राजनीति में तंत्र का प्रयोग कैसे होता है : Yogesh Mishra

भगवान शिव ने 64 तंत्रों की रचना की है ! जिसका परम ज्ञानता रावण था ! तंत्र असीमित है ! इसका वर्णन अग्नि पुराण में भी मिलता है ! वैसे तो वशीकरण एक असामान्य विद्या है परंतु यह भी एक विज्ञान ही है। वशीकरण विद्या अति प्राचीन विद्या है और यह तंत्र की अष्ट कर्म सिधिकर्म, शान्तिकर्मा, रोगनाशक कर्म, वशीकरण, विद्वेषण, स्तम्भन, उचाटन, और मारण कर्म में से एक है !

तंत्र के जानकार बड़े-बड़े राजा भी अपनी जनता को नियंत्रित करने के लिये तंत्र का प्रयोग करते थे ! आप ध्यान दीजिये कि रावण के राज्य में कभी भी रावण के विरुद्ध कोई विद्रोह नहीं हुआ और न ही किसी व्यक्ति में इतना साहस था कि वह रावण की नीतियों का विरोध कर सकें ! इसमें जनता से सामूहिक रुद्राभिषेक, छालर वादन, नगाड़ा वादन, वीणा वादन, शंख वादन, दीप प्रज्वलन, सामूहिक व्रत, हवन आदि आदि करवाया जाता था ! जिस सब में रावण के तंत्र शक्ति का ज्ञान कमाल था !

ठीक इसी तरह पूरी दुनिया को जीतने के उद्देश्य से निकलने वाला सिकंदर की मां स्वयं बहुत बड़ी तांत्रिक थी और सिकंदर भी तंत्र विद्या में विश्वास रखता था ! उसी तंत्र की शक्ति का प्रभाव था कि सिकंदर जब युद्ध में जाता था तो उसके विपरीत युद्ध करने वाला राजा अनावश्यक भय से भयभीत हो जाता था और उस विरोधी राजा का भय ही सिकंदर के विजय का कारण होता था !

विक्रमी संवत की शुरुआत करने वाले राजा विक्रमादित्य के साम्राज्य में तंत्र के प्रबल जानकार कालिदास स्वयं मां काली के निर्वाण मंत्र की साधना राजा विक्रमादित्य के चक्रवर्ती सम्राट होने के लिये निरंतर किया करते थे ! उनके ज्योतिषीय परामर्शदाता स्वयं वराहमिहिर थे ! जिन्होंने विष्णु स्तम्भ अर्थात कुतुबमीनार का निर्माण दिल्ली में वास्तु के अनुसार करवाया था !

आज भी अनेकों शक्तिपीठ पर अनेकों राजनीतिज्ञ की अपनी अपनी क्षमता और श्रद्धा के अनुसार विभिन्न तांत्रिक अनुष्ठानों का सहारा लिया करते हैं ! मुझे आज तक कोई ऐसा व्यवसाय राजनीतिज्ञ, पदाधिकारी, सांसद, विधायक, मंत्री, न्यायाधीश या अपने भय की सत्ता चलाने वाला अपराधी नहीं मिला ! जो किसी न किसी रूप में तंत्र का सहारा न लेता हो !

स्वयं भगवान राम ने जब लंका पर आक्रमण किया था ! तो रावण के पुत्र मेघनाथ ने जब आपातकाल में कुलदेवी निकुंभला का तांत्रिक अनुष्ठान आरंभ किया तो जिसकी सूचना मिलते ही राम के खेमे में खलबली मच गई और तत्काल योजना बनाई गई मेघनाथ के इस अनुष्ठान को किसी भी रूप में बंद किया जाये अन्यथा यह युद्ध जीतना असंभव है ! जिनके लिये हनुमान आदि को भेजा गया उन्होंने मेघनाथ का वह तांत्रिक अनुष्ठान भंग कर दिया !

