वैदिक ज्योतिष में बाधक ग्रह का जिक्र किया गया है तो कुछ ना कुछ अरिष्ट होता ही होगा, लेकिन इन अनिष्टकारी बातों का अध्ययन बिना सोचे समझे नहीं करना चाहिये ! कुंडली की सभी बातों का बारीकी से अध्ययन करने के बात ही किसी नतीजे पर पहुंचना चाहिये !
व्यक्ति विशेष की जन्म कुंडली में बाधक ग्रह का सूक्ष्मता से अध्ययन आवश्यक है कि वह कब अरिष्टकारी हो सकते हैं ! हर कुंडली में यह अरिष्टकारी ग्रह सुनिश्चित होते ही हैं ! इसलिए पहले यह निर्धारित करना चाहिये कि ये कब अशुभ फल प्रदान कर सकते हैं !
एकादश भाव को जन्म कुंडली का लाभ स्थान का लाभ स्थान माना गया है ! कुंडली के नवम भाव को भाग्य स्थान के रुप में भी जाना जाता है और जन्म कुंडली के सप्तम भाव से हर तरह की साझेदारी देखी जाती है ! जीवनसाथी का आंकलन भी इसी भाव से किया जाता है !
जन्म कुंडली में जब एकादश भाव की दशा या अन्तर्दशा आती है तब यही माना जाता है कि व्यक्ति को लाभ की प्राप्ति होगी तो क्या हमें यह समझना चाइए कि चर लग्न के व्यक्ति को एकादशेश के बाधक होने से कोई लाभ नहीं मिलेगा? इसलिए एक ज्योतिषी को बिना सोचे समझे किसी नतीझे पर नहीं पहुंचना चाहिये !
इसी तरह से स्थिर लग्न के व्यक्ति की जन्म कुंडली में यदि नवमेश को सबसे बली त्रिकोण माना गया है और भाग्येश है तब यह कैसे अशुभ हो सकता है ? सप्तम भाव अगर बाधक का काम करेगा तब तो किसी भी व्यक्ति का वैवाहिक जीवन सुखमय हो ही नहीं सकता है ! इसका अर्थ यह हुआ कि द्वि-स्वभाव के लग्न वाले व्यक्तियों के जीवन में सदा ही बाधा बनी रह सकती हैं !
बाधक ग्रह के विषय में आँख मूंदकर बोलने से पहले कुंडली का निरीक्षण भली-भाँति करना जरूरी है !
एक अच्छे ज्योतिषी को बाधक ग्रह के विषय में कुछ भी कहने से पहले कुंडली को अच्छी तरह से जाँच लेना चाहिये तब किसी निष्कर्ष पर पहुंचना चाहिये ! किसी भी व्यक्ति की जन्म कुंडली के बाधक ग्रह तब ज्यादा अशुभ होते हैं जब वह दूसरे, तीसरे, सप्तम व अष्टम भाव के साथ संबंध स्थापित करें और जन्म कुंडली में शुभ योगो की कमी हो ! इसलिए बाधक ग्रह को लेकर आपको किसी भ्रम में नहीं रहना चाहिये और ना ही भयभीत ही होना चाहिये !