1857 की क्रांति के बाद भारत के गद्दारों को इकट्ठा करके बनाई गई थी कांग्रेस पार्टी ,पढ़े पूरा लेख !

भारत के कुछ गद्दार राजघरानों के अंग्रेजों से मिल जाने के कारण 1857 की क्रांति विफल हो चुकी थी | देश को स्वतंत्र कराने वाले योद्धाओं को अंग्रेजों ने ढूंढ ढूंढ कर नगरों में सार्वजनिक रूप से जिंदा जला दिया था |

चारों तरफ अंग्रेजो के खिलाफ भय और असंतोष का भाव था | अंग्रेज बराबर यह समझ रहे थे कि 1857 जैसी क्रांति कभी भी दुवारा घट सकती है इसीलिए “भारतीय दंड संहिता 1860” कठोरता से लागू की गई थी साथ ही “आर्म्स एक्ट1959” के नाम पर आम हिंदुस्तानियों के हथियारों को अंग्रेजों द्वारा जप्त कर लिया गया किंतु अंग्रेजों ने इस को पर्याप्त ना समझा और भारतीयों को मनोवैज्ञानिक रूप से अपनी तरफ मिलाने के लिए एक ऐसे राजनीतिक मंच का निर्माण करने पर विचार किया जिसमें अंग्रेजों की मानसिकता के भारतीय लोग उस मंच के कर्ताधर्ता होकर आम जनमानस को अंग्रेजों के पक्ष में कर सकें |

इसीलिए अंग्रेजों द्वारा चाटुकार भारतीयों को “सर” की उपाधि और सुविधाएं दी गई बहुत से राज घरानों को धन और अधिकार भी दिए गये | इसी दृष्टिकोण से हर शहर में अंग्रेजों द्वारा कॉफी हाउस और गोल्फ क्लब की स्थापना की गई थी | जहां पर बिटिश मानसिकता के गद्दार भारतीय जाकर अंग्रेजों से दिशा निर्देश प्राप्त करते थे और अंग्रेजो के कहे अनुसार हिंदुस्तानियों को अंग्रेजों के पक्ष में बरगलाते थे | इसी क्रम में भारत के राजनीतिक मंच के निर्माण के लिए कांग्रेस पार्टी की स्थापना 28 दिसम्बर, 1885 ई. को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना अवकाश प्राप्त आई.सी.एस. अधिकारी स्कॉटलैंड निवासी ऐलन ओक्टोवियन ह्यूम (ए.ओ. ह्यूम) ने ‘थियोसोफ़िकल सोसाइटी’ के मात्र 72 राजनीतिक कार्यकर्ताओं के सहयोगसे की थी। यह अखिल भारतीय स्तर पर राष्ट्रवादकी पहली सुनियोजित अभिव्यक्ति थी।

आखिर इन 72 लोगो ने कांग्रेस की स्थापना क्यों की और इसके लिए यही समय क्यों चुना? यह प्रश्न के साथ एक मिथक अरसे से जुड़ा है, और वह मिथक अपने आप में काफ़ी मज़बूती रखता है। ‘सेफ़्टीवाल्ट’ (सुरक्षा वाल्व) का यह मिथक पिछली कई पीढ़ियों से विद्यार्थियों एवं राजनीतिक कार्यकर्ताओं के जेहन में घुट्टी में पिलायाजा रहा है। लेकिन जब इतिहास की गहराईयों को झाँकते हैं, तो पता चलेगा कि इस मिथक में उतनादम नहीं है, जितना कि आमतौर पर इसके बारे में माना जाता है।

मिथक यह है कि ए.ओ. ह्यूम और उनके 72 साथियों ने अंग्रेज़ सरकार के इशारे पर ही भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना की थी। उस समय के मौजूदा वाइसराय लॉर्ड डफ़रिन के निर्देश, मार्गदर्शन और सलाह पर ही हयूम ने इस संगठन को जन्म दिया था, ताकि 1857 की क्रान्ति की विफलता के बाद भारतीय जनता में पनपते असंतोष को हिंसा के ज्वालामुखी के रूप में बहलाने और फूटने से रोका जा सके, और असतोषकी वाष्प’ को सौम्य, सुरक्षित, शान्तिपूर्ण औरसंवैधानिक विकास या ‘सैफ्टी वाल्व’ उपलब्ध कराया जा सकें।

‘यंग इंडिया’ में 1961 प्रकाशित अपने लेख में गरमपथी नेता लालालाजपत राय ने ‘सुरक्षा वाल्व’ की इस परिकल्पना का इस्तेमाल कांग्रेस की नरमपंथी पक्ष पर प्रहार करने के लिये किया था। इस पर लंम्बी चर्चा करते हुए लाला जी ने अपने लेख में लिखा था कि “कांग्रेस लॉर्ड डफ़रिन के दिमाग की उपज है।” इसके बाद अपनी बात आगे बढ़ाते हुए उन्होंने लिखा था कि “कांग्रेस कीस्थापना का उद्देश्य राजनीतिक आज़ादी हासिल करने से कही ज़्यादा यह था कि उस समय ब्रिटिश साम्राज्य पर आसन्न खतरो से उसे बचाया जा सकें।” यही नहीं उदारवादी सी. एफ. एंड्रूज और गिरजा मुखर्जी ने भी 1938 ई. में प्रकाशित ‘भारत में कांग्रेस का उदय और विकास में सुरक्षता बाल्ब’ की बात पूरी तरह स्वीकार की थी।

1939 ई. में ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ के संचालक एम.एस. गोलवलकर ने भी कांग्रेस की धर्म-निरपेक्षता के कारण उसे गैर-राष्ट्रवादी ठहराने के लिए ‘सुरक्षा वाल्व’ की इस परिकल्पना का इस्तेमाल किया था।उन्होंने अपने परचे ‘वी’ (हम) में कहा था कि हिन्दू राष्ट्रीय चेतना को उन लोगो ने तबाह कर दिया, जो राष्ट्रवादी होने का दावा करते हैं।’ गोलवलकर के अनुसार, ह्यूम कॉटर्न और वेडरबर्न द्वारा 1885 ई. में तय की गई नीतियाँ ही ज़िम्मेदार थीं- इन लोगो ने उस समय उबल रहे राष्ट्रवाद के ख़िलाफ़ सुरक्षा वाल्व के तौर पर कांग्रेस की स्थापना की थी।

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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