भारत को 20 टुकड़ो में तोड़ने की साजिश और दलित हित चिंतक | Yogesh Mishra

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद विश्व में दो महाशक्तियां थी ! एक अमेरिका और दूसरा रूस ! एक पूंजीवादी व्यवस्था का समर्थक था, तो दूसरा समाजवादी व्यवस्था का चिंतन था ! कालांतर में अमेरिका ने अपनी नीतियों के तहत समाजवादी व्यवस्था के चिन्तक राष्ट्र रूस को 15 स्वशासित टुकड़ों में बांट दिया !

ठीक यही स्थिति अमेरिका भारत की करना चाहता है ! अमेरिका की है इच्छा है कि भारत को 20 अलग-अलग टुकड़ों में बांट कर उन्हें स्वशासित राष्ट्र घोषित कर दिया जाये ! अर्थात यदि हम नहीं जागे तो वह दिन दूर नहीं जब हमें मध्य प्रदेश या पंजाब जाने के लिए वीजा पासपोर्ट की जरूरत पड़ेगी !

इसके लिए भारत विरोधी देशों ने पांच अलग-अलग खेल भारत में शुरू किये हैं ! पहला भारत के राष्ट्र प्रेमी चिंतक वर्ग “ब्राह्मण” के विरुद्ध पूर्व में शोषक होने का वातावरण तैयार करना ! क्योंकि भारत के खंड-खंड कर देने वाले यह जानते हैं कि जब तक भारतीय समाज में ब्राह्मणों का प्रभाव रहेगा, तब तक वह अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो पाएंगे !

दूसरा भारत में बहुत बड़े स्तर पर धर्मांतरण करवा कर भारत के आम नागरिकों को उनकी वंश परंपरा और धर्म से अलग कर देना ! चाहे इसके लिये धर्मगुरुओं को जेल में ही क्यों न बंद करवाना पड़े ! क्योंकि भारत विरोधी चिंतक यह जानते हैं कि जब तक भारत में धर्मगुरु सक्रीय रहेगें, तब तक भारत का आम नागरिक धर्म कथाओं के कारण अपने पूर्वजों पर गर्व करेगा और अपने धर्म का पालन करेगा और भारत में सब कुछ सही तरह से चलता रहेगा ! इन भारतीयों को धर्मभीरु होने के कारण इन्हें भारत के विरुद्ध भड़काया नहीं जा सकता है और इसलिये अगर भारत के आम नागरिकों को उनके धर्म गौरव की परंपरा से काटना है तो इसके लिये बहुत बड़े स्तर पर धर्मगुरुओं को नष्ट करके धर्मांतरण करवाना जरूरी है !

तीसरा भारत की राजनीति और उद्योगिक की जगत में बहुत बड़े स्तर पर विदेशी पूंजी का निवेश ! क्योंकि भारत के आम नागरिक का बौद्धिक स्तर इतना विकसित नहीं है कि वह बहुत दूर तक राष्ट्र के विषय में चिंतन कर सके ! ऐसी स्थिति में यदि भारत की राजनीति को महंगा कर दिया जाये तो इन राजनीतिज्ञों को निरंतर अपने राजनीति के लिये बहुत बड़े स्तर के विदेशी पूंजीपतियों के सहयोग की आवश्यकता पड़ेगी ! फिर राजनीतियों के लिए इस बड़े स्तर के धन की उपलब्धता विदेशी उद्योग जगत से ही होगी और वर्तमान में भारत के उद्योग जगत में यदि विदेशी निवेश को बढ़ा दिया जाये तो कालांतर वह दिन दूर नहीं होगा कि आर्थिक कारणों से भारत की राजनीति को वह विदेशी लोग विदेशी उद्योग पतियों की मदद से अपने अनुसार चला सकेंगे !

चौथा भारत की राष्ट्रवादी शिक्षा व्यवस्था को पंगु बनाए रखना ! भारत के आने वाली पीढ़ियों को भारत विरोधी और विदेशी चिंतकों की विचारधारा के अनुरूप बनाना है तो भारत में उनकी राष्ट्रवादी शिक्षा व्यवस्था से खत्म करना होगा और सभी प्रतियोगी परीक्षाओं में विदेशी पाठ्यक्रम शामिल करना होगा ! जिससे भारतीयों की आने वाली पीढ़ियां अपने पूर्वजों को धीरे-धीरे भूल जाएंगी और विदेशी हम भारतीयों के आने वाली पीढ़ियों को धन व नौकरी का लालच देकर अपने उद्देश्य के लिये गुलाम बना सकेंगे !

