राम के चमत्कार से नहीं बल्कि वैज्ञानिक कारणों से नहीं डूबते थे राम सेतु के पत्थर : Yogesh Mishra

रामसेतु जिसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ‘एडेम्स ब्रिज’ के नाम से जाना जाता है ! हिन्दू धार्मिक ग्रंथ रामायण के अनुसार यह एक ऐसा पुल है, जिसे भगवान विष्णु के सातवें अवतार श्रीराम की वानर सेना द्वारा भारत के दक्षिणी भाग रामेश्वरम पर बनाया गया बतलाया जाता है ! जिसका दूसरा किनारा वास्तव में श्रीलंका के मन्नार तक जाकर जुड़ता है ! श्रीलंका के मुसलमानों ने इसे आदम पुल कहना शुरू किया ! फिर ईसाई या पश्चिमी लोग इसे “एडम ब्रिज” कहने लगे !

ऐसी मान्यता है कि इस पुल को बनाने के लिये जिन पत्थरों का इस्तेमाल किया गया था ! वह पत्थर पानी में फेंकने के बाद समुद्र में डूबते नहीं हैं ! बल्कि पानी की सतह पर ही तैरते रहते हैं ! कुछ लोग इसे धार्मिक महत्व देते हुये इसे भगवान राम के नाम मात्र का चमत्कार मानते हैं ! लेकिन साइंस इसके पीछे बिल्कुल विपरीत वैज्ञानिक कारण बतलाता है !

इसलिये इतने सालों के शोध के बाद वैज्ञानिकों ने रामसेतु पुल में इस्तेमाल हुये पत्थरों का वजूद खोज निकाला है ! विज्ञान का मानना है कि रामसेतु पुल को बनाने के लिये जिन पत्थरों का इस्तेमाल हुआ था ! वह कुछ खास प्रकार के पत्थर हैं ! जिन्हें वैज्ञानिक की भाषा में ‘प्यूमाइस स्टोन’ कहा जाता है ! जो पूरी दुनियां में पाये जाते हैं !

दरअसल यह पत्थर ज्वालामुखी के लावा से उत्पन्न होते हैं ! जब ज्वालामुखी का लावा कम गर्म वातावरण की हवा या फिर पानी से मिलता है तो वह खुद को कुछ जल से भी हल्के धनत्व के प्राकृतिक कणों में बदल लेते हैं ! जिससे कई बार इन हल्के धनत्व के कणों से निर्मित बड़े-बड़े पत्थरों का प्राकृतिक रूप से निर्माण हो जाता है ! जिससे यह दिखते तो पत्थर जैसे हैं पर इनका घनत्व पानी से कम होता है ! अत: यह पानी में तैरने लगते हैं !
जैसे ठोस लकड़ी का घनत्व पानी से कम होने के कारण वह भी पानी में तैरने लगती है !

इन पत्थरों को “खंखरे पत्थर” या “प्यूमाइस स्टोन” कहते हैं ! यह पत्थर पानी में जल्दी डूबता नहीं हैं ! इन विशेष पत्थरों के उपलब्धता की जानकारी भगवान राम के इंजीनियर नल नील को रही होगी ! अतः उन्होंने वन नर के माध्यम से इन पत्थरों को रामसेतु के चौड़ीकरण के लिये उस विशेष स्थान से वहां मंगवाया था ! किंतु सामान्य पत्थर और इस विशेष खंखरे पत्थर के मध्य अंतर कैसे किया जाये ! इस हेतु नल नील लेने इस विशेष पत्थर के ऊपर चिन्ह के तौर पर राम राम लिखवा दिया था ! जिनकी संख्या कुल प्रयोग किये गये पत्थरों के मुकाबले बहुत कम मात्रा 3% है ! जो आज भी प्राय: राम सेतु के निकट तैरते हुये मिल जाते हैं !

इसके अलावा .रामसेतु के निर्माण के लिए वानर सेना ने पत्थरों, पेड़ों की शाखाओं और पत्तियों का इस्तेमाल किया गया था। इस पुल की खास बात यह है कि समुद्र में ये पत्थर कभी डूबते नहीं थे !

नैशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस, नासा जो कि विश्व की सबसे विख्यात वैज्ञानिक संस्था में से एक है उसके द्वारा सैटलाइट की मदद से रामसेतु पुल को खोज निकाला था ! रामसेतु का चित्र नासा ने 14 दिसंबर 1966 को जेमिनी-11 से अंतरिक्ष से प्राप्त किया था ! इसके 22 साल बाद आईएसएस-1 ए ने तमिलनाडु तट पर स्थित रामेश्वरम और जफना द्वीपों के बीच समुद्र के भीतर भूमि-भाग का पता लगाया और उसका चित्र लिया ! इससे अमेरिकी उपग्रह के चित्र की पुष्टि हुई !

इन तस्वीरों के मुताबिक वास्तव में एक ऐसा पुल जरूर दिखाया गया है जो कि भारत के रामेश्वरम से शुरू होकर श्रीलंका के मन्नार द्वीप तक पहुंचता है ! परन्तु किन्हीं कारणों से अपने आरंभ होने से कुछ ही दूरी पर यह समुद्र में समा गया है !

रामेश्वरम में कुछ समय पहले लोगों को समुद्र तट पर कुछ वैसे ही पत्थर मिले जिन्हें “प्यूमाइस स्टोन” कहा जाता है ! लोगों का मानना है कि यह पत्थर समुद्र की लहरों के साथ बहकर किनारे पर आये हैं ! बाद में लोगों के बीच यह मान्यता फैल गई कि हो न हो यह वही पत्थर हैं ! जिन्हें श्रीराम की वानर सेना द्वारा रामसेतु पुल बनाने के लिये इस्तेमाल किया गया रहा होगा !

धार्मिक मान्यता अनुसार जब असुर सम्राट रावण माता सीता का हरण कर उन्हें अपने साथ लंका ले गया था, तब श्रीराम ने वानरों की सहायता से समुद्र के बीचो-बीच एक पुल का निर्माण किया था ! यही आगे चलकर वैष्णव साहित्यकारों की कृपा से “रामसेतु” कहलाया था ! वैष्णव साहित्यकार कहते हैं कि इस विशाल पुल का वानर सेना ने मात्र 5 दिनों में ही तैयार कर लिया गया था ! निर्माण पूर्ण होने के बाद इस पुल की लम्बाई 49 किलोमीटर और चौड़ाई 3 किलोमीटर थी !!

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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