क्या हिंदुओं का सर्वनाश मंदिरों से होगा ? Yogesh Mishra

मंदिरों की उत्पत्ति हिन्दू समाज को धर्म अनुसार सुव्यवस्थित तरीके से बांधे रखने के लिए हुई थी ! कालांतर में अलग-अलग समुदाय के उपासकों द्वारा अलग-अलग मंदिरों का चलन शुरू हुआ ! जैसे शंकर जी का मंदिर, हनुमान जी का मंदिर या देवी दुर्गा का मंदिर आदि आदि !

धर्म के व्यवसायीकरण के साथ मंदिरों की भी मार्केटिंग शुरु हो गई ! अब एक ही शहर में हनुमान जी के कई मंदिर होते हुए भी कौन सा मंदिर सबसे ज्यादा हिंदुओं को आकर्षित करता है ! इसके लिए मंदिरों का महत्व और लाभ तरह-तरह से प्रचारित किया जाने लगा ! मंदिरों में बड़े-बड़े धार्मिक कार्यक्रम आयोजित होने लगे और सामूहिक विवाह आदि की सुविधाएं भी उपलब्ध कराई जाने लगी ! लेकिन इन सब कार्यों का उद्देश्य एक ही था अधिक से अधिक हिन्दू भीड़ को “धन के लिये” आकर्षित करना न कि धर्म की रक्षा के लिये !

यही प्रक्रिया लगभग हर तरह के देवी देवताओं के मंदिर में अलग-अलग दिन या पूजा का बहाना करके अपनाई जाने लगी ! जैसे सोमवार को शिव पूजा, मंगल को हनुमान पूजा, बुध को दुर्गा पूजा, वृहस्पति को साईं पूजा आदि ! इसका परिणाम यह है हुआ कि हिन्दू “धर्म और मंदिरों” के नाम पर छोटे-छोटे गुटों में बंट गया और हिन्दुओं की संगठनात्मक सोच ख़त्म हो गई !

प्रतिस्पर्धा के इस दौर में अब मंदिर के व्यवस्थापकों का एक मात्र उद्देश्य होता है कि अधिक से अधिक हिंदुओं को कैसे हम अपने मंदिर की ओर आकर्षित करें ! जिससे हमारे मंदिर में आय के स्रोतों में वृद्धि हो और हमारा वर्चस्व समाज में कायम रहे ! भले ही बाद में मंदिर की आय और संपत्ति पर कब्ज़ा करने के लिये कोर्टओं में मुक़दमा ही क्यों न लड़ना पड़े ! कोर्ट और प्रशासन भी विवाद को सुलझता न देख कर रिसीवर नियुक्त कर हिन्दू धन से पोषित मंदिर अपने नियंत्रण में ले लेती है !

इसके बाद भी मंदिरों की इसी प्रतिस्पर्धात्मक दौड़ में कुछ मंदिर आर्थिक रूप से बहुत आगे निकल गये और उन मंदिरों की आय दान, पूजा, भेंट या प्रसाद वितरण आदि से कई करोड़ों रुपए वार्षिक हो गई ! इन मंदिरों में प्राप्त होने वाला यह अकूत धन अब टैक्स के दायरे में भी आ गया है ! इस टैक्स के संग्रहित पैसों से किसी भी मंदिर या हिंदू का कोई विकास नहीं होगा बल्कि हिंदुओं को शत्रु मानने वाले अल्पसंख्यक समाज को सशक्त करने के लिये यह धन प्रयोग किया जायेगा और इस पर कोई चर्चा भी कहीं नहीं होगी क्योंकि यह अल्पसंख्यक समाज राजनीति में बहुत बड़ा वोट बैंक हैं !

इसी हिन्दू मंदिरों के धन से उस अल्पसंख्यक समाज के लोगों को बहुत कम मूल्य पर उनकी शिक्षा, भोजन, आवास, बिजली, पानी आदि सभी कुछ उपलब्ध करवाया जायेगा और बहुसंख्यक हिंदू चाहे भले ही इन अल्पसंख्यकों के मुकाबले अधिक गरीब और बेसहारा क्यों न हो उनके हितों के लिए धर्म के आधार पर कुछ भी खर्च नहीं किया जायेगा !

यहीं पर अब हिन्दु मंदिरों को संयमित होने की आवश्यकता है ! उन्हें अपने से कमजोर, बीरन, उजड़े मंदिर गोद लेने चाहिये तथा संयुक्त रूप से हिन्दुओं के दिशा निर्देश के लिये पूरे विश्व में कोई एक दिन और समय निश्चित करना चाहिये ! जिससे नीति के तहत हिन्दुओं की रक्षा और विकास के लिये कार्य किया जा सके ! जैसे अन्य संप्रदाय में होता है शुक्रवार या रविवार का दिन आदि ! अर्थात अपनी समस्त आय हिन्दुओं के विकास पर खर्च कर देना चाहिये ! वर्ना वह दिन दूर नहीं जब असंगठित हिन्दू समाज हिन्दू मंदिरों के धन से ही नष्ट हो जायेंगे !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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