आज हम बड़े गर्व से कहते हैं कि भारत इतना सहिष्णु और उदार देश है कि इसने पिछले 10,000 वर्षों से किसी भी अन्य देश पर कोई आक्रमण नहीं किया ! लेकिन विचार करने का विषय यह है कि 10,000 साल के पहले जो वैष्णव संस्कृत के राजा पूरी दुनिया में असुर, दैत्य, दानव आदि से युद्ध करते फिरते थे ! अचानक ऐसा क्या बदल गया कि उन्होंने पिछले 10,000 वर्षों से किसी पर भी आक्रमण करना ही बंद कर दिया !
इसका परीक्षण करने पर पता चला है कि वास्तव में 7,500 साल जब राम रावण का युद्ध हुआ तब रावण के वध के बाद अश्वमेघ यज्ञ द्वारा भगवान राम ने इन्द्र आदि राजाओं के सहयोग से सम्पूर्ण पृथ्वी पर वैष्णव संस्कृति का अन्य सभी संस्कृतियों को नष्ट करके अपना एक क्षत्र साम्राज्य स्थापित कर लिया था ! जो महाभारत काल तक चलता रहा ! इसलिये भारत के रघुवंशी शासकों को किन्ही भी बाहरी राजाओं पर आक्रमण करने की कोई आवश्यकता ही नहीं पड़ी !
और जब पिछले 5200 साल पहले भारत की धरा पर महाभारत का युद्ध हुआ ! तो इस युद्ध ने भारतीय वैष्णव योद्धाओं की दशा और दिशा दोनों ही बदल दी ! हुआ यू की महाभारत काल में एशिया के अधिकांश महायोद्धा वैष्णव राजा जो आर्यावर्त में निवास करते थे ! उन्होंने कृष्ण की प्रेरणा पर पांडव की तरफ से या भीष्म पितामह की प्रेरणा पर कौरव पक्ष से महाभारत के युद्ध में अपनी संपूर्ण सेना के साथ भागीदारी की ! युद्ध इतना भयानक था कि इसमें मात्र 18 दिन के अन्दर लगभग 39 लाख 40 हजार योद्धा मारे गये और युद्ध के अंत में मात्र अट्ठारह योद्धा ही बचे थे ! तब विश्व की आबादी मात्र 6 करोड़ थी ! जो अब 800 करोड़ है !
उसी स्थिति में जो वैष्णव राजा बड़े-बड़े साम्राज्य चलाते थे ! वह जो अपने क्षेत्र के गुरुकुल और ब्राह्मणों का पोषण किया करते थे ! उनकी मृत्यु के उपरांत क्षत्रिय शासक समाज लगभग समाप्त हो गया ! तब गुरुकुल और ब्राह्मणों दोनों का पोषण भी बंद हो गया ! परिणामत: छोटे-मोटे ब्राह्मण वैश्यों की तरह कृषि कार्य आदि करने लगे और श्रेष्ठ ब्राह्मणों ने हिमालय पर जाकर तप आदि करने का निर्णय लिया !
जिसके कारण भारत में योद्धा परंपरा लगभग समाप्त हो गई और भारत की वर्ण व्यवस्था भी यहीं से विकृत होना शुरू हो गई ! वास्तव में देखा जाये तो महाभारत का धर्म युद्ध ही वर्तमान अधर्म का जनक था ! इसीलिये महाभारत की समाप्ति के तुरंत बाद कलयुग का प्रभाव शुरू हो गया ! जो आज तक हम लोग भोग रहे हैं !
महाभारत के युद्ध के बाद वर्ण व्यवस्था के पूरी तरह विकृत हो जाने के कारण समाज में ज्ञान लुप्त होने लगा ! जिस चिंता से परेशान होकर तत्कालीन प्रखर लेखक वेदव्यास ने महाभारत काल तक का सारा ज्ञान महाभारत और पुराण नामक ग्रंथों में लिपिबध्य कर दिया ! क्योंकि उन्हें मालूम था कि गुरुकुलों के बंद हो जाने और ब्राह्मणों के हिमालय पलायन कर जाने के बाद अब आने वाले समय में भारत का जो मूल ज्ञान है ! वह शीघ्र ही विलुप्त हो जायेगा !
कलयुग के आरंभ के बाद वैष्णव जीवन शैली के राजाओं का पतन शुरू हुआ ! उसमें धर्म की रक्षा के लिये क्षत्रिय जो युद्ध किया करते थे ! वह अब वैश्य समुदाय के संपत्ति की रक्षा के लिये युद्ध करने लगे ! ब्राह्मण अपने कर्मकांड को त्याग कर जीविकोपार्जन के लिये वैश्यों के व्यापार-व्यवसाय में सहयोगी बन गया और धर्मच्युत निरंकुश वैश्यों ने पूरी दुनिया में अपने व्यापार व्यवसाय का एक छत्र साम्राज्य स्थापित किया ! जिसने भारत को सोने की चिड़िया बना दिया !
कालांतर में भारत के इसी अकूत धन को लूटने के लिये मुगल लुटेरों का भारत आगमन शुरू हुआ ! क्योंकि भारत की वर्ण व्यवस्था पूरी तरह ध्वस्त हो चुकी थी ! अतः धर्म के नाम पर युद्ध करने वाला कोई न था ! वैश्य जीवन पद्धति का भारतीय समाज में इतना गहरा असर पड़ा था कि भारत का ब्राह्मण और क्षत्रिय हर कार्य में अपने निजी लाभ और हानि की गणना करने लगा था !
