क्या हमें विदेशी जहर खाने के लिये मजबूर होना पड़ेगा ? Yogesh Mishra

बीज कानून के लिये सन 2004 में भी संसद में एक बिल पेश हुआ था किन्तु जागरुक राष्ट्र सेवकों के कड़े विरोध के कारण वह बिल पास न हो सका ! इस बिल के अनुसार “बहुराष्ट्रीय बीज निर्माता कंपनियों” को लाभ देने के लिए तथा अपने देश के घरेलु बीज के व्यवसाय को नष्ट करने के लिये हर छोटे या बड़े बीज या नर्सरी व्यवसायी को अपना पंजीकरण करवाना आवश्यक होगा ! और प्रत्येक किसान को भी पंजीकृत बीज ही लेना और बोना आवश्यक होगा ! किसान पीढ़ीयों से प्रयोग करने वाला अपना घरेलु परम्परागत बीज प्रयोग नहीं कर सकेगा !

भारत में छोटे किसानों की संख्या काफी अधिक है और वे एक-दूसरे से ही थोड़ा बहुत बीज उधार लेकर कृषि करते हैं ! अगर यह बीज कानून लागू हो जाता है तो ऐसे छोटे किसानों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ेगा ! किसान अपना घरेलु बीज किसी से मांग कर यदि प्रयोग करता है तो उसे 10 साल तक की कैद हो सकती है !

देशभर में स्थापित विभिन्न कृषि विश्वविद्यालय बीजों को लेकर तरह-तरह के उन्नत प्रयोग करते रहते हैं ! इस कानून के बाद यदि कई किसान वहां से बीज लाकर अपने खेतो में भी बोता है तो वह भी इस कानून के दायरे में दण्डित किया जायेगा !

इसी तरह पिछले दिनों “बहुराष्ट्रीय बीज निर्माता कंपनियों” के दबाव में “बीटी बैंगन” को भारत में लाने का प्रयास किया गया किन्तु जागरुक किसान संगठनों के सशक्त विरोध के कारण बीटी बैंगन भारत में नहीं आ पाया ! अब पुनः “बहुराष्ट्रीय बीज निर्माता कंपनियों” के दबाव में “जीएम उत्पादों” (जेनेटिकली मॉडिफाइड) के लिए भारतीय बाजार सुगम बनाने का प्रयास हो रहा है!

Bio-Technology Regulatory Authority of India (BTRA) Bill संसद में पारित होने के बाद “बहुराष्ट्रीय कंपनियों” को अपने जहरीले उत्पाद बेचने और पूरे खाद्य बाजार पर कब्जा करने का रास्ता साफ हो जायेगा ! इसमें प्रावधान है कि तीन सदस्यीय निर्णायक मण्डल जिस किसी “जीएम उत्पाद” को अपनी स्वीकृति प्रदान कर देगा, उस पर कोई भी आक्षेप नहीं लगा जा सकेगा!

यदि कोई भी व्यक्ति अगर बिना साक्ष्यों या वैज्ञानिक रिकॉर्ड (दोनों ही सत्ता के नियन्त्रण में है!) के इन उत्पादों के बारे में कोई भी प्रचार करता है, तो उसे कम से कम 6 माह की कैद या 2 लाख रूपये तक के जुर्माने का दण्ड दिया जा सकता है ! सूचना के अधिकार के तहत भी तीन सदस्यीय निर्णायक मण्डल द्वारा पास किए गए किसी बीज के बारे में कोई भी जानकारी प्राप्त नहीं की जा सकेगी ! विवादों के निपटारे के लिए इस कानून के तहत एक विशेष “न्यायाधिकरण यानि ट्राइब्यूनल” होगा और सुप्रीम कोर्ट को छोड़कर भारत की किसी भी अन्य न्यायालय में “न्यायाधिकरण” के निर्णय के विरूद्ध अपील नहीं होगी !

आम व्यक्ति के लिए “जीएम उत्पाद” और “संकरित उत्पाद” में कोई अंतर नहीं है! जबकि वास्तव में संकरण के द्वारा दो या दो से अधिक प्रजातियों के संयोग से जो नई प्रजाति विकसित होती है वह मावनीय स्वास्थ्य और भविष्य के लिए खतरा नहीं होती ! लेकिन “जीएम पद्धति” में जीन विनिमय कर नई प्रजाति बनाने वाले बीज से कई प्रकार के अप्रत्याशित विकार मनुष्य में आ जाते हैं ! जिनका निरंतर प्रयोग करने से भविष्य में कई प्रकार के खतरनाक रोग पैदा हो सकते हैं !

इस खतरे का अनुमान लगाने के लिये एक जानकारी के अनुसार पिछले दिनों इटली ने कनाडा से शहद आयात किया ! शहद गतव्य स्थान पर पंहुचने पर इटली सरकार ने कनाडा सरकार से इस बात की गारंटी मांगी कि इस शहद को बनाने में “जीएम पौधों” के फूलों के परागकणों का उपयोग तो नहीं किया गया है ! कनाडा सरकार द्वारा गारंटी देने से इंकार करने पर सारा शहद इटली सरकार द्वारा कनाडा वापस भेज दिया गया ! कहने का तात्पर्य है कि दुनिया के सभी विकसित देश “जीएम उत्पादों” को ठुकरा रहे हैं !

इसीलिये “जीएम कृषि उत्पादों” के निर्माता “बहुराष्ट्रीय बीज निर्माता कंपनियों” को अपने हानिकारक उत्पाद के कारण विश्व में कहीं भी बाजार नहीं मिल रहा है ! अतः हमें भी जागरुक होना चाहिये ! क्योंकि “जीने का अधिकार” हमारा मौलिक संवैधानिक अधिकार है ! जिसमें स्वास्थ्यवर्धक भोजन भी आता है !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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