नवरात्र में अष्टमी और नवमी के दिन कन्या भोजन का प्रावधान है। इसके पीछे भी शास्त्रों में वर्णित तथ्य यही है कि दो वर्ष से 10 वर्ष की आयु की नौ कन्याओं को भोजन कराने से समस्त दोषों का नाश होता है। शास्त्रों में कन्या के विभिन्न रूपों को भोग अर्पित करने का भी निर्देश है। इससे आपकी सभी इच्छाएं पूरी होंगी।
दो वर्ष की कन्या को कौमारी कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि इसके पूजन से दुख और दरिद्रता समाप्त हो जाती है।
तीन वर्ष की कन्या त्रिमूर्ति मानी जाती है। त्रिमूर्ति के पूजन से धन-धान्य का आगमन और संपूर्ण परिवार का कल्याण होता है।
चार वर्ष की कन्या कल्याणी नाम से संबोधित की जाती है। कल्याणी की पूजा से सुख-समृद्घि मिलती है।
पांच वर्ष की कन्या रोहिणी कही जाती है। रोहिणी के पूजन से व्यक्ति रोग-मुक्त होता है।
छह वर्ष की कन्या को कलिका कहा जाता है। कलिका की अर्चना से विद्या और राजयोग की प्राप्ति होती है।
सात वर्ष की कन्या को चण्डिका कहा जाता है। चण्डिका की पूजा-अर्चना और भोजन कराने से ऐश्वर्य मिलता है।
आठ वर्ष की कन्या को शाम्भवी कहा जाता है। शाम्भवी की पूजा-अर्चना से लोकप्रियता प्राप्त होती है।
नौ वर्ष की कन्या दुर्गा की अर्चना से शत्रु पर विजय मिलती है तथा असाध्य कार्य सिद्घ होते हैं।
दस वर्ष की कन्या सुभद्रा कही जाती है। सुभद्रा के पूजन से मनोरथ पूर्ण होते हैं और सुख मिलता है।
यह भी विधान है कि पहले दिन एक कन्या और इस तरह बढ़ते क्रम में नवें दिन नौ कन्याओं को नौ रात्रि के नौ दिनों में भोजन करवाने से मां आदि शक्ति की कृपा प्राप्त होती है।