कुछ तो इतने निरंकुश थे कि वह अपने तत्कालीन लाभ के लिये आक्रांताओं के साथ मिल गये और उन्होंने भारत को लूटने में खुलकर आक्रांताओं की मदद की और लाभ कमाया ! धीरे धीरे वही आक्रांता भारत के शासक बन गये और उन्होंने अपनी इस्लामिक सभ्यता संस्कृत के अनुसार भारत पर शासन करना शुरू कर दिया ! तब भी यही भारतीय वैष्णव समाज के लोग उनके नौकर व सलाहकार बन कर अपनी सेवा देते रहे !
उन्होंने भारत के मंदिरों को तोड़ डाला और वैष्णव जीवन शैली के स्थान पर इस्लामिक जीवन शैली को अपनाने के लिये भारत के आम जनमानस को बाध्य किया ! जिसने इस्लाम को अपनाते हुये मुगल शासकों की बात मान ली वह तो सुरक्षित बच गया किंतु जिन लोगों ने मुगल शासकों की बात नहीं मानी ! उनका सर मुगल शासकों के नरमुंड के गगनचुंबी परामिड का हिस्सा बन गया !
समाज में इतना भय व्याप्त था कि लोग अपनी संपत्ति तो छोड़ो बहू-बेटी तक की रक्षा नहीं कर पा रहे थे ! हर तरफ निराशा और भय का वातावरण था ! लोग ईश्वर में आस्था छोड़ मात्र भय वश इस्लाम स्वीकार कर रहे थे ! लोगों में इतना भय था कि लोग भगवान का नाम तक लेने में डरते थे !
ऐसी स्थिति में कुछ समाज सुधारक आध्यात्मिक संतों ने आम समाज की ईश्वर के प्रति पुनः गहन आस्था जाग्रत करने के लिये और समाज को इन आतताइयों के भय से मुक्त करने के लिये एवं उनसे संघर्ष करने के लिये प्रेरित करने हेतु ईश्वर का सार्वजनिक स्थानों पर भजन का गायन और धर्म ग्रंथों का लेखन शुरू किया !
भारत के इतिहास में इस समय को भक्ति काल के रूप में जाना गया ! भारत के इस भक्ति काल के समय में भारत में बहुत बड़े-बड़े मेधावी संत हुये ! जैसे कबीरदास, संत शिरोमणि रविदास, तुलसीदास, सूरदास, नं ददास, कृष्णदास, परमानंद दास, कुंभनदास, चतुर्भुजदास, छीतस्वामी, गोविन्दस्वामी, हितहरिवंश, गदाधर भट्ट, मीराबाई, स्वामी हरिदास, सूरदास मदनमोहन, श्रीभट्ट, व्यास जी, रसखान, ध्रुवदास तथा चैतन्य महाप्रभु ! आदि आदि !
इन्होंने आम जनमानस को मानसिक रूप से मुगलों के आतंक और भय से निकालने के लिये ईश्वर के प्रति संपूर्ण समर्पण का ज्ञान दिया और प्रेरित किया कि यह जो कठिन काल है वह बहुत जल्द ही समाप्त हो जायेगा ! मुगल आतंकियों के भय से आम जनमानस सनातन वैष्णव जीवनशैली को छोड़कर इस्लामिक जीवनशैली को न अपनायें !
क्योंकि मुग़ल आतताइयों से डरा सहमा हिंदू समाज कई पीढ़ियों तक क्योंकि अन्याय और अत्याचार सहता आ रहा था ! अतः उसके अंदर इस्लामिक आक्रांताओं से लड़ने का सामर्थ ही खत्म हो गया था ! अत: उसने संतों की प्रेरणा पर मुगलों से युद्ध तो नहीं किया लेकिन उसने ईश्वर के प्रति संपूर्ण समर्पण के सिधान्त को ढाल बनाकर पूरी तरह से आक्रान्ताओं के समक्ष शस्त्र डाल दिये और मुगलों के क्रोध से बचने के लिये एवं अपने हिंदू समाज में प्रतिष्ठा पाने के लिये समाज के हर वर्ग के व्यक्तियों ने साधु संतों का चोला ओढ़ लिया !
कालांतर में अंग्रेज आये और उन्होंने इन्हीं साधु-संतों की मदद से सत्य सनातन हिंदू वैष्णव धर्म ग्रंथों में मिलावट की और उसका इन्ही नकली संतों से विकृत दुष्प्रचार आरंभ करवा दिया ! जिससे हिंदुओं की अपने धर्म के प्रति आस्था कमजोर हुई और अंग्रेजों को अपना शासन चलाने तथा इसाई धर्मान्तरण में मदद मिली !
इस पूरे लेख को लिखने का तात्पर्य यह है कि भक्ति काल में संतों ने आम जनमानस के दिमाग से मुगलों का भय निकालने के लिये ईश्वर के प्रति संपूर्ण समर्पण का भाव रखने का उपदेश दिया था ! लेकिन कायर और धूर्त हिन्दुओं ने उसी संपूर्ण समर्पण के भाव की ओट में संत का चोला ओढ़ कर कायरता और धर्म के नाम पर ठगी के धंधे को अपना लिया और अपने धर्म की दुकान चलने के लिये ईश्वर के प्रति संपूर्ण समर्पण की कपोलकल्पित तथाकथित धर्मिक कहानियां सुना कर समाज को भी कायरता अपनाने के लिये प्रेरित किया ! उसी का परिणाम है कि आज सत्य सनातन हिंदू धर्म को चाहे जितना कुचल दो हिन्दू संघर्ष करने को तैयार नहीं है