्व में यहां के एक विद्वान कात्यायन ने वार्तिक की रचना की थी ! यह एक प्रकार का शब्दकोश था, जो संस्कृत में प्रयुक्त होने वाले शब्दों की व्याख्या करता था !

पहली सदी से लेकर 10वीं सदी के बीच अश्वघोष, नागार्जुन, आर्यदेव, मैत्रेय, असंग, वसुबन्धु, दिग्नाग, धर्मपाल, शीलभद्र, धर्मकीर्ति, देवेन्द्रबोधि, शाक्यबोधि, शान्त रक्षित, कमलशील, कल्याणरक्षित, धर्मोत्तराचार्य, मुक्तकुंभ, रत्नकीर्ति, शंकरानंद, शुभकार गुप्त तथा मोक्षकार गुप्त आदि अनेक बौद्ध दार्शनिक पैदा हुये ! चौथी सदी के पेशावर निवासी असंग अद्वैत विज्ञानवाद के प्रवर्तक थे ! उनके छोटे भाई वसुबन्धु थे जिन्होंने अयोध्या में रहकर बौद्ध त्रिपिटक के सार के रूप में ‘अभिधम्म कोश’ की रचना की थी ! दिग्नाग 5वीं सदी के दार्शनिक थे !

सुप्रसिद्ध विद्वान, चिंतक, कूटनीतिज्ञ, अर्थशास्त्री चाणक्य ने भी अपनी शिक्षा यहीं पूर्ण की थी ! उसके बाद यहीं शिक्षण कार्य करने लगे ! यहीं उन्होंने अपने अनेक ग्रंथों की रचना की ! इस विश्वविद्यालय की स्थिति ऐसे स्थान पर थी, जहां पूर्व और पश्चिम से आने वाले मार्ग मिलते थे ! चतुर्थ शताब्दी ई. पू. से ही इस मार्ग से भारतवर्ष पर विदेशी आक्रमण होने लगे ! विदेशी आक्रांताओं ने इस विश्वविद्यालय को काफ़ी क्षति पहुंचाई ! अंतत: छठवीं शताब्दी में यह आक्रमणकारियों द्वारा पूरी तरह नष्ट कर दिया था !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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