शैव जीवन शैली का अनुपालन करने वाले व्यक्ति की तीन पहचान होती है !
पहला वह संग्रह नहीं करता है ! दूसरा वह किसी से राग द्वेष नहीं रखता है और तीसरा वह सबको समान समझता है !
यह तीनों ही गुण मनुष्य में जन्मजात होते हैं ! जिसे मनुष्य की सहज अवस्था कहा गया है !
इसलिए यह सिद्ध होता है कि प्रत्येक व्यक्ति जन्म से शैव ही होता है !
मनुष्य को सबसे वैष्णव बनाने की एक विशेष प्रक्रिया है, जिस प्रक्रिया की शुरुआत यज्ञोपवीत से होती है !
वैष्णव जीवन शैली में जब व्यक्ति दुनिया को समझने लायक होता है, तब उसे शिक्षा ग्रहण करने के लिए अर्थात वैष्णव बनाने के लिए गुरुकुल भेज दिया जाता है !
जहां पर उसका यज्ञोपवीत अर्थात उपनयन संस्कार होता है ! जिसे वैष्णव जीवन शैली में मनुष्य का पुन: जन्म कहा गया है !
यहीं से व्यक्त जीवन का व्यावहारिक ज्ञान लेता है अर्थात जो उसकी सहजता होती है उसकी हत्या कर दी जाती है और व्यक्ति को संसार में सफल होने के लिए सभी चालाकियों का प्रशिक्षण शिक्षा के नाम पर दिया जाता है !
यहीं से व्यक्ति में अहंकार और प्रतिस्पर्धा पैदा होती है !
अपने अहंकार और प्रतिस्पर्धा को जो व्यक्ति अपने जीवन में जितना अधिक पोषित करता है वह संसार में उतना सफल माना जाता है !
क्योंकि अहंकार और प्रतिस्पर्धा का ही परिणाम संग्रह है और संग्रहित वस्तुओं से ही व्यक्ति की हैसियत जाती है !
यह संग्रह की प्रवृत्ति ही संसार के हर संघर्ष और युद्ध का कारण है और संघर्ष और युद्ध ही वैष्णव होने की पहचान है !
वैष्णव के आदर्श भगवान विष्णु एवं उनके अवतारों ने पूरे जीवन संघर्ष और युद्ध किये हैं ! अपने कार्य की सफलता के लिए छल, कपट, प्रपंच, षड्यंत्र, राजनीति, कूटनीति, युद्ध नीति आदि इनके जीवन शैली का सदैव से हिस्सा रहा है !
जिससे संपूर्ण मानवता हजारों बार खतरे में आ चुकी है और यह प्रक्रिया आज भी चल रही है !
इसलिए प्रत्येक व्यक्ति जन्म से शैव होता है, किंतु उसे एक विशेष प्रक्रिया के द्वारा बाद में वैष्णव बना दिया जाता है ! जो मनुष्य की संसार में कृत्रिम अवस्था है !!