नेताजी सुभाष चन्द्रबोस के साथ आवाम का विश्वासघात : Yogesh Mishra

तुम मुझे खून दो, मैं तुम्‍हें आजादी दूंगा ! जय हिन्द !

जैसे नारों से आजादी की लड़ाई को नई ऊर्जा देने वाले नेताजी सुभाष चंद्र बोस भारत के उन महान स्वतंत्रता सेनानियों में रहे हैं ! जिनसे लम्‍बे समय तक युवा वर्ग प्रेरणा लेता रहा है ! उनका ‘जय हिन्द’ का नारा भारत का राष्ट्रीय नारा बन गया ! सिंगापुर के टाउन हाल के सामने नेताजी ने ‘दिल्ली चलो’ का नारा दिया था ! तो अंग्रेजों से ज्यादा भारतीय नेता हड़बड़ा गये ! सुभाष चंद्र बोस को जलियांवाला बाग वाले वीभत्स कांड ने उन्हें इस कदर विचलित कर दिया कि वह भारतीय प्रशासनिक सेवा की नौकरी छोड़ कर आजादी की लड़ाई में कूद पड़े !

यह तो है एक जांबाज शख्सियत, जो सच और न्‍याय के लिये जीवन भर जूझता रहा ! ले‍किन आज नेता जी के वंशजों में वह दमखम रंचमात्र भी नहीं बचा है ! ऐसे लोग अब हकीकत जानने के बजाय श्‍वान-श्रंगाल यानी सियार की तरह हुआ-हुआ करने की आदत पाले लिये हैं ! ऐसे लोग न तो सच बोलना चाहते हैं और न ही इनमें सच का सामना करने का साहस ही है ! इनके पास न तो कोई सवाल उपजते हैं और न ही वह सवालों का समाधान ही खोजना चाहते हैं ! दरअसल उन्‍हें अब सवाल सहन ही नहीं होते हैं ! वह केवल चाटुकारिता और मूर्खतापूर्ण कृत्‍य करते-करते कुछ छोटे छोटे स्वार्थों के लिये अंध-भक्‍त ही बने रहना चाहते हैं !

इसका एहसास मुझे जीवन में तब हुआ ! जब 1984 में कहा गया कि फैजाबाद में रहे गुमानामी बाबा ही दरअसल नेता जी सुभाषचंद्र बोस हैं ! यह भी कहा गया कि वह भारतीय नेताओं और अंग्रेजी हुकुमत के गुप्त समझौते के तहत द्वतीय विश्व युद्ध के युद्ध अपराधी हैं ! इसी वजह से वह फैजाबाद में रह कर एक तपस्वी का जीवन व्‍यतीत कर रहे हैं ! उस संधि के तहत भारत सरकार नेता जी के जिन्दा या मुर्दा मिलने पर उन्हें ब्रिटिश सरकार के हवाले कर देगी !

इस संदर्भ में सत्यता को जानने के लिये मैं अपने साथी श्री विश्व बंधु तिवारी जी के साथ फैजाबाद गया और गुमनामी बाबा के करीबी लोगों से मिला ! जिसमें फैजाबाद डिग्री कॉलेज के अंग्रेजी शिक्षक प्रोफेसर वी.एन.अरोड़ा से लंबी बातचीत हुई थी ! इस पूरी बातचीत में प्रोफेसर अरोड़ा ने अपना निष्कर्ष निकाला था कि उन्हें लगता है कि गुमनामी बाबा ही नेताजी सुभाष चंद्र बोस थे !

लेकिन बाद में उनका यह भी कहना था कि अगर वह नेताजी सुभाष चंद्र बोस नहीं थे तो वह व्यक्ति निश्चित रूप से इस दुनिया का सबसे बड़ा फ्राडिया यानी धोखेबाज या बहुरूपिया था ! प्रोफेसर वी.एन.अरोड़ा से हुई इस बातचीत को यूट्यूब पर भी डाला गया था ! प्रो अरोड़ा से हुई इस बातचीत के वीडियो को दर्शकों ने खूब सराहा, लाइक किया, शेयर किया और करीब 500 से ज्यादा लोगों ने इस वीडियो को डिसलाइक भी किया ! इतना ही नहीं, करीब इतने ही लोगों ने मुझे बेहिसाब गालियां भी दी ! जो उस वीडियो के लिंक पर आज भी मौजूद है !

अब प्रश्न यह होता है कि उस वीडियो को लाइक या डिसलाइक करने वाले या उस पर गालियां देने वालों के पास वह कौन सा आधार था ! जिसके आधार पर वह अपनी अभिव्यक्ति दे रहे थे ! निश्चित तौर से कहा जा सकता है कि वह सभी बिना किसी आधार के अपनी राय दे रहे थे और उनमें से किसी में भी यह सामर्थ्य भी नहीं था कि वह इस घटनाक्रम की सत्यता को जान सके !

कहने का तात्पर्य है कि हमारे देश में सूचनायें मनोरंजन के तौर पर देखी और समझी जाती हैं ! जो सूचनायें किसी व्यक्ति के संस्कार और रूचि के अनुरूप होती हैं वह उसे लाइक कर देता है और जो सूचनायें किसी भी व्यक्ति के संस्कार, रुचि या स्वार्थ के विपरीत होती हैं ! उसमें वह बिना सत्यता जाने अनावश्यक रूप से गाली गलौज करने लगता है या उसे डिसलाइक कर देता है !

ऐसे संवेदना विहीन, अज्ञानी, मूर्ख समाज के लोगों के बीच में आप किस क्रांति की उम्मीद करते हैं ! जिस व्यक्ति ने अपना संपूर्ण जीवन राष्ट्र के नाम समर्पित कर दिया ! पूरी दुनिया में घूम-घूम कर जिसने देश की आजादी के लिये लड़ाई लड़ी और अपना सर्वस्व निछावर कर दिया ! ऐसे महान व्यक्ति की सत्यता जानने के लिये आज भारत के आम आवाम के पास समय नहीं है !

भारत का अधिकांश नागरिक वास्तव में एक संवेदना विहीन, नितांत स्वार्थी और तत्काल लाभ प्राप्त करने की इच्छा रखने वाला, मंदबुद्धि का व्यक्ति है ! यहां पर किसी में कोई दूरदर्शिता नहीं है और न ही कोई व्यक्ति किसी भी घटना की सत्यता को जानने की इच्छा रखता है ! परिश्रम विहीन अपने को अति विद्वान समझने वाला और किसी भी व्यक्ति के विचारों को बेचकर अधिक से अधिक और जल्दी से जल्दी कितना धन कमाया जा सकता है इस तरह का लोभी, धूर्त, समाज के नागरिकों से नेता जी किस क्रांति की उम्मीद करते थे ! यदि भारत का आम नागरिक नेताजी को समझ पाता तो शायद उन्हें देश छोड़कर बाहर जाने की आवश्यकता ही न पड़ती !

शायद नेताजी सुभाष चंद्र बोस जैसा दूरदर्शी नेता हमें जो ईश्वर की कृपा से मिला ! हमने उसका मोल नहीं समझा ! यह हमारा दुर्भाग्य है ! मेरा यह विश्वास है कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने तिब्बत के लामा सन्यासियों के मध्य रहकर जो परकाया प्रवेश का विज्ञान समझ लिया था ! उसके द्वारा वह आज भी हम लोगों के मध्य हैं और उचित समय पर राष्ट्र की रक्षा के लिये पुनः स्वप्रेरणा से प्रकट होंगे ! ऐसा मेरा विश्वास है !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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