सिंदूर भरना
विवाह के समय वर द्वारा वधू की मांग में सिंदूर भरने का संस्कार ‘सुमंगली क्रिया’ कहलाती है।
इसके बाद विवाहित स्त्री अपने पति की दीर्घायु की कामना करते हुए आजीवन मांग में सिंदूर भरती है।
हिंदू धर्म की परंपरा के अनुसार मांग में सिंदूर भरना सुहागिन होने का प्रतीक है।
मांग में सिंदूर भरने से स्त्री के सौन्दर्य में वृद्धि भी होती है, इसीलिए यह नारी श्रृंगार का भी महत्वपूर्ण अंग है। इसके अलावा सिंदूर मंगल-सूचक भी है।
शरीर विज्ञान के अनुसार मांग में जहां सिंदूर भरा जाता है,
वह स्थान ब्रह्मरंध्र और अध्मि नामक मर्म के ठीक ऊपर है। यह पुरुष की अपेक्षा स्त्री में अधिक कोमल होता है।
सिंदूर में पारा जैसी धातु अधिक होने के कारण चेहरे पर जल्दी झुर्रियां नहीं पड़तीं। इससे स्त्री के शरीर में स्थित विद्युतीय उत्तेजना नियंत्रित होती है। यह मर्म स्थान को बाहरी बुरे प्रभावों से भी बचाता है।
जिस स्त्री के भृकुटी केन्द्र में नागिन रेखा होती है उसे सामुद्रिक शास्त्र में अभागिनी माना जाता है। ऐसे दोष के निवारण के लिए भी शास्त्र स्त्री को मांग में सिंदूर भरने का परामर्श देते हैं।