पांचवा किसी भी नीति से भारत की सभ्यता और संस्कृति को नष्ट करना ! इसके लिए चाहे एन.जी.ओ. के माध्यम से दबाव बनाकर भारतीय संसद या भारतीय न्याय व्यवस्था का ही सहारा क्यों न लेना पड़े ! आज समलैंगिकता का अधिकार और परदांपत्य गमन का अधिकार आदि आदि जिसे विधिक मान्यता दी गई है ! वह इसी षड्यंत्र का हिस्सा है ! जिसमें हमारे बड़े-बड़े संवैधानिक पदों पर रहने वाले कुछ लोग शामिल हैं !

भारतीय प्राकृतिक संपदा और भारतीय संसाधन को अपने नियंत्रण में करने की मंशा ही इस पूरे के पूरे षडयंत्र का मूल कारण है ! जिस तरह आज अरब देशों के पेट्रोल के कुएं अपने नियंत्रण में लेने के लिए अमेरिका ने 30 साल से निरंतर वहां पर युद्ध का माहौल बनाये रखा है और वहां का पेट्रोलियम व्यवसाय अंततः आज उसने कब्जे में है ! ठीक इसी तरह वह भारतीय संपदा और भारतीय प्राकृतिक संसाधनों को अपने नियंत्रण में लेना चाहते हैं ! जिसके लिए यहाँ षडयंत्र चल रहा है !

इन सभी षडयंत्रों में सबसे घातक षड्यंत्र है जातिवाद का जहर ! और इस जातिवाद के जहर को घोलने के लिए अमेरिका जैसे विकसित देश भारत के दलित हित चिंतकों का उपयोग कर रहे हैं ! यह वह दलित हित चिंतक हैं जिन्हें न दलितों की जानकारी है और न उनके इतिहास का पता है ! यह दलित हित चिंतक अपने विदेशी आकाओं के निर्देश पर भारत में पोस्टर लगाते हैं, वॉल पेंटिंग करवाते हैं और बड़े-बड़े सेमिनार में राष्ट्र विरोधी जातिवाद का जहर घोलते हैं !

इनके पोस्टरों और वॉल पेंटिंगों का स्लोगन क्या होगा यह भी इन्हीं के विदेशी आका निर्धारित करते हैं ! ताज्जुब की बात तो यह है कि इन तथाकथित दलित हित चिंतकों को अपने अपनी उपलब्धियों की सूचना भी इन विदेशी आकाओं को देनी पड़ती है ! क्योंकि वहां से भारत जैसे राष्ट्र को तोड़ने के लिए इन जैसे फर्जी दलित हित चिंतकों को बहुत बड़ी मात्रा में आर्थिक मदद की जाती है ! एक विश्लेषण से यह पता चला है कि भारत के तथाकथित विदेशी सहायता प्राप्त 8,000 से अधिक करोड़पति दलित हित चिंतकों के पास कोई ऐसा डाटा नहीं है जिससे वह यह बता सके कि भारत में दलितों की उत्पत्ति कब, कहां, क्यों और कैसे हुई थी या इन दलितों का उत्थान कैसे होगा !

इन दलित हित चिंतकों का चिंतन बस इतना ही है कि दलितों को मुफ्त में मकान दे दो, रोटी दे दो, कपड़े दे दो, शिक्षा दे दो और अंत में नौकरी दे दो ! लेकिन यह मूर्ख दलित हित चिंतक यह नहीं जानते हैं आज जिस मकान, रोटी, कपड़ा, शिक्षा और नौकरी की बात कर रहे हैं, वह सब कुछ सरकार के पास सवर्णों के दिये गये टैक्स से ही उन्हें प्राप्त हो रहा है ! यदि सवर्ण नौकरी और व्यवसाय विहीन होकर टैक्स नहीं दे पाएंगे तो सरकार दलितों को रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा और नौकरी कहां से देगी !

तब उनके आका भी उनकी आर्थिक मदद करना बंद कर देंगे और उसी स्थिति में राष्ट्रीय संसाधनों पर भी इन विदेशियों का कब्जा हो जाएगा ! क्योंकि उनका विरोध करने वाला कोई नहीं बचेगा और धीरे-धीरे बड़े-बड़े विदेशी कॉरपोरेट सेक्टर भारत के अलग-अलग हिस्सों को अपने तरीके से अलग करके वहां के प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग और उपभोग करेंगे ! जैसे आज अफ्रीका में हो रहा है ! वहां का आम नागरिक अपने संसाधनों को विदेशियों से नहीं बचा पा रहा है और विदेशी कंपनियां आज उन अफ़्रीकी संसाधनों की स्वामी है और वहां अफ्रीका का मूल नागरिक और विदेशी कंपनियों में मजदूर हैं !

अतः यदि राष्ट्र को बचाना है तो इन दलित हित चिंतकों के सही व्यक्तित्व को जनता के सामने लाना होगा ! जिससे हमारे साथ पीढ़ी दर पीढ़ी से रहने वाले सभी भारत के नागरिक के एक साथ एक जुट होकर भारत के अंदर अपने राष्ट्र की रक्षा करते हुए गौरव के साथ जीवन यापन कर सकें !!

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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