पूरी दुनिया में बस सिर्फ भारत ही एक ऐसा देश है ! जहां पर व्यक्ति संपूर्ण संपन्नता के बाद भी त्याग का जीवन जीना पसंद करता है ! इसका मूल कारण यह है कि हमारे आदर्श रहे भगवान श्री राम जो कि एक चक्रवर्ती सम्राट के बेटे थे !
जिन्होंने पिता के आदेश पर समस्त राजकीय सुखों को त्याग कर वनाप्रस्त का जीवन स्वीकार किया और उनके भाई लक्ष्मण ने भी बड़े भाई को देखकर उनकी प्रेरणा पर अपने सुखों को छोड़ दिया यहाँ तक नहीं भगवान श्री राम की पत्नी सीता जो कि स्वयं एक राजकुमारी थी उन्होंने भी अपने पति के त्याग से प्रेरित होकर राजकीय सुखों को छोड़ दिया !
बात यहीं ख़त्म नहीं हुई, जिस भारत के लिये केकई ने यह पूरा षड्यंत्र रचा था ! उस भरत ने भी अपने बड़े भाई को आदर्श मानते हुये राज सत्ता हाथ में आने के बाद भी अपनी स्वेच्छा से शासकीय सुखों को त्याग कर दूर जंगल में 14 वर्ष तक भूमिगत तपस्या का निर्णय लिया ! जिसमें शत्रुघ्न भी उनके सहयोगी थे !
राजा के त्याग को देखकर अयोध्या निवासियों ने भी 14 वर्ष तक संपूर्ण सांसारिक सुखों का त्याग कर दिया था जिस सामूहिक तक के प्रभाव से अयोध्या में काल की गति ठहर गई ! इसीलिए 14 साल तक अयोध्या में न किसी का जन्म हुआ और न ही किसी की मृत्यु हुई थी !
इसी तरह महात्मा बुद्ध, महावीर, विश्वामित्र, हरिश्चंद्र जैसे सैकड़ों नाम हैं जो या तो स्वयं चक्रवर्ती सम्राट थे या फिर राजाओं के पुत्र थे ! जिन्होंने अपना सर्वस्व त्याग कर स्वप्रेरणा से राजकीय सुखों को छोड़ कर एक तपस्वी जीवन जीना स्वीकार किया !
इन्हीं आदर्शों का प्रभाव भारतीय संस्कृति और समाज पर पड़ा, जिससे भारतीय संस्कृत में त्याग को सत्ता सुख से अधिक प्राथमिकता दी जाने लगी !
लेकिन काल और परिस्थितियों के बदलने के साथ-साथ अब इन धूर्त राजनीतिज्ञ लोगों ने इसी तपस्वी जीवन को सत्ता प्राप्त करने का मार्ग बना लिया !
और यह धूर्त लोग त्याग के स्थान पर अपनी गरीबी का रोना रोने लगे ! कोई सत्ता पाने के लिये कहने लगा कि मैं चाय बेचता था ! कोई बतलाने लगा मैं घर-घर अखबार बांटता था ! तो कोई कहता है कि मैं गरीब किसान का लड़का हूं ! तो कोई कहता है कि मेरी मां दूसरों के घरों में बर्तन मांजती थी ! वगैरा-वगैरा
अर्थात कहने का तात्पर्य है कि हमारे आदर्श पूर्वजों ने जिस शासकीय सुखों को त्याग कर जिस सिद्धांत की स्थापना की थी ! उसे आज के राजनीतिज्ञ उसके विपरीत अपने त्याग के स्थान पर अपनी लाचारी, गरीबी, बेबसी का हवाला देकर सत्ता सुख प्राप्त करना चाहते हैं !
और देश की भोली-भाली जनता उनके झूठे त्याग और गरीबी की कहानी सुनकर उन्हें आदर्श पुरुष मानकर अपनी सत्ता सौंप देती हैं ! फिर सत्ता पाते ही वह लोग जो कल तक अपने गरीबी और लाचारी की कहानियां सुनाया करते थे, वह आम जनमानस को गरीब और लाचार बनाने के हथकंडे अपनाने लगते हैं !
कभी आतंकवाद को खत्म करने के नाम पर नोटबंदी करते हैं, तो कभी करो में छूट के नाम पर जी.एस.टी. जैसी घातक योजनायें लागू करते हैं !
किंतु पूर्व के संतों का प्रभाव इतना अधिक है कि हजारों बार धोखा खाने के बाद भी आम जनमानस इन्हें संत ही मानता है और यदि आम जनमानस जब इन्हें संत नहीं मानती है तो यह धूर्त लोग सार्वजनिक मंचों से घोषणा करते हैं कि मैं अपना झोला उठा कर राजनीति छोड़ कर चला जाऊंगा !
सावधान रहिये ऐसे लोगों से क्योंकि विवेकपूर्ण त्याग एक अलग विषय है और गरीबी की कहानियां सुनाकर सत्ता में काबिज हो जाना एक अलग विषय है ! जो लोग गरीबी की कहानियां सुना कर सत्ता में काबिज होते हैं ! वह कभी भी सत्ता सुख छोड़ने का साहस नहीं कर सकते हैं !
ऐसा खतरनाक व्यक्ति आपको ही नहीं बल्कि संपूर्ण राष्ट्र को भी दरिद्र बनाकर छोड़ेंगे ! जो भारत की राजनीति में अब खुले तौर पर हो रहा है !!