आर्य द्रविड़ के षडयंत्र का इतिहास : Yogesh Mishra

आर्य और द्रविण को लेकर ईसाई पादरियों द्वारा जाति, भाषा, सभ्यता, संस्कृति, क्षेत्र और धर्म के आधार पर काल्पनिक विभेद को विश्व इतिहास में सत्य साबित करने के लिये पिछले दो सौ वर्षों के अन्तराल में एक षड्यंत्र के तहत अभियान चलाया गया है ! भारत में ब्रिटिश सत्ता जब तक कायम रही तब तक भारतीय समाज को कई स्तरों पर ईसाई पादरियों ने ‘फूट डालो और राज्य करो’ नीति के तहत विभाजित करने के कुत्सित प्रयास किये !

द्रविड़ शब्द की कल्पना 1856 में काल्डवेल नामक ईसाई पादरी ने अपनी पुस्तक ‘Comparative Philology of the Dravadian or South Indian Languages’ में की थी ! इस पुस्तक से पहली बार द्रविड़ शब्द गढ़कर, इस शरारत का सूत्रपात किया गया था ! बाद में यह शब्द दक्षिण की भाषा, जाति और वहाँ के लोगों के लिये प्रचलित हो गया, जो बाद में रूढ़ हो गया !

जब की एक अन्य विदेशी विद्वान और भाषा शास्त्री जार्ज ग्रीयरसन ने इसे (द्रविड़ शब्द) को संस्कृत शब्द ‘द्रमिल’ या ‘दमिल’ का बिगड़ा रूप बताया है और केवल तामिल के लिये प्रयुक्त होना बताया है ! पादरियों का षड्यंत्र जारी था ! षड्यंत्र के तहत एक नई जाति ‘द्रविड़’ भी खड़ी की गई !

इतिहास का यह दिलचस्प घटनाक्रम यहीं नहीं रुका बल्कि जब काल्पनिक भाषा और जाति पादरियों द्वारा गढ़ लिये गये तो इसे सिद्ध करने के लिये कुछ विदेशी विद्वानों, इतिहासकारों और भाषा शास्त्रियों को इसकी पुष्टि के लिये खड़ा किया गया ! लेकिन कुछ ऐसे भाषाशास्त्री भी थे जो इस षड्यंत्र को समझा और इसका गहन विश्लेषण किया ! उन विश्लेषणों में इस षड़यंत्र का विरोध ही नहीं किया गया बल्कि इसे मिथ्या भी सिद्ध किया गया !

सर जार्ज कैम्पबेल जो कि एक नृवैज्ञानिक थे ने अपने विश्लेषण में कहा, ‘‘नृवंशशास्त्र के आधार पर उत्तर और दक्षिण के समाज में कोई विशेष भेद नहीं है ! द्रविड़ नाम की कोई जाति नहीं है ! निस्सन्देह दक्षिण भारत के लोग शारीरिक गठन, रीति-रिवाज और प्रचार-व्यवहार में जलवायु और भाषा के कारण अलग हैं ! सम्पूर्ण भारत के निवासी आर्य ही हैं !’’ अपने इस कथन के लिये जार्ज कैम्पबेल को बड़ी कीमत चुकानी पड़ी !

आज आर्य और द्रविड़, मूलनिवासी और विदेशी आक्रांता जैसी काल्पनिक बातें इतिहास में पढ़ाई जाती रही हैं और आज भी नई पीढ़ी को पढ़ाया जा रहा है ! इसी तरह माक्र्सवादी इतिहासकारों ने अंगे्रजी इतिहास-दृष्टि को अपनी दृष्टि बनाया और उसे प्रमाणिक सिद्ध करने की पुरजोर कोशिशें कीं, जिसमें वे सफल रहे ! यही कारण है, आज की नई पीढ़ी अपने इतिहास, संस्कृति, सभ्यता, भाषा और धर्म को लेकर भ्रमित और कुंठित है !

अपने बारे में कुण्डली परामर्श हेतु संपर्क करें !

योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

 -: सम्पर्क :-
-090 444 14408
-094 530 92553

Check Also

प्रकृति सभी समस्याओं का समाधान है : Yogesh Mishra

यदि प्रकृति को परिभाषित करना हो तो एक लाइन में कहा जा सकता है कि …