सुभाष चंद्र बॉस अंग्रेज़ो पर हमला करने वाले थे ,और गांधी लोगो को नेता जी के विरुद्ध अँग्रेजी सेना भी भर्ती होने को कह रहे थे ।

मित्रो बात 1939 की है । कांग्रेस के अध्यक्ष पद के लिए चुनाव होने थे ,एक पत्रकार थे उनका नाम था पट्टाभि सीतारमैया ! पट्टाभि सीतारमैया कांग्रेस के अध्यक्ष पद के लिए गांधी के प्रतिनिधि के रूप में नेताजी सुभाष चंद्र बोस के विरुद्ध चुनाव लड़े जिसमें नेताजी सुभाष चंद्र बोस चुनाव जीत गये और पट्टाभि सीतारमैया हार गये ।

तब महात्मा गांधी ने सार्वजनिक रुप से यह बयान दिया कि “पट्टाभि सीतारमैया की हार मेरी हार है” गांधी के इसी कथन पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने कांग्रेस छोड़ दी और भारत के स्वतंत्रता की लड़ाई को जारी रखने के लिए भारत के बाहर जाकर सेना इकट्ठी करने व अंग्रेज सरकार के विरुद्ध सशस्त्र युद्ध करने का निर्णय लिया |

अंग्रेजों द्वारा घर में नजरबंद करने के बाद भी नेताजी सुभाष चंद्र बोस जर्मन जाकर एडोल्फ हिटलर से मिले और एडोल्फ हिटलर के सहयोग से नेताजी सुभाष चंद्र बोस को जापान का भी सहयोग प्राप्त हुआ और उन्होंने 21 अक्टूबर, 1943 को सिंगापुर में भारत की आस्थाई सरकार ‘ आज़ाद हिन्द सरकार’ की स्थापना की जिसको बर्मा, क्रोएशिया, जर्मनी, नानकिंग (वर्तमान में चीन), मंचूको, इटली, थाइलैंड, फिलीपींस, व आयरलैंड आदि विश्व के 11 देशों ने तत्काल मान्यता प्रदान कर दिया |

आजाद हिंद सरकार ने 1943 में आजाद हिंद बैंक को स्थापित किया और मुद्राएं भी प्रकाशित करना शुरू कर दिया | साथ ही आजाद हिंद सरकार ने सेना की भर्ती भी प्रारंभ कर दी और 40,000 सैनिकों की आजाद हिंद फौज तैयार करके ब्रिटिश सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए “दिल्ली चलो” का नारा दिया |22 सितम्बर 1944 को शहीदी दिवस मनाते हुये सुभाष बोस ने अपने सैनिकों से मार्मिक शब्दों में कहा –

“हमारी मातृभूमि स्वतन्त्रता की खोज में है। तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूँगा। यह स्वतन्त्रता की देवी की माँग है।“

ब्रिटिश सरकार नेताजी सुभाष चंद्र बोस के इस प्रयास से बहुत घबरा गई |
उधर जर्मन में एडोल्फ हिटलर ने समूचे इंग्लैंड पर बमो की वर्षा करके इंग्लैंड को नेस्तनाबूद कर दिया था इधर बर्मा बॉर्डर जापान की सेना ब्रिटिश सरकार से भयंकर युद्ध कर रही थी अंग्रेजों को यह समझ में नहीं आ रहा था यदि नेताजी सुभाष चंद्र बोस कि आजाद हिंद फौज यदि बंगाल तक आ गई तो भारत के अंदर होने वाले जन विद्रोह को कैसे रोका जाएगा |

इसी चिन्ता को लेकर अंग्रेज गांधीजी की शरण में गए, गांधी ने उनको आश्वस्त किया आप परेशान मत होइये, मैं भारत के नागरिकों से आप की सेना में भर्ती होने का आग्रह करूंगा और गांधी जी गांव-गांव घूमकर भारतीय नौजवानों को गुमराह किया और बतलाया कि जापान भारत पर आक्रमण करना चाहता है इस तरह भारतीय नौजवानों को गुमराह करके नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज के खिलाफ लड़ने के लिए ब्रिटिश सेना में भर्ती करवाना शुरु कर दिया |

उनका कहना था “भले ही हम बर्तानिया (अँग्रेजी) सरकार के खिलाफ आजादी की जंग लड़ रहे हैं किंतु फिर भी आज हमारा शासक (अंग्रेज़) मुश्किल में है हमें भारतीयों को फौज में भर्ती होकर उसकी मदद करनी चाहिए |”

इसी तरह अंग्रेजों ने जब पूरे विश्व में अपना साम्राज्य स्थापित करने के लिए प्रथम विश्वयुद्ध छेड़ा तब गांधी गांव-गांव जाकर लोगों को अंग्रेजों की फौज में भर्ती होने के लिए प्रेरित करते थे और इतनी मूर्खतापूर्ण बात कहते रहे “कि यदि ब्रिटिश सरकार का पूरे विश्व पर शासन हो जाएगा तो विश्व के दूसरे देशों पर अपना शासन चलाने के लिए ब्रिटिश सरकार के अधिकारी इतना व्यस्त हो जाएंगे कि उनका ध्यान भारत जैसे देश की तरफ नहीं रहेगा

तब हमें अपनी आज़ादी की लड़ाई लड़ने में आसानी होगी और ब्रिटिश सरकार पूरे विश्व में शासन पाने के बाद हमारे सहयोग से खुश होकर हमें स्वयं स्वतंत्र करके भारत छोड़कर चली जाएगी | गांधी के इसी वक्तव्य पर विश्वास करके बहुत से लोगों ने अंग्रेजों की फौज में भर्ती ली और विदेशों में जाकर अंग्रेजी साम्राज्य के विस्तार के लिए युद्ध करते-करते मर गए |

लाखों की संख्या में जब भारतीय विदेशों में अंग्रेजी साम्राज्य के विस्तार के लिए युद्ध करते-करते मरे तब भारत में उनके परिवार वालों को सैनिक की मृत्यु के उपरांत दी जाने वाली सुविधाओं को देने से अंग्रेज सरकार ने मना कर दिया और एक कानून बना दिया यदि किसी व्यक्ति का मृत शरीर प्राप्त नहीं होता है तो 7 वर्ष की अवधि के पूर्व उसे मरा घोषित नहीं किया जा सकता और जब व्यक्ति मरा ही नहीं तो उसके मरणोपरांत प्राप्त होने वाली सुविधाओं का तो प्रश्न ही नहीं उठता |

गांधी इस विषय पर भी मौन रहे जनाक्रोश जब अत्यधिक बढ़ गया तो अंग्रेजो ने भारत के जनमानस का ध्यान हटाने के लिए दिल्ली में इंडिया गेट का निर्माण कर प्रथम विश्वयुद्ध में ब्रिटिश साम्राज्य के विस्तार के लिए मरने वाले भारतीय ब्रिटिश सैनिकों को सम्मानित किया और 7 वर्ष की अवधि बीतने के दौरान बहुत से लोगों ने अपने परिवार के सदस्यों की मृत्यु के बदले ब्रिटिश सरकार से मरणोपरांत प्राप्त सुविधाओं का विषय ही छोड़ दिया और इस तरह गांधी जी की दया से ब्रिटिश सरकार करोड़ों रूपए की देनदारी से भी बच गई |

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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