शिक्षा का उद्देश्य मनुष्य का समग्र विकास है, जो भारतीय गुरुकुल शिक्षा पध्यति में हुआ करता था ! भारतीय सनातन गुरुकुल शिक्षा व्यवस्था को नष्ट करने के बाद अंग्रेजों ने कानून बनाकर अपनी अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था भारत में लागू की और उस अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था से रोजगार को सीधा जोड़ दिया अर्थात अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था की डिग्रियां जिन व्यक्तियों के पास हुआ करती थी ! उनको अंग्रेज अपने कार्यालयों में नौकरी दिया करते थे और जिन लोगों के पास अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था की डिग्रियां नहीं हुआ करती थी, वह कितने भी योग्य हो उन्हें जीविकोपार्जन के लिए अंग्रेज कभी भी अपने यहां नौकरी नहीं दिया करते थे !
अतः इस तरह आम जनमानस में यह अवधारणा फैलाई गई कि यदि सुख पूर्वक सुरक्षित जीवन यापन करना है, तो अंग्रेजों की नौकरी करने के लिए अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था में शिक्षित होना आवश्यक है ! क्योंकि अंग्रेजों की नौकरी करने के बाद मरते वक्त तक पेंशन के रूप में पैसा मिलता रहता है ! धीरे-धीरे इसी लालच में समाज का आम जनमानस अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था में अध्ययन करने के लिये लालायत रहने लगा ! इसका असर यह हुआ कि व्यक्ति का समग्र विकास करने वाले गुरुकुल बंद होने लगे और धीरे धीरे पूरे देश में आम जनमानस अंग्रेजों द्वारा चलाए गये पाठ्यक्रम के अनुरूप ही शिक्षा ग्रहण करने लगा !
जो बच्चे मेधावी थे, उन्होंने बहुत जल्दी ही अंग्रेजी पाठ्यक्रम को स्वीकार कर लिया लेकिन उसमें कुछ बच्चे ऐसे भी थे, जिनका बौद्धिक स्तर अधिक विकसित नहीं था ! उस स्थिति में अंग्रेजों ने इन बच्चों को विकसित करने के लिए अतिरिक्त शैक्षिक कक्षाएं देनी आरंभ की ! कालांतर में अंग्रेजों के चले जाने के बाद जब भारत आजाद हुआ तब भी वही अंग्रेजों द्वारा विकसित की गई शिक्षा पद्धति भारत में लागू बनी रही और जीविकोपार्जन का मानक भी वही अंग्रेजी शिक्षा पद्धति ही थी ! इसलिए जो भी व्यक्ति सुरक्षित जीवन यापन करना चाहता था, वह बाध्य हो गया इस अंग्रेजी शिक्षा पद्धति के तहत शिक्षा प्राप्त करने के लिये !
अंग्रेजों के समय में कमजोर बच्चों को जो अतिरिक्त कक्षाएं नि:शुल्क दी जाती थी ! वह वक्त के साथ ट्यूशन के रूप में बदल गयी और कालांतर में सामूहिक ट्यूशन कोचिंग के रूप में बदल गये ! और इनमें अतिरिक्त शिक्षा के नाम पर मोटी रकम बसूली जाने लगी !
अब इन कोचिंगों में नौकरी प्राप्त करने के लिये समग्र शिक्षा के स्थान पर “शॉर्टकट ट्रिक्स” द्वारा प्रतियोगी परीक्षाओं को पास करने के फार्मूले बताए जाते हैं ! जिनके द्वारा व्यक्ति में योग्यता हो या न हो यदि व्यक्ति ने “शॉर्टकट फार्मूले” समझ लियें हैं, तो वह किसी भी प्रतियोगी परीक्षा को आसानी से पास कर सकता है ! इस तरह के शॉर्टकट ट्रिक्स को सिखाने के लिये कोचिंग छात्रों के अभिभावक से मोटी रकम वसूल रही हैं !
और इन कोचिंगों के कारण जो शैक्षिक उत्पाद समाज में आ रहा है, वह समग्र न होकर “लक्ष्य भेदीय” है ! अर्थात जो बच्चे विषय की समग्र शिक्षा लेकर प्रतियोगी परीक्षाओं में बैठ रहे हैं ! वह असफल हो जा रहे हैं और जो बच्चे “लक्ष्य भेदीय” शॉर्टकट ट्रिक्स के तहत प्रतियोगी परीक्षाओं को दे रहे हैं, वह उन परीक्षाओं में उत्तीर्ण होकर आगे अपने शिक्षा के क्रम को जारी रख पा रहे हैं या नौकरी प्राप्त कर ले रहे हैं !
परिणामत: आई. आई. एम. और आई.आई.टी जैसे शिक्षण संस्थानों में योग्य छात्रों का अभाव हो गया है ! इसी के मद्देनजर अब प्रतियोगी परीक्षाओं में आई. आई. एम. और आई.आई.टी. जैसे संस्थानों ने अपना सिलेबस बदल दिया है ! जिससे ट्रिक्स के द्वारा प्रतियोगी परीक्षाओं को उत्तीर्ण कर बौद्धिक स्तर से अविकसित छात्र इन संस्थाओं में दाखिला न ले सकें !
कोचिंगों का प्रभाव यह है कि आज अभिभावक अपने बच्चे का भविष्य सुरक्षित करने के लिए कोचिंगों को मुंह मांगी रकम दे रहे हैं ! और उनको द्वारा बच्चों को जो शिक्षा दी जा रही है, वह प्रतियोगी परीक्षाओं में तो उन बच्चों को उत्तीर्ण करवा दे रहे हैं, लेकिन उस कोचिंगिया ज्ञान का जीवन में कोई भी उपयोग नहीं है और न ही बच्चे का समग्र विकास हो रहा है ! प्राय: देखा जाता है कि तकनीकी शिक्षा प्राप्त छात्र अपने घर के रोजमर्रा की छोटी मोटी चीजें जैसे टोस्टर, प्रेस, वाटर इमर्सर, नल, गैस चूल्हा आदि भी ठीक करना नहीं जानते हैं ! भले ही वह कितने भी अच्छे नम्बर से पास होते हों !