शासक के संस्कारों का राष्ट्र पर प्रभाव : Yogesh Mishra

संस्कारों का प्रभाव व्यक्ति के मात्र निजी व्यक्तित्व पर ही नहीं, बल्कि व्यक्ति के आसपास के वातावरण पर भी पड़ता है ! जो व्यक्ति जितना अधिक शक्तिशाली होता है ! उस व्यक्ति के संस्कारों का प्रभाव, उस व्यक्ति के पद और प्रतिष्ठा के अनुरूप उसके आस पास के समाज पर भी पड़ता है !

अनादि काल से ही मनुष्य का यह स्वभाव है कि मनुष्य सही गलत का निर्णय अपने परिवेश और संस्कारों के अनुरूप विकसित विवेक से लेता आया है ! यदि जिस परिवेश में व्यक्ति का विकास हुआ है ! वह परिवेश विकासशील है तो शासन सत्ता प्राप्त करने के बाद वह व्यक्ति भी राष्ट्र को विकास की तरफ ले जायेगा !

और यदि व्यक्ति के संस्कारों में बचपन से ही धोखाधड़ी, घृणा, द्वेष लोभ आदि का विवेक जागृत है और वह संयोगवश यदि शासन सत्ता प्राप्त कर लेता है ! तो अपने संस्कारों के अनुरूप वह व्यक्ति राष्ट्र के नागरिकों को अपने शासनकाल के दौरान गलत सूचना देगा या गलत वादे करके गुमराह करता रहेगा !

यदि सत्ता प्राप्त व्यक्ति का व्यक्तित्व राष्ट्रवादी है, तो वह शासन सत्ता प्राप्त करने के बाद राष्ट्र के हित चिंतन के अनुरूप अन्य सभी प्राथमिकताओं को दर किनारे करते हुये राष्ट्र को आगे की तरफ ले जायेगा ! यदि शासक का व्यक्तित्व जाति या धर्म वादी है, तो वह शासक अपने समस्त निर्णय जाति और धर्म को केंद्र में रख कर लेगा !

यह बात अलग है कि हम विशेष जाति या धर्म से हैं तो अविकसित विवेक का संस्कार विहीन शासक जब हमारे जाति और धर्म के अनुरूप निर्णय लेता है ! तो हमें प्रसन्नता का बोध होता है और जब शासक हमारे जाति और धर्म के विपरीत निर्णय लेता है तो हमें दुख, क्रोध और आक्रोश का बोध होता है !

किंतु यह दोनों ही स्थिति शासक के आपरिपक्व और अविकसित विवेक का सूचक है ! भारत का यह दुर्भाग्य है कि भारत की राजनीति में इसी तरह के अविकसित, विवेकहीन नागरिकों द्वारा निहित स्वार्थ में चयनित कुछ छोटे-छोटे स्वार्थ को लेकर हम अपने शासकों का चयन कर लेते हैं जोकि राष्ट्रहित के विपरीत है ! जिनके निर्णय राष्ट्र के विकास में बाधक होते हैं ! इसीलिये अन्य देशों के मुकाबले हम पिछड़ते जा रहे हैं !

“राष्ट्रहित” एक समग्र विकसित राष्ट्रवादी चिंतन पूर्ण विवेक से लिये गये निर्णयों से विकसित होता है ! किसी भी क्षेत्र, धर्म, जाति, मानसिकता से जब शासक राष्ट्रीय निर्णय लेने लगता है तो सदैव राष्ट्र में गृह कलह और राष्ट्रघाती निर्णय ही समाज के सामने आते हैं !

जिससे समाज दो हिस्सों में बंट जाता है ! एक वह जो उस शासक के पक्षपात पूर्ण निर्णय का समर्थन करता है और दूसरा वह जिसका हित सिद्ध नहीं होता है ! वह शासक के निर्णयों का विरोध करने लगता है लेकिन यह दोनों ही सोच राष्ट्रघाती है ! इससे कभी भी राष्ट्र का विकास नहीं हो सकता है !

राष्ट्र के विकास के लिये शासक को पूर्वाग्रह से मुक्त क्षेत्र, धर्म, जाति, राज्य, भाषा की राजनीति से ऊपर समग्र विचारक और चिंतक होना चाहिये ! जिसकी दृष्टि में राष्ट्र के सभी नागरिक एक समान अधिकार से संपन्न हों ! यदि धर्म, जाति, क्षेत्र, आर्थिक, सामाजिक, शैक्षिक, वर्गीकरण करके शासक का उद्देश्य मात्र अपनी सत्ता पर कब्जा बनाये रखने का है ! तो ऐसा शासक निश्चित तौर से राष्ट्र को एक बड़ी क्षति देकर जाता है !

लोकतंत्र के क्रम में शासक आते और जाते रहते हैं और उनके अविवेकपूर्ण निर्णय से सदैव राष्ट्र को क्षति पहुंचाते रहते हैं ! इसलिये संस्कार विहीन और विचार विहीन, समग्र के चिंतन से परे शासक को नियुक्त करना कभी भी राष्ट्रहित में नहीं होता है !

भारतीय संविधान में ऐसे व्यक्तियों को विकृत चित का नागरिक माना गया है और संविधान की व्यवस्था के अनुसार इस तरह के विकृत चित नागरिकों को चुनाव लड़ने का भी अधिकार नहीं दिया गया है ! शासक बनना तो दूर की बात है किंतु शिथिल राजनीतिक व्यवस्था के कारण आज पिछले कई दशकों से देश में और विभिन्न प्रदेशों में इसी तरह के विकृत चित के शासक ही सत्ता में आसीन हैं !

जिसके परिणाम स्वरूप राष्ट्र का सर्वनाश हो रहा है ! समाधान के लिये और सही शासक के चयन के लिये मैं अपने अगले लेख में कुछ सुझाव दूंगा ! मेरा विश्वास है कि उन सुझावों पर यदि राष्ट्र अमल करेगा तो निश्चित रूप से समाज का ही नहीं राष्ट्र का भी विकास होगा !!

अपने बारे में कुण्डली परामर्श हेतु संपर्क करें !

योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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