लोकतांत्रिक व्यवस्था की यह खूबसूरती है कि यदि लोक इच्छा पर शासन की सारी शक्तियां सत्ता प्रमुख में निहित होती हैं तो शासक द्वारा गलत निर्णय या गलत कार्य करने पर देश का हर नागरिक इस बात के लिये स्वतंत्र होता है कि वह स्वयं अकेले या कोई संगठन बनाकर शासन सत्ता प्रमुख के निर्णय और नीतियों का विरोध कर सके ! वह विरोध सदन के अंदर नेता विपक्षी दल या विपक्ष के रूप में भी हो सकता है और सदन के बाहर सामाजिक आंदोलन या व्यक्तिगत धरना, प्रदर्शन, आमरण अनशन के रूप में भी हो सकता है !
लेकिन दुर्भाग्य यह है कि 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद भारतवर्ष में कुछ इस तरह का वातावरण बना दिया गया है ! कि सदन के अंदर विपक्ष को एक नीति के तहत अत्यंत कमजोर कर दिया गया है और विपक्षी नेताओं को विदेशी, भ्रष्ट या पप्पू कहकर प्रभावहीन करने का प्रयास किया गया है !
और सदन के बाहर भी आज कोई भी व्यक्ति व्यक्तिगत स्तर पर कोई धरना, प्रदर्शन या आमरण अनशन बिना शासन सत्ता की इजाजत के नहीं कर सकता है और न ही कोई भी सामाजिक संगठन शासन सत्ता की गलत नीतियों का विरोध कर पाने का साहस जुटा पा रहा है !
इस लोकतांत्रिक विरोध के स्वर को दबाने के लिये तीन अलग-अलग आयामों पर बड़ा प्रयास किया गया है ! पहला शासन सत्ता की नीतियों के विरुद्ध धरना, प्रदर्शन, आंदोलन, आमरण अनशन करने के लिये उसी शासन सत्ता से आज्ञा लेना परम आवश्यक है ! जिस शासन सत्ता की गलत नीतियों के विरुद्ध आप आंदोलन करना चाहते हैं !
दूसरा शासन सत्ता के राजनैतिक दल के निमान्दों ने आई.टी. सेल बनाकर उसमें 10,000 रुपये से लेकर 25,000 रुपये तक के कुछ ऐसे विकृत चित् के व्यक्तियों को नियुक्त कर लिया है, जो राष्ट्र का हित छोड़कर मात्र अपने राजनैतिक दल का हित और राजनैतिक दल के प्रमुख राजनेताओं के हित के अनुरूप ही कार्य कर रहे हैं !
अर्थात दूसरे शब्दों में कहा जाये तो वर्तमान शासन सत्ता के राजनीतिक दल की नीतियों पर यदि कोई भी व्यक्ति विरोध या असंतोष प्रकट करता है, तो राजनीतिक दल द्वारा चलाये जाने वाले आई.टी. सेल के अंदर बैठे हुये लोग उस व्यक्ति का उपहास उड़ा कर या गाली गलौज देकर उसके विचार और चिंतन को ही कुचलने की कोशिश करते हैं !
और तीसरा सबसे महत्वपूर्ण कार्य शासन सत्ता के वह नुमाइंदे जिनका कार्य विधि के अनुसार प्रशासन चलाना है ! ऐसा लगता है कि अब वह आज कल राज सत्ता में बैठे हुये नेताओं के व्यक्तिगत कर्मचारी हो गये हैं जो राज सत्ता के किसी भी नेता के विरुद्ध यदि कहीं भी सोशल मीडिया में या सार्वजनिक जीवन में कोई भी गलत कार्यों और निर्णयों की आलोचना की जाती है, तो यह प्रशासनिक अधिकारी तत्काल उस आलोचना करने वाले व्यक्ति के विचार और मंतव्य को देखे बिना ही उसके विरुद्ध विधिक कार्यवाही आरंभ कर देते हैं !
और दुर्भाग्य यह है कि देश की न्यायपालिका भी इस समय दो तीन घटनाओं के बाद इतनी भयभीत है कि वह तटस्थ कार्य नहीं कर पा रही है !
कहने को तो भारत में कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका तीनों ही संवैधानिक संस्थायें अपना-अपना कार्य कर रही हैं और मीडिया लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के रूप में स्वतंत्र रूप से अपना दायित्व निर्वहन कर रही है ! पर व्यावहारिक सच्चाई यह है कि यह सभी कुछ और सारी संवैधानिक संस्थायें एक व्यक्ति की इच्छा और मनसा के अनुरूप कार्य कर रही हैं !
यह लोकतांत्रिक व्यवस्था में राष्ट्रहित में सर्वथा उचित नहीं है क्योंकि यदि जन भावनाओं को दबा कर मात्र राजसत्ता के प्रमुख की इच्छा से संपूर्ण देश को चलाने का प्रयास किया जायेगा तो यह स्थिति लोकतंत्र का आज नहीं तो कल गला घोट देगी और लोकतंत्र का विचारक और चिंतक वर्ग जो लोकतंत्र में प्रेशर ग्रुप के रूप में काम करता है ! वह धीरे-धीरे समाप्त हो जायेगा ! जो स्थिति शासन सत्ता को निरंकुश बनाती है और राष्ट्र को भयावह स्थिति में ले जा सकती है !
इसलिये लोकतंत्र को यदि जिंदा रखना है तो सदन के अंदर और सदन के बाहर दोनों ही जगह प्रेशर ग्रुप को भी जिंदा रखना होगा ! तभी राष्ट्र और राष्ट्र के नागरिकों की भावनाओं की रक्षा हो सकेगी ! यही लोकतंत्र में राष्ट्र के उज्जवल भविष्य का आधार है !