इसी प्रकार मध्य प्रदेश के शाजापुर नलखेड़ा में महाभारत के युद्ध को जीतने के लिए भगवान श्री कृष्ण के परामर्श पर युधिष्ठिर ने मां बगलामुखी का तांत्रिक अनुष्ठान किया था !

1962 चीन के आक्रमण के समय जब जवाहरलाल नेहरू को कोई रास्ता नहीं दिखा तो उन्होंने झांसी के निकट दतिया ने पीतांबरा पीठ पर चीन के युद्ध विराम के लिए एक विस्तृत अनुष्ठान करवाया था ! जिस अनुष्ठान की अंतिम आहुति के साथ ही चीन ने युद्ध विराम की घोषणा कर दी थी ! वह दतिया में स्थापित शिवलिंग आज भी मौजूद है !

उज्जैन और कामाख्या पीठ आसाम की तरह उत्तर प्रदेश के विंध्याचल में स्थापित मां विंध्यवासिनी के मंदिर में तो तंत्र अनुष्ठानों का सिलसिला निरंतर चलता रहता है ! जहां पर बड़े-बड़े व्यवसायियों और राजनीतिज्ञों को कभी भी देखा जा सकता है !

जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, नरसिम्हा राव जैसे भारत के अनेकों प्रधानमंत्री अपने स्थाई गुप्त तांत्रिक गुरु रखा करते थे ! जो इन लोगों के प्रभाव, विकास, और सुरक्षा के लिये तरह-तरह के तांत्रिक अनुष्ठान किया करते थे और जब तांत्रिक गुरु का परामर्श इन प्रधानमंत्रियों ने नहीं माना तब तक उन्हें बड़ी क्षति का सामना करना पड़ा है !

यह सिलसिला सदियों से चलता आ रहा है और सदैव चलता रहेगा ! कुछ के विषय में जानकारी हो जाती है और कुछ के विषय में आम समाज को जानकारी नहीं हो पाती है लेकिन राज सत्ता को चलाने के लिये तंत्र का सहारा प्रायः सभी राजनीति के लेते हैं !

अर्थात स्पष्ट है कि तंत्र की शक्ति से इंसान ही नहीं भगवान भी वाकिफ हैं और अनेकों मौकों पर देखा गया है कि भगवान ने भी अपने युद्ध में विजय पाने के लिये या प्रभाव को बढ़ाने के लिये विभिन्न परिस्थितियों में तंत्र का सहारा लिया है ! इसके अनेकों उदाहरण सनातन धर्म शास्त्रों में भरे पड़े हैं !

सत्य सनातन हिंदू धर्म ही नहीं विश्व के सभी धर्मों में तंत्र को मान्यता दी गई है ! वह चाहे पारसी धर्म हो, याहूदी धर्म हो, ईसाई धर्म हो या फिर इस्लाम धर्म हो ! यह बात अलग है कि हर धर्म में उसके विकसित होने वाले उस देश काल परिस्थिति के अनुसार तंत्र का विधान अलग-अलग है ! लेकिन तंत्र के प्रभाव की स्वीकृति सभी मानते हैं !

शायद इसीलिये भारत में तंत्र विद्या के प्रभाव को नष्ट करने के लिये अंग्रेजों ने झाड़-फूंक व तंत्र-मंत्र निवारण अधिनियम का निर्माण किया था ! जो अब राज्य का विषय है ! जिसमें कोई भी व्यक्ति अपने आप को किसी व्यक्ति, पशु या जीवित वस्तु पर ओझा के रूप में झाड़-फूंक या तंत्र-मंत्र का उपयोग करके उपचार करने का दावा करता है तो यह कृत्य अपराध की श्रेणी में आता है ! जिस में पांच वर्ष तक की अवधि के कठोर कारावास एवं जुर्माने से दंडित किये जाने का प्रावधान है !

इस विधि व्यवस्था के तहत भारत के सभी प्रकांड तांत्रिक विद्वानों को उनकी तंत्र कला से वंचित कर दिया गया