भारत में जगह-जगह विकिरण की जांच करने वाले वैज्ञानिकों ने पाया कि जोधपुर से दस मील पश्चिम में तीन वर्ग मील क्षेत्र में रेडियोधर्मी राख की एक परत है ! जो पूर्व में वहां हुए किसी परमाणु हथियार की ओर संकेत करते हैं ! अनुसंधान में यह भी पाया गया कि इस विकिरण में आज भी कैंसर पैदा करने के तत्व हैं !
भारत सरकार ने इस क्षेत्र की घेराबंदी कर दी ! वैज्ञानिकों ने शोध में पता लगाया कि यहां कभी एक प्राचीन शहर हुआ करता था ! जहां 8,000 से 12,000 हजार साल पुराने परमाणु विस्फोट के सबूत मिले थे ! इस विस्फोट ने यहां की अधिकांश इमारतों को नष्ट कर दिया था और जिसमें संभवत: डेढ़ लाख से अधिक लोगों की मृत्यु हुई थी !
पुरातत्वविद् फ्रांसिस टेलर ने कहा कि उस समय यहाँ के लोग मंदिरों में इस महान प्रकाश से बचने के लिये प्रार्थना कर रहे थे ! जब यह शहर बर्बाद हुआ था !
“यह कल्पना करना विश्वसनीय नहीं लगता है कि हमारे पूर्वजों के पास कुछ सभ्यताओं ने परमाणु तकनीक विकसित कर ली थी किन्तु रेडियोधर्मी राख और भारत के प्राचीन धर्म ग्रंथों में वर्णित युद्ध में अस्त्र शस्त्र के प्रयोग के जो लक्षण बतलाए जाते हैं, वह परमाणु हथियारों के प्रयोग की ओर इशारा करते हैं !”
भारत में प्राचीन परमाणु युद्ध का एक और जिज्ञासु संकेत बॉम्बे के उत्तर पूर्व स्थित एक विशाल गड्ढे के रूप में आज भी मौजूद है ! यह लगभग गोल 2154 मीटर व्यास का लगभग 5,000 वर्ष पुराना बतलाया जाता है ! जहां पर आज भी पर्याप्त रेडियोधर्मी तरंगे मौजूद हैं !
महाभारत ग्रन्थ में भी प्राचीन परमाणु युद्धों के प्रमाण मिलते हैं ! एडोल्फ हिटलर ने भारत के प्राचीन पांडुलिपियों से ही परमाणु अस्त्र के फार्मूले की खोज की थी और उसे सफलतापूर्वक बना भी लिया था किंतु द्वितीय विश्व युद्ध में हार जाने के बाद जर्मन के परमाणु वैज्ञानिकों को रूस और अमेरिका की सेना जबरदस्ती पकड़ कर अपने साथ ले गई थी ! जिनकी मदद से रूस और अमेरिका दोनों जगहों पर परमाणु शस्त्रों को इजाद किया गया था ! जिसका प्रयोग जापान के हिरोशिमा और नागासाकी जैसे महान नगरों की तबाही ही में अमेरिका ने किया था !
महाभारत में सौप्तिक पर्व अध्याय 13 से 15 तक ब्रह्मास्त्र के परिणाम दिये गये है ! महाभारत युद्ध का आरंभ 16 नवंबर 5561 ईसा पूर्व हुआ और 18 दिन तक चलने वाले इस युद्ध में युद्ध समाप्ति के बाद 2 दिसंबर 5561 ईसा पूर्व को उसी रात दुर्योधन ने अश्वत्थामा को सेनापति नियुक्त किया था । तब अश्वत्थामा ने अपनी हारी हुई बाजी मानकर जो ब्रह्मास्त्र छोड़ा था उस ब्रह्मास्त्र के कारण जो अग्नि उत्पन्न हुई थी ! वह अत्यंत प्रलंकारी थी । वह अस्त्र प्रज्वलित हुआ जिससे एक भयानक ज्वाला उत्पन्न हुई जो तेजोमंडल को घेरने में समर्थ थी !
इसी घटना के बाद 3 नवंबर 5561 को ईसा पूर्व के दिन भीम ने अश्वत्थामा को पकड़ कर दंड के लिये कृष्ण के सामने प्रस्तुत किया था । जिसका वर्णन शास्त्रों में इस प्रकार है ! वेदव्यास जी लिखते हैं कि –
तदस्त्रं प्रजज्वाल महाज्वालं तेजोमंडल संवृतम ।। 8 ।। }
सशब्द्म्भवम व्योम ज्वालामालाकुलं भृशम । चचाल च महीं कृत्स्न सपर्वतवन द्रुमा ।। 10 ।। अध्याय 14 }
इस शास्त्र के प्रयोग से भयंकर वायु चलने लगती थी, जैसे सहस्त्रावधी उल्का आकाश से गिर रहे हों ! आकाश में इसकी ध्वनि से पर्वत, अरण्य, वृक्ष आदि सभी कुछ पृथ्वी के साथ हिल गये ! जहां यह ब्रह्मास्त्र छोड़ा गया था ! वहां पर 12 वषों तक पुनर्विष्ठी नहीं होती है अर्थात वहां जीव-जंतु, पेड़-पौधे, आदि कुछ भी उत्पति नहीं होते हैं !!