कानून से नहीं भावनाओं की ऊर्जा से संचालित होता है राष्ट्र ! | Yogesh Mishra

भावनायें एक ऐसी ऊर्जा है, जो मूर्त रूप में कहीं दिखाई नहीं देती है ! लेकिन इसकी किसी परिवार के संचालन के लिये बहुत आवश्यकता है ! जिस तरह मात्र भावनाओं के कारण व्यक्तियों का एक समूह परिवार में बदल जाता है ! ठीक उसी तरह भावनाओं के प्रभाव से एक भीड़ समाज में परिवर्तित हो जाती है !

अर्थात कहने का तात्पर्य है यह है कि भावनाएं ही परिवार, समाज या राष्ट्र का निर्माण करती हैं ! जहाँ व्यक्ति की भावनाएं मर जाती हैं, वहां पर परिवार बिखर जाता है ! समाज निरंकुश हो जाता है और राष्ट्र विदेशी षड्यंत्रकारियों के षड्यंत्र का शिकार होने लगता है !

अर्थात यदि परिवार, समाज और राष्ट्र को जीवित रखना है, तो व्यक्ति को भावना प्रधान बनाना ही होगा और आज हमारी शिक्षा व्यवस्था इसी भावना को नष्ट करने के लिये हमें निरंतर प्रशिक्षित कर रही है !

वर्तमान शिक्षा व्यवस्था के कारण आज कमोवेश भारत की स्थिति एक भावना विहीन भीड़ में परिवर्तित हो चुकी है ! कहने को तो व्यक्ति परिवार, समाज या राष्ट्र में रहता है, किन्तु भावनाओं के अभाव के कारण परिवार में रहता हुआ व्यक्ति भी अकेलेपन का शिकार है और अवसाद से ग्रसित है ! जब व्यक्ति अवसाद से ग्रसित होगा, तो समाज और राष्ट्र तो स्वत: ही नष्ट हो जायेगा !

आज यही हो रहा है ! भावनाओं के आभाव में व्यक्ति मानसिक तनाव में है और उस मानसिक तनाव से छुटकारा पाने के लिये वह तरह-तरह के देवी-देवताओं की उपासना में लगा हुआ है ! रोज नये-नये भगवान पैदा हो रहे हैं और व्यक्ति अपने जीवन की संपूर्ण पूंजी अपनी भावनात्मक सुरक्षा के लिये उस भगवान को समर्पित कर रहा है !

किंतु इसके बाद भी लोगों को राहत नहीं मिल रही है ! कारण क्या है ? वास्तव में व्यक्ति को भावनात्मक सुरक्षा की आवश्यकता है ! न की किसी नये भगवान की ! जब तक व्यक्ति भावनात्मक रूप से अपने को सुरक्षित महसूस नहीं करेगा, तब तक वह किसी भी परिवेश में कितना भी संपन्न क्यों न हो जाये वह निरंतर अभावग्रस्त ही रहेगा और अंततः अवसाद का शिकार हो ही जायेगा !

अवसाद का अभाव से कोई संबंध नहीं है ! अवसाद का सीधा-सीधा संबंध व्यक्ति की भावनात्मक सुरक्षा से है ! जो व्यक्ति भावनात्मक सुरक्षा का अभाव महसूस कर रहा है, निश्चित रूप से वह व्यक्ति आज नहीं तो कल अवसाद का शिकार होगा !

राष्ट्र की अंतिम इकाई जब अवसाद से ग्रसित होगी तो राष्ट्र स्वत: नष्ट हो जायेगा, जो हो रहा है ! ऐसी स्थिती में सभी जगह उदासी और निरंकुशता का वातावरण होता है ! कार्यस्थल पर तनाव होता है और राष्ट्र में बहुत बड़ी पूंजी होते हुए भी राष्ट्र की पूंजी कुछ मुट्ठी भर लोगों के हाथ में चली जाती है और समाज का बड़ा वर्ग अभावग्रस्त व परेशान दिखाई देने लगता है !

राजनीतिक दल इस अवसर का लाभ उठाकर, समाज को सुरक्षित करने का आश्वासन देकर, नित्य नई-नई योजनायें लागू करते हैं, किंतु सभी योजनायें प्रभावहीन होती हैं ! क्योंकि समस्या का सही समाधान न तो राजनीतिक दल ही करना चाहते हैं और न ही राष्ट्र के प्रशासनिक पदाधिकारी ही करना चाहते हैं ! क्योंकि यह दोनों ही जानते हैं कि जिस अराजकता के वातावरण में वह पैदा हुये, पले और बढ़े हैं ! यदि वहां पर भावनाओं की प्रधानता हो जायेगी तो उनका अपना अस्तित्व नष्ट हो जायेगा !

अत: कोई भी व्यक्ति इस व्यवस्था को बदलना नहीं चाहता है बल्कि यह सारी राजनैतिक व प्रशासनिक शक्तियां यह प्रयास करती है कि इस देश में संवेदनहीनता का वातावरण और तेजी से बढ़े ! व्यक्ति की राष्ट्र व समाज के प्रति भावुकता नष्ट हो क्योंकि यदि व्यक्ति में भावुकता जीवित रहेगी तो धीरे-धीरे देश के लोगों के मध्य संवाद जागृत होने लगेगा और इस संवाद के कारण अवसरवादी, राजनैतिक व पूंजीपति लोग समाज को भ्रमित कर उसका शोषण नहीं कर पायेंगे ! जिससे उनकी सम्पन्नता का क्रम अवरुद्ध होगा !

इसलिए राष्ट्र को यदि व्यवस्थित तरीके से चलाना है तो राष्ट्र के प्रत्येक नागरिक में भावुकता को ईमानदारी के साथ पैदा करना होगा ! वरना संपूर्ण राष्ट्र 120 करोड़ व्यक्ति की इकाई में परिवर्तित हो जायेगा और इतनी बड़ी जनसंख्या के होते हुये भी हम विश्व की दौड़ में पीछे छूट जायेंगे साथ ही राष्ट्र भी नष्ट हो जायेगा !

इसलिए राष्ट्र को आगे बढ़ाने और अपनी पहचान बनाये रखने के लिये यह आवश्यक है कि राज्य के प्रत्येक नागरिक के अंदर भावनाओं का संचार निरंतर निर्बाध गति से बना रहे !!

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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