क्या आपने कभी विचार किया कि भारत में निर्मित सभी फिल्म और टीवी सीरियल में भारत को दिशा देने वाले गुरुकुलों के आचार्यों को सदैव घास फूस की कुटिया में जमीन पर चटाई बिछा कर बैठे हुए क्यों दिख लाया जाता है !
जबकि यह गुरुकुल राजघरानों से सीधे जुड़े होते थे या दूसरे शब्दों में कहा जाए तो इन गुरुकुलों का खर्च राजा स्वयं उठाते थे या समाज का अति संपन्न वर्ग निरंतर इन कुलों को कुछ न कुछ दान देता रहता था !
तभी तो इन गुरुकुलों में सैकड़ों की संख्या में छात्र रह कर के शस्त्र और शास्त्र का नि: शुल्क प्रशिक्षण प्राप्त करते थे !
विचारणीय बात यह है कि जिन गुरुकुलों में कभी धन का अभाव रहा ही नहीं, उन गुरुकुलों के प्रमुखों को घास फूस की कुटिया में जमीन पर चटाई बिछा कर बैठे हुए क्यों दिखलाया जाता है !
इसके पीछे एक सामान्य सा मनोविज्ञान कार्य करता है ! जिनको हम अपने जीवन में आदर्श मानते हैं ! हम प्रायः उन्हीं की जीवन शैली का अनुकरण करते हैं ! भारत अनादि काल से संपन्न राष्ट्र रहा है ! हमारी संपन्नता पूरे विश्व में विश्व विख्यात रही है !
लेकिन फिर भी हमारे धर्म और ज्ञान के केंद्रों के प्रमुखों को अति दरिद्र अवस्था में दिखला कर हमारे मस्तिष्क में यह विचार निरंतर डालने का प्रयास किया जाता रहा है कि व्यक्ति का दरिद्रता में ही सम्मान है !
इसके पीछे पश्चिम के पूंजीपति वर्ग का यह षड्यंत्र रहा है कि कहीं हम अपनी अति संपन्नता के लिए उनके साथ व्यवसायिक और शासकीय प्रतिस्पर्धा में न आ जाये, इसलिए उन लोगों ने योजनाबद्ध तरीके से जिन्हें भारतीय समाज अपना आदर्श मानता था उन्हें अति दरिद्र और सामान्य रूप से जीवन यापन करते दिखलाया है ! जिससे हम उसी जीवन शैली में अपना आदर्श ढूंढते रहें !
और गांधीजी जैसे समाज सुधारकों ने सिंपल लिविंग और हाई थिंकिंग का नारा देकर पश्चिम के पूंजीपतियों की इस विचारधारा को और बल दिया !
यह बात अलग है कि आधी धोती पहनने और आधी धोती ओड़ने वाले गांधीजी अपनी यात्रा तीन डिब्बे की चार्टर्ड ट्रेन से करते थे ! जो कहने को तो तृतीय श्रेणी के होते थे, पर उनमें सुविधायें प्रथम श्रेणी से भी बेहतर होती थीं ! जिसका खर्चा देश की आज़ादी के लिये दान प्राप्त करने वाला उनका ट्रस्ट उठता था !
कहने को तो गांधीजी बकरी का दूध पीते थे लेकिन उस बकरी के पोषण पर नित्य खर्च उस समय का 20/- आया करता था जो आज के हिसाब से लगभग 13000/- प्रतिदिन पड़ेगा !
गांधी जी स्वयं तो चिकनी मिट्टी से स्नान करते थे ! पर उनकी बकरी निर्मला देवी विधिवत उस समय के सबसे महंगे विदेशी साबुन से स्नान किया करती थी !
जब गांधी जी इंग्लैंड आदि की यात्रा पर जाते थे तो उनके बकरी के दूध की व्यवस्था करने में ट्रस्ट को गांधीजी के विशिष्ठ भोजन की कीमत से भी 8 गुना अधिक पैसा व्यय करके करना पड़ता था क्योंकि विदेशों में बकरी का दूध सहज उपलब्ध नहीं होता था और गांधीजी बिना बकरी का दूध पिये सो नहीं पाते थे !
गांधी जी के यह सभी खर्च उस ट्रस्ट के पैसे से किए जाते थे जो ट्रस्ट समाज से देश के आजादी की लड़ाई के लिए चंदा लेकर कार्य करती थी ! जिस में प्रतिवर्ष लाखों रुपए अर्थात आज के समय के अनुसार अरबों रुपये चंदा इकठ्ठा होता था !
इसी पर एक बार हंसी में सरोजिनी नायडू ने कहा गांधीजी आप की गरीबी ट्रस्ट पर बहुत भारी पड़ रही है क्योंकि आप की लाइफ स्टाइल भारत के महंगे से महंगे राजा से भी महंगी है !
कहने का तात्पर्य है कि उतनी ही पैसे में हम बहुत अच्छी तरह से रह सकते हैं लेकिन हमें मानसिक रूप से प्रशिक्षित किया गया है कि हम गोबर, मिट्टी, गोमूत्र, पंचगव्य, चटाई, खादी आदि के आसपास भी जीवन यापन करें तभी तो दुनियां हमें महापुरुष मानेगी !!