कुंडली में बने कुछ विशेष ग्रह-योग ही हमारे जीवन में विदेश से जुड़कर काम करने या विदेश यात्रा का योग बनाते हैं !
हमारी जन्मकुंडली में बारहवे भाव का सम्बन्ध विदेश और विदेश यात्रा से जोड़ा गया है इसलिए दुःख भाव होने पर भी आज के समय में कुंडली के बारहवे भाव को एक सुअवसर के रूप में देखा जाता है !
जन्म कुंडली में सूर्य लग्न में स्थित हो तब व्यक्ति विदेश यात्रा करने की संभावना रखता है !
कुंडली में शनि बारहवें भाव में स्थित हो तब भी विदेश यात्रा के योग बनते हैं !
वहीं कुंडली में बुध आठवें भाव में स्थित हो या कुंडली में बृहस्पति चतुर्थ, छठे, आठवें या बारहवें भाव में स्थित है तब भी विदेश यात्रा के योग होते है !
इसी तरह कुंडली में चंद्रमा ग्यारहवें या बारहवें भाव में स्थित हो तब भी विदेश यात्रा के योग बनते हैं !
वहीं शुक्र जन्म कुंडली के छठे, सातवें या आठवें भाव में स्थित हो या राहु कुंडली के पहले, सातवें या आठवें भाव में स्थित हो, तब विदेश जाने का सुख मिलता है !
पारंपरिक भारतीय ज्योतिष के अनुसार तीसरे भाव और बारहवें के अधिपति की दशा या अंतरदशा में जातक छोटी यात्राएं करता है !
वहीं नौंवे और बारहवें भाव के अधिपति की दशा या अंतरदशा में लंबी यात्राओं के योग बनते हैं !
छोटी और लंबी यात्रा का पैमाना सापेक्ष है ! छोटी यात्रा कुछ सप्ताह से लेकर कुछ महीनों तक की हो सकती है तो लंबी यात्रा कुछ महीनों से सालों तक की !
इसी के साथ छोटी यात्रा जन्म या पैतृक निवास से कम दूरी के स्थानों के लिए हो सकती है तो लंबी यात्राएं घर से बहुत अधिक दूरी की यात्राएं भी मानी जा सकती हैं !
1 यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में चन्द्रमाँ पाप ग्रहों से पीड़ित हो, नीच राशि में बैठा हो, अमावस्या का हो, या किसी अन्य प्रकार बहुत पीड़ित हो तो ऐसे में विदेश जाने में बहुत बाधायें आती हैं और विदेश जाकर भी कोई लाभ नहीं मिल पाता !
2 यदि कुंडली के आठवें भाव में पाप ग्रह हों या कोई पाप योग बना हो तो इससे विदेश जाने में बाधायें आती हैं और विदेश जाने पर भी संतोषजनक सफलता नहीं मिलती !
3 यदि कुंडली के बारहवे भाव में भी कोई पाप योग बन रहा हो तो यह भी विदेश यात्राओं में बाधक होता है !
इसके इतर विदेश यात्रा से अर्थ यह लगाया जाने लगा है कि जातक घर से दूर और लाभ या हानि कमाने वाला समय ! यानी आजीविका के लिए परदेस गमन ही विदेश यात्रा मानी जाएगी !
व्यय स्थान में तृतीय स्थान का प्रवास होने पर, सप्तम, नवम तथा द्वादश स्थानों का प्रवास होने पर विदेश में कितने समय तक निवास होगा इसके बारे में भी आप जान सकते हैं !!
1 तृतीय स्थान का प्रवास होने पर – व्यय स्थान में तृतीय स्थान का प्रवास होने पर जन्म स्थान से नजदीक स्थान में प्रवास होने की सम्भावना रहती हैं !
2 सप्तम स्थान का प्रवास होने पर – व्यय स्थान में सप्तम स्थान का प्रवास होने पर जीवन साथी के साथ प्रवास करने के योग बनते हैं !
3 नवम स्थान से प्रवास – व्यय स्थान में नवम स्थान के प्रवास के होने पर आपकी कुंडली में जन्म स्थान से दूरदराज के क्षेत्रों की यात्रा करने के योग बनते हैं !
4 द्वादश स्थान से प्रवास होने पर – व्यय स्थान में द्वादश स्थान से प्रवास होने पर आपकी कुंडली में विदश जाने का योग बनता हैं !
5 पंचम व नवम स्थान – अगर आपकी कुंडली में पंचम व नवम स्थान परिवर्तन कर रहे हो तो आपकी कुंडली में उच्च शिक्षा प्राप्त करने की यात्रा के योग बन रहे हैं !
6 पापग्रह – यदि आपके व्यय स्थान में पापग्रह का योग बन रहा हो तो आपको यात्रा में हानि हो सकती हैं !
7 लग्नेश – अष्टमेश – अगर आपके व्यय स्थान में लग्नेश – अष्टमेश का कुयोग बन रहा हैं तो यात्रा में कोई दुर्घटना हो सकती हैं !
8 नवमेश पंचम – अगर आपके कुंडली में नवमेश पंचम में हो तो आपके बच्चो के द्वारा आपको यात्रा कराने के योग बनते हैं !
9 गुरु – यदि आपके प्रवास स्थान में गुरु का प्रभाव हो तो
आप कोई तीर्थ यात्रा कर सकते हैं !
10 वायु तत्व – वायु तत्व राशी वाले व्यक्ति का हवाई यात्रा करने का योग बनता हैं ! बाहर देश जाने की संभावना बाहर देश जाने की संभावना है !
11 जल तत्व – जल तत्व राशी वाले व्यक्ति के जल यात्रा करने के अवसर प्राप्त हो सकते हैं !
12 अग्नि तत्व – अग्नि तत्व राशी वाले व्यक्ति सडक यात्रा कर सकते हैं ! यदि आपकी कुंडली में ये स्थान और इनके अधिपति अधिक बलवान हो तो आपके जीवन में यात्रा करने के योग बनते ही रहते है !
यदि आपके व्यय स्थान में शनि, राहू, नैपच्युन ग्रहों में से एक हैं तो आप विदेश यात्रा अवश्य करेंगे !