आज हम चर्चा करेंगे एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण गजकेसरी योग की ! जिसके कुंडली में होने पर व्यक्ति खुशी से ऐसे उछल पड़ते है जैसे कुबेर का खजाना मिल गया हो, वह योग है ‘गजकेसरी योग’ ! जिस प्रकार से कुबेर का खजाना भी एक मुहावरा है वैसे ही गजकेसरी योग का सिद्धांत भी बोगस है जिसका विवेचन आगे किया जा रहा है जो केवल जिज्ञासु व्यक्तियों की समझ में ही आयेगा और लिखा भी उन्हीं के लिए जा रहा है इसलिए अक्कल के अंधे, दिमाग से पैदल, पढ़े लिखे बेअक्कल, आदि-आदि व्यक्ति इसे नहीं पढ़ें वरना व्यर्थ में ही दिमाग को कष्ट मिलेगा !
केन्द्रस्थिते देवगुरौ शशांकाद्योगस्तदाहुर्गजकेसरीति !
दृष्टे सितायेर्न्दुसुतै: शशांकेनीचास्तहीनैर्गजकेसरी स्यात् ! !
गजकेसरिसंजातस्तेजस्वी धनवान् भवेत् !
मेधावी गुणसम्पन्नो राज प्रिय करो भवेत् ! !
अर्थ – चंद्रमा से केंद्र में गुरु स्थित हो तो गजकेसरी योग होता है ! यदि चंद्रमा नीच, अस्तादि में न गए हुए शुक्र, गुरु और बुध से देखा जाता हो तो भी गजकेसरी योग होता है ! इस योग में उत्पन्न पुरुष धनी, मेधावी, गुणी, एवं राजा का प्रिय होता है !
गजकेसरी योग के सिद्धांत की परिभाषा अनुसार यह योग एक महीने में 18 दिन तक बनता है जिसका अर्थ हुआ की 54 प्रतिशत व्यक्तियों की कुंडली में गजकेसरी योग होता है अर्थात आधे से अधिक जनता धनी मेधावी व गुणी है ! मेधावी व गुणी तो सभी होते है बशर्ते वह अपनी शिक्षा व ज्ञान को महत्व देकर बुद्धि व विवेक अनुसार कार्य करें रही बात धनी होने की तो यदि आप आंकड़ो पर नजर डालें तो पाएंगे कि लगभग 64 प्रतिशत जनसंख्या अब भी आर्थिक रूप से समृद्ध नहीं है इसी बात से इस सिद्धांत की सत्यता स्पष्ट हो जाती है थोड़ा और स्पष्ट करने के लिए विश्लेषण करें तो चंद्रमा से गुरु जब भी केंद्र में आता है तो यह स्थिति पूरे दो दिन तक बनी रहती है अर्थात पूरे दो दिन तक उत्पन्न हुए सभी व्यक्तियों की कुंडली में गजकेसरी योग होगा ! अब आप स्वयं विचार करें की दो दिनों तक उत्पन्न हुए लाखों व्यक्ति (सब के सब) धनी मेधावी गुणी और राजा के प्रिय होंगे! कोई एक व्यक्ति भी निर्धन, बुद्धिरहित व अवगुणी नहीं होगा, ऐसा होना संभव नहीं है !
वास्तव में गजकेसरी योग के सिद्धान्त पर पुनः विचार की आवश्यकता है ! “चंद्रमा से केंद्र में गुरु स्थित हो तो गजकेसरी योग होता है ! यदि चंद्रमा नीच, अस्तादि में न गए हुए शुक्र, गुरु और बुध से देखा जाता हो तो भी गजकेसरी योग होता है” इस सिद्धांत की यह परिभाषा ही अंतर्विरोधी है ! यदि चंद्रमा कर्क राशि में स्थित हो, और गुरु मकर राशि में स्थित हो तो कुंडली में गजकेसरी योग है या नहीं है इसका निर्णय ही नहीं होगा क्योंकि एक ओर चंद्रमा से गुरु केंद्र में स्थित होने से योग बन रहा है तो वहीं गुरु के अपनी नीच राशि में स्थित होकर चंद्रमा पर दृष्टि होने से योग नहीं बन रहा है !
जाहिर है एक आम व्यक्ति को ज्योतिष का इतना ज्ञान नहीं होता है कि वह ज्योतिषीयों की चालाकी को पकड़ सके इसलिए ऐसे अंतर्विरोधी सिद्धांत से ज्योतिषी व्यक्ति की परिस्थितिनुसार कोई भी बात कह देंगे यदि व्यक्ति समृद्ध हो तो गजकेसरी योग बना दिया जाएगा और यदि संपन्न नहीं है तो गुरु के नीच राशि में होने से वह समृद्ध नहीं है, यह कह दिया जाएगा और व्यक्ति गुरु को प्रसन्न करने के लिए आजीवन माथे पर पीला तिलक, पानी में पीली दाल, पीपल के वृक्ष में पानी, पीले रंग के कपडे आदि दाकियानुसी उपाय करते रहेंगे !
उपरोक्त सिद्धांत वृहद पाराशर होराशास्त्र से लिया गया है उसमें गजकेसरी योग का यही फल कहा गया है लेकिन यह सिद्धांत अनेक पुस्तकों में आपको पढ़ने को मिल जाएगा और प्रत्येक पुस्तक में अलग-अलग फल लिखा हुआ मिल जाएगा ! संक्षेप में कहें तो जितने ज्योतिषी उतने सिद्धांत उतने फल जो ज्योतिष के विज्ञान कहे जाने व सत्यता पर प्रश्न प्रश्नचिन्ह लगाने के लिए पर्याप्त है !
आप स्वयं ही ज्योतिष की दो चार पुस्तकों के पन्ने पलट कर देख लीजिए ! गजकेसरी योग के अंतर्गत ज्योतिषी आपको कोई भी फल, भविष्य क्यों न कहे वास्तव में सभी मूर्ख बना रहे होते हैं तो उसके अतंर्गत कुछ भी क्यों न लिखा या कहा जाए सब व्यर्थ है ! मूर्ख बनाकर पैसे ऐंठने का कार्य है !