वैष्णव साहित्य से पूर्व के पुरातन शैव ज्योतिष साहित्य में लग्न के निर्धारण के लिये लंका की गणना को ही सर्वश्रेष्ठ माना गया है ! लंका के वर्तमान नक्शे को देखकर यह ज्ञात होता है कि यह भू भाग जो वर्तमान भूमध्य रेखा से 6 डिग्री उत्तर की ओर से शुरू होकर 09 :50 डिग्री नॉर्थ तक जाता है ! उससे इतर था !
अर्थात सही लग्न के निर्धारण के लिये लंका से 6 डिग्री दक्षिण की ओर भूमध्य रेखा पर जाना पड़ेगा ! जहां पर वर्तमान में हिंद महासागर है ! लेकिन आज जहां पर हिंद महासागर है ! वहां राम रावण युद्ध के पूर्व एक विस्तृत भूखण्ड हुआ करता था ! जिसकी सीमा उत्तर में लंका, पूर्व में आस्ट्रेलिया और पश्चिम में अफ्रीका तक फैली थी ! जिसके केन्द्र में रावण के ज्योतिष एवं अंतरिक्ष अनुसंधान का मुख्य केंद्र था ! जो विश्व के समस्त ज्योतिष गणना के गणितीय और फलित शोध के लिये पूरे विश्व में अनादि काल से ही विख्यात था !
जिस केंद्र की दूरी वर्तमान लंका के दक्षिणी किनारे से 6 डिग्री दक्षिण की ओर स्थित था ! वहां उस समय एक विशाल शोधकर्ताओं का समूह अलग-अलग ग्रहों की कालगणना और उसके फलित पर निरंतर शोध कार्य किया करते थे ! यहाँ एक समूह सूर्य पर, तो दूसरा समूह चंद्रमा की गति पर अध्ययन करता था ! कोई मंगल की गति पर करता था ! तो कोई दूसरा बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु, केतु आदि आदि ग्रहों की गति का अध्ययन किया करता था ! इन ग्रहों की गति, गणना और फलित तीनों को ही संहिता रूप में संग्रहित किया जाता था ! इसी संग्रह को रावण संहिता के ज्योतिष खंड के रूप में जाना जाता है !
वहां पर विस्तृत नौ खंड की महल नुमा उच्च इमारत थी ! जिसके ऊपर तरह-तरह के ग्रहों की गणना के लिये दूरबीन लगी हुई थी ! जो ग्रहों की गणना के साथ-साथ दूसरे ग्रहों पर रहने वाले अंतरिक्ष निवासियों से भी संबंध स्थापित करती थी और अंतरिक्ष में होने वाले हर हलचल का रिकॉर्ड अपने तमिल भाषा में संग्रहित करती थी ! इन्हीं रिकॉर्ड के आधार पर ग्रहों की गति और उसके प्रभाव का आंकलन किया जाता था !
जहां पर ग्रह गति अनुकूल नहीं होती थी ! वहां पर उन ग्रह गतियों का क्या प्रभाव पड़ रहा है ! इसका अनुमान लगाया जाता था और उस नकारात्मक प्रभाव को सकारात्मक प्रभाव में कैसे बदला जाये ! इस हेतु भी विस्तृत मंत्र, पूजा, अनुष्ठान, आयुर्वेदिक उपचार आदि हुआ करते थे !
जिसके लिये बहुत से विद्वान ब्राह्मणों का एक बहुत बड़ा वर्ग वहां पर अपने परिवार के साथ निवास करता था ! जो राम रावण युद्ध के उपरांत हुये सर्वनाश के कारण अरब देश की ओर चला गया था ! जिन्होंने अपने को “मय ब्राह्मण” बतलाया और भविष्य पुराण की रचना की ! जिसमें संपूर्ण पृथ्वी का भविष्य क्रमबद्ध तरीके से हजारों साल पहले ही लिख दिया गया था ! जो घटनायें आज तक सही होती चली जा रही हैं !
इन श्रेष्ठ ब्राह्मणों के द्वारा संचालित विस्तृत गुरुकुल हुआ करते थे ! जिनमें पूरी दुनिया से लोग ज्योतिष और कर्मकांड की शिक्षा लेने के लिये आया करते थे ! मंत्र, तंत्र, यंत्र, जंत्र, अनुष्ठान, पूजन, कर्मकांड आदि के विभाग अलग-अलग थे ! जिनमें सैकड़ों की संख्या में विशेषज्ञ कार्य करते थे और हजारों की संख्या में छात्र शिक्षा ग्रहण करते थे ! जहाँ पर कभी रावण के फूफा अगस्त मुनि ने भी ज्योतिष की शिक्षा ग्रहण की थी और अगस्त नाड़ी सूत्र का लेखन किया था ! जो आंशिक रूप में आज भी उपलब्ध है !
इन सभी शोध कार्यों के लिये रावण द्वारा विशेष फंड दिया जाता था ! जिससे वहां की गतिविधियां संचालित होती थी और विशेष उपलब्धि के अवसर पर रावण उन विद्वानों को पुरस्कृत भी करता था ! उन्हीं की मदद से राम रावण युद्ध के समय दूसरे ग्रहों से रावण के पक्ष में युद्ध करने के लिये बहुत से अंतरिक्ष निवासी ने उस युद्ध में हिस्सा लिया था !
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि जिस समय रावण के शोधकर्ता ज्योतिष के 9 से अधिक ग्रहों की कालगणना और फलित पर शोध कर रहे थे ! उस समय भारत के वैष्णव ज्योतिष ग्रंथों में मात्र 6 ग्रहों की ही गणना की जाती थी ! महर्षि बाल्मीकि द्वारा लिखे गये वैष्णव ग्रंथ रामायण में भगवान श्री राम की जिस कुंडली का वर्णन पाया जाता है ! उसमें मात्र 6 ग्रहों का ही वर्णन मिलता है !
अर्थात रावण के राज्य में ज्योतिष गणना वैष्णव क्षेत्र से अधिक विकसित थी और उसका फलित खंड और उपचार खंड भी वैष्णव क्षेत्र से अधिक प्रभावशाली था ! तभी वैष्णव लोगों को जब रावण का फलित और उपचार खंड समझ में नहीं आया तो उन्होंने समाज में यह प्रचलित कर दिया कि रावण ने सभी ग्रहों को अपने कैद खाने में गिरफ्तार करके रखा हुआ है और जिस ग्रह से वह जो कार्य कराना चाहता है वह करवा लेता है !
जबकि इस सबके पीछे ग्रहों की नकारात्मक ऊर्जा को सकारात्मक ऊर्जा में कैसे बदला जाये इसके लिये ज्योतिष का उपचार ही सबसे अधिक प्रभावित था ! जिस पर रावण के शोधकर्ताओं ने सर्वाधिक कार्य किया था और रावण इसी विधा का विशेषज्ञ था !
कालांतर में रावण की वृद्धावस्था में जब 38 वर्षीय युवा राम ने इंद्र के षड्यंत्र के तहत 300 से अधिक राजाओं की सेना लेकर लंका पर आक्रमण किया ! तब वहां पर हुये महायुद्ध में रावण का वह ज्योतिषीय शोध केंद्र भी उस परमाणु हमले में पूरी तरह नष्ट होकर हिंद महासागर में समा गया ! जिससे रावण अपने अन्तरिक्ष मित्रों से और अधिक मदद न मांग सके ! जिस शोध क्षेत्र के अवशेष आज भी समुद्र की गहराईयों में पाये जाते हैं !!