हत्या दो तरह की होती है इरादतन हत्या और गैर इरादतन ! दोनों ही हत्या के लिये भारतीय दंड संहिता में अलग अलग धारा व दण्ड हैं ! इरादतन हत्या के लिये धारा 300 जिसमें दण्ड मृत्यु दंड या आजीवन कारावास और / या आर्थिक दंड है और गैर इरादतन हत्या के लिये धारा 304 और दण्ड आजीवन कारावास या 10 वर्ष कारावास और / या आर्थिक दंड है !
किन्तु हत्या के प्रक्रिया का वर्णन भारतीय दंड संहिता में नहीं है ! अतः हत्या के आरोप से बचने के लिए हत्यारों ने और समाज ने हत्या का नामकरण कर दिया है ! जैसे साबुन से बनने वाला दूध पीकर मरने वाले व्यक्ति को कहा जाता है कि बेचारे की किडनी फेल हो गई थी ! रिफाइन का सेवन करके मरने वाले को कहा जाता है कि बेचारे का हार्ड फेल हो गया था ! आयोडीन युक्त रासायनिक नमक का प्रयोग करके मरने वाले को कहा जाता है बेचारे के हाई ब्लड प्रेशर होने के कारण उसको ब्रेन हेमरेज हो गया था ! कार्यालय में अत्यधिक मानसिक दबाव के कारण जब व्यक्ति परेशान होकर आत्महत्या कर लेता है सब लोग कहते हैं कि बेचारे की डिप्रेशन के कारण आत्महत्या कर ली !
डायबिटीज, एन्थ्राक्स, ऑस्टियोपोरोसिस, ऑटोइम्यून डिसिज, सीलिएक, मैनीजाइटिस यानि मस्तिष्क ज्वर, कैंसर, स्वाइन फ्लू आदि-आदि इसी तरह के हत्या के हजारों नामकरण कर दिये गये हैं ! लेकिन वास्तविकता यह है कि यह सभी मृत्यु के कारण स्वाभाविक नहीं बल्कि प्रायोजित हैं ! इसकी पुष्टि इस बात से होती है कि इन सभी रोगों के आने से पूर्व ही इनकी दवाइयाँ मेडिकल स्टोर पर आ जाती हैं !
फिर भी हत्या का कोई भी नामकरण कर दीजिए किंतु किसी भी व्यक्ति की हत्या के बाद जो उसके परिवार की दुर्गति होती है ! उसे देख कर उस हत्या का कारण विवेकशील व्यक्तियों के निगाह से कभी नहीं बच सकता है ! अब प्रश्न यह है कि क्या इन हत्याओं का नामकरण कर देने के बाद इन हत्याओं को करने वाले दोषियों को यूं ही मुक्त समाज में छोड़ देना चाहिए या इस तरह के जहर खिलाने-पिलाने वाले व्यक्ति या मानसिक, शारीरिक दबाव बनाने वाले व्यक्तियों को भी दंडित करने का कोई विधान बनाया जाना चाहिये ! क्योंकि वर्तमान में जो कानूनी विधान है वह आधा अधूरा और निष्प्रभावी है ! जिसका लाभ उठाकर यह हत्यारे अपराध करने के बाद भी खुले आप समाज में सम्मान के साथ घूमते रहते हैं !
विचारणीय बात तो यह भी है क्या इन हत्या करने वालों के पीछे कहीं कोई बहुत बड़ी विदेशी साजिश तो नहीं है ! क्योंकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बहुत से ऐसे साहित्य और वीडियो उपलब्ध हैं जिनमें एक अंतरराष्ट्रीय विचारधारा यह भी विकसित हो रही है कि अगले 50 वर्षों में पूरे विश्व से अनुपयोगी मनुष्य हटा दिए जाने चाहिए क्योंकि यह लोग व्यर्थ में अनाज खाते हैं, ऑक्सीजन का उपयोग करते हैं और वातावरण तथा पर्यावरण को दूषित करते हैं ! ऐसे व्यर्थ के लोगों के कारण प्राकृतिक पर बहुत सा अतिरिक्त बोझ है ! सामाजिक संसाधन सीमित हैं ! अतः इन अनुपयोगी लोगों को यथाशीघ्र रासायनिक और मानसिक हमलों के द्वारा नष्ट कर देना चाहिये !
आज भारत के अंदर रासायनिक भोजन, हाइब्रिड भोजन, हाईटेक भोजन, फास्ट फूड, पैक फूड, जंक फूड आदि आदि इसी अंतरराष्ट्रीय षडयंत्र का हिस्सा दिखाई देता है ! इसलिए यदि हमें अपने “मानव शक्ति संसाधनों” को बचा कर रखना है तो निश्चित तौर से हमें जागरूक होना होगा और इस तरह के रासायनिक हमलों से हमें मुक्त होना होगा !
क्योंकि हम जाने अनजाने सुबह आंख खोलने से लेकर रात को सोने तक हर क्षण रासायनिक हमलों की चपेट में हैं ! चाहे मंजन कर रहे हों, साबुन से नहा रहे हों, नाश्ता कर रहे हों या भोजन कर रहे हों ! यहां तक कहा जा सकता है कि हम जो कपड़े, जो वाहन, इलेक्ट्रॉनिक संसाधन, मोबाइल, टीवी, आदि प्रयोग कर रहे हैं यह सभी कुछ हमारे हत्या का कारण बन रहा है ! इसलिए इसमें जरा भी विलंब करना किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं है और एकमात्र जागरूकता और ज्ञान ही हमें इन हत्यारों से बचा सकता है !!