हाँ मैं जातिवादी हूँ ! : Yogesh Mishra

किसी मुर्ख ने फेसबुक पर कल मुझसे कहा कि आपको अपने नाम के आगे से जाति सूचक शब्द हटा देना चाहिये ! जबकि वह स्वयं गुप्ता लगाये हुये थे ! तो मैने सोचा कि मैं उनको ही नहीं पूरी दुनिया को बतला दूँ कि मैं शुद्ध जातिवादी हूँ ! जब हमारा प्रधानमंत्री अपने को तेली बतला कर वोट मांग सकता है तो मुझे अपने को ब्राह्मण बतलाने में किस बात की शर्म है !

वैसे भी आजकल आर.एस.एस. से लेकर बी.जे.पी. कांग्रेस आदि जितने भी राजनीतिक दल हैं या सामाजिक संगठन हैं ! यह सभी भारत की जातिवादी व्यवस्था को खत्म कर देना चाहते हैं ! कुछ तो अज्ञानता के कारण और कुछ लोग विदेशों से पैसा पाकर धर्मांतरण को बढ़ावा देने के लिये भारत की जातिवादी व्यवस्था को खत्म कर देना चाहते हैं !

क्योंकि इन विदेशियों को मालूम है कि सदियों तक भारत ने जो पूरे विश्व पर शासन किया ! उसकी मूल वजह भारत की जातिवादी व्यवस्था ही थी ! जिसमें समाज का हर वर्ग जाति के आधार पर वर्गीकृत होकर अपने-अपने क्षेत्र में पीढ़ी दर पीढ़ी ऐसी विशेषज्ञता प्राप्त कर लेता था कि उसे उसी कार्य से सम्पूर्ण विश्व में यश प्राप्त हो जाता था !

मूर्तिकला, संगीत, ज्योतिष, कृषि, मौसम विज्ञान, तंत्र, कर्मकांड, धातु विज्ञान आदि कोई भी कला हो व्यक्ति अपनी अनूठी जाति व्यवस्था के आधार पर पीढ़ी दर पीढ़ी उसमें विशेषज्ञता हासिल कर लेता था और यही विशेषज्ञता उस व्यक्ति को अन्य से अनूठा बनाती थी और यह अनूठा पन ही उसे विश्व गुरु बनता था ! जिससे भारत तो स्वत: ही विश्व गुरु बन जाता था !

जिस जाति विहिन समाज में नाकारा और अयोग्य लोगों की भरमार होती है और जो लोग लूट, डकैती, ठगी आडम्बर आदि से ही अपने समाज का संचालन करते हैं ! वह कभी भी एक व्यवस्थित समाज की जातिवादी व्यवस्था की पक्षधर नहीं हो सकते ! क्योंकि वह स्वयं किसी भी क्षेत्र में पीढ़ी दर पीढ़ी से विशेषज्ञ नहीं रहे हैं ! तो वह यह नहीं चाहते कि किसी अन्य समाज में इस तरह की विशेषज्ञता हासिल हो और वह समाज हमसे आगे बढ़ जाये ! अतः वह विभिन्न कुतर्कों के द्वारा या समाज के मंद बुद्धि व्यक्तियों को भड़का कर आपकी भी सदियों पुरानी जाति आधारित विशेषज्ञता की सामाजिक संरचना को नष्ट कर देना चाहते हैं !

मैं इसलिये जातिवादी हूँ क्योंकि मैं हिन्दू हूँ अर्थात सनातन धर्मी हूँ ! और सनातन धर्म मे सदैव से जातियाँ रही हैं ! यही इस धर्म के सामाजिक व्यवस्था की खासियत है और यही हिन्दू समाज के उत्थान का कारण रहा है ! हमारे अनेक शास्त्रों में भी जातियों की बात आती है ! मेरा उद्देश्य भी यही है कि प्रत्येक जाति में विशेषज्ञता और एकता दोनों ही लायी जाये क्योंकि यही एक व्यवस्थित समाज की पहचान है !

प्रत्येक जाति में अपनी जाति का एक विशेष स्वाभिमान होता है जो उसे कुछ अतिरिक्त करने के लिये प्रेरित करता है ! इसीलिये जाति पर आधारित सेना की बटालियन जब संसाधनों और बल में कमजोर होती है ! तो जाति की ऊर्जा ही उसे अपने बटालियन की इज्जत और स्वाभिमान रखने के लिये अतिरिक्त साहस दिखाने को प्रेरित करती है ! इसीलिये जाति आधारित धर्म के शुद्ध स्वरूप की हमारे समाज में स्थापना की है ! जिससे विशेषज्ञता के आधार पर भारत पुनः विश्व गुरु बन सके ! न कि जातियाँ को ही समाप्त कर दिया जाये !

जातियाँ ईश्वर ने बनाई हैं ! जाति केवल मानव में ही नही बल्कि ब्रह्माण्ड तक में हैं ! पृथ्वी, सूर्य, चन्द्र, तारे, नदी, वन, पर्वत आदि सभी की अपनी विशेष जातियां हैं तभी तो इन सभी के गुण धर्म अलग अलग हैं ! जैसे सूरज जो गर्मी देता है वह चाँद नहीं दे सकता है ! जब जातियाँ इस अनन्त आकाश में हैं ! तो मनुष्य में क्यों नहीं होनी चाहिये !

पशु-पक्षी, किट-पतंग की भिन्न भिन्न जातियाँ ईश्वर ने रची हैं ! ईश्वर ने इनमें तीन गुणों के भिन्न भिन्न संयोग से सृष्टि के प्रत्येक जीव, चराचर जगत को रचा है ! किसी एक के गुण धर्म दूसरे में नही पाये जाते हैं !

अतः प्रकृति द्वारा निर्मित किसी भी वस्तु या जीव में कही भी कोई समानता या बराबरी नही है अपितु सर्वत्र भेद विभेद ही है ! यह भेद विभेद सर्वत्र गुण भेद, स्वभाव भेद, कर्म भेद और बुद्धि भेद के कारण ही होता है ! यह भेद ही ईश्वरीय व्यवस्था का एक अभिन्न हिस्सा है ! यही इस प्रकृति की खूबसूरती है ! जैसे प्यास पानी से ही बुझ सकती है ! रेगिस्तान के बालू से नहीं ! क्योंकि दोनों के गुण धर्म अलग-अलग हैं !

अत: कुछ मूर्ख मानवों को छोड़ कर जगत का प्रत्येक शरीर धारी जीव अपने जाति के धर्म अर्थात ईश्वर के जन्म विधान का पालन करता है ! जैसे पशु पक्षी अपने ही स्वर में बोलते हैं और अपने ही स्वभाव व्यवस्था के अनुरूप जीवन यापन करते हैं ! सभी वृक्ष अपने नश्ल के अनुसार ही फल देते हैं ! आदि आदि ! पर केवल कुछ मूर्ख मानव ही प्रकृति की व्यवस्था के विरुद्ध जाकर ईश्वरीय व्यवस्था का सर्वनाश कर देना चाहते हैं ! जाति व्यवस्था भारत की समस्या नही अपितु भारत के लिये वरदान है !

इसीलिये महाभारत के युद्ध में जब अर्जुन युद्ध करने को तैयार नहीं था और कृष्ण से कहता है कि वह शेष जीवन भिक्षा मांग कर गुजार लेगा लेकिन अपने भाई बंधु गुरु आचार्य के विरुद्ध युद्ध नहीं करेगा ! तब भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा था कि हे अर्जुन तू क्षत्रिय है ! सामाजिक वर्ण व्यवस्था के तहत धर्म की रक्षा करना ही तेरा कर्तव्य है ! इसलिये अन्याय और अधर्म के मार्ग से यदि परमात्मा भी आता है तो तू युद्ध कर क्योंकि क्षत्रिय होने के नाते धर्म के रक्षार्थ युद्ध करना ही तेरा धर्म है ! यदि उस समय सामाजिक जातिवादी व्यवस्था न होती तो शायद धर्म के रक्षार्थ महाभारत का युद्ध ही न हुआ होता !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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