समस्त विश्व प्राचीन काल और मध्यकाल में अकाल मानसून के अनियमित होने के पड़ते थे ! परन्तु उच्च तकनीकी के आगमन के पश्चात अब अकाल प्रायोजित तरीके से डाले जाते हैं ! इस परम्परा की शुरुआत पूरे विश्व में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासनकाल से हुई थी !
1769 से 2000 तक पूरे विश्व में लगभग 52 बड़े अकाल पड़े और इनमें लगभग 8 करोड़ 85 लाख लोगों की भूख से तड़फ तड़फ कर मृत्यु हो गयी ! और दूसरी तरफ इस दौरान अमेरिका जैसे विकसित देश ने अपनी आवश्यकता से अधिक लाखों टन गेहूं या तो समुद्र में फेंक दिया या जला दिया ! जिससे यह सिद्ध हुआ कि सभी अकाल जनता के विद्रोह को दबाने के लिये प्रायोजित तरीके से पैदा किये गये थे ! फिर चाहे वह अफ्रीका का अकाल हो या भारत का !
इतने अधिक अकाल पड़ने और इतनी भारी संख्या में लोगों के मारने के पीछे क्या कारण हैं और इसके लिये कौन उत्तरदायी है ? आइये आज हम इन्हीं प्रश्नों का उत्तर ढूढ़ते हैं “प्रायोजित अकाल नीति के तहत” !
यह एक ध्रुव सत्य है कि मनुष्य के लिये भूख से बड़ी कोई विपत्ति नहीं है ! व्यक्ति की आवश्यकताओं में इसीलिये सबसे पहली आवश्यकता रोटी को गिना गया है ! फिर दूसरी वरीयता मनुष्य अपने शरीर को ढकने के लिये कपड़ों को देता है और तीसरी वरीयता अपनी सुरक्षा के लिये मकान को देता है ! इसके आगे तो सब कुछ बस विलासिता है !
कुटिल और धूर्त राजनीतिज्ञ या शासक वर्ग मनुष्य की इस कमजोरी को बहुत बारीकी से समझते हैं, भारत के सन्दर्भ में वह अपने खर्चे चलाने के लिये सबसे पहले विलासिता पर “कर” लगाते हैं और फिर व्यक्ति की संपत्ति पर तरह-तरह के कर और प्रतिबंध लगाते हैं ! जिसके बाद भी यदि व्यक्ति अपने पुरुषार्थ से अपनी चल-अचल संपत्ति का विस्तार कर अपना भविष्य सुरक्षित करने लगे तो उस पर अप्रत्याशित नोटबंदी की घोषणा कर दी जाती है ! जिससे घर में रखा संचित धन बैंक पहुँच जाता है !
फिर बैंक के उस पैसे से दोबारा नोट बंदी के भय से व्यक्ति कैश रुपये रखने के स्थान पर सोना खरीद लेता है और कुछ समय बाद अपनी निजी आवश्यकताओं के लिये उस सोने को बैंक में रखकर लोन ले लेता है फिर लोन की किस्त अचानक आये लॉकडाउन के कारण अदा नहीं कर पाता है और बैंक उस सोने को भी हड़प लेता है !
फिर अचानक अप्रत्याशित बीमारी फैलती है ! जिसमें समाज का बड़ा वर्ग उस नई बीमारी के चपेट में आ जाता है और लोग अपने परिजनों की रक्षा के लिये चिकित्सा के नाम पर डॉक्टरों को मुंह मांगी रकम देते हैं फिर भी अपने परिजनों की रक्षा नहीं कर पाते हैं लेकिन उसमें वह अपना सर्वस्व धन लुटा देते हैं !
इस तरह मेहनत से संग्रहित की गई जीवन की जमा पूंजी खत्म हो जाती है ! व्यापार धंधे में नई नई कर व्यवस्था लागू करके नागरिकों को आर्थिक रूप से परेशान किया जाता है ! जिससे कि आम जन मानस राजनीतिज्ञों के नियंत्रण में बने रहें !
और जब इसके बाद भी राजनीति के यह पाते हैं कि लोग उनके नियंत्रण में नहीं है ! तो राजनीतिज्ञ अपने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग करते है और वह है “भूखमरी” अर्थात कृत्रिम अकाल !
इस तरह के कृत्रिम अकाल के दो परिणाम होते हैं ! पहला या तो जनता घुटना टेक देती है और या फिर अपने नौनिहालों और परिवार जनों की मौत को देखकर विद्रोह कर देती है ! जैसा कि 1837 के अकाल के बाद 1857 में ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध भारत के आम जनमानस ने विद्रोह कर दिया था !
लेकिन फिर भी यह घृणित राजनीति समय-समय पर जनता को दबाने के लिये शासकों द्वारा चली जाती रही है ! आज इसी क्रम में करो ना काल मैं राजनीतिज्ञों की प्रशासनिक असफलता के कारण जब संपूर्ण देश में असंतोष का वातावरण बना हुआ है ! तब बहुत संभावना है कि राजनीतिज्ञ अपने ब्रह्मास्त्र भुखमरी या दूसरे शब्दों में कहें तो कृत्रिम अकाल का राजनैतिज्ञ प्रयोग करें !
राजनीतिज्ञों का यह ब्रह्मास्त्र जनता के सोचने समझने की शक्ति को समाप्त कर देता है ! उस समय हर व्यक्ति दो वक्त न सही तो एक वक्त की रोटी के लिये ही परेशान होने लगता है और समाज में लोग पेट की भूख को शांत करने के लिये हत्या तक करने पर उतारू हो जाते हैं !
इस स्थिति में राजनीतिज्ञों के असफलता पर समाज में चर्चा अस्थाई रूप से बंद हो जाती है और व्यक्ति अपने व अपने परिवार जनों के लिये रोटी की व्यवस्था करने में लग जाता है ! जिससे राजनीतिज्ञों को मन चाहा शासन चलाने में बहुत राहत मिलती है !
आज भारत में करो ना से व्यापक जन आक्रोश को समाप्त करने के लिये विश्व सत्ता के इशारे पर भारत के राजनीतिज्ञ जो नई खाद्यान्न नीति ला रहे हैं, उससे निकट भविष्य में निश्चित भुखमरी फैलेगी ! और देखना इसके लिये आधुनिक उच्च तकनीकी का सहारा लिया जायेगा !
इतिहास गवाह है कि विश्व के धरातल में जब जब किसी भी शासक के विरुद्ध जनता ने एक स्वर में संगठित होकर आवाज उठाई तो जनता की आवाज दबाने के लिये वहां पर कृत्रिम भुखमरी योजना बाध्य तरीके से फैलाई गई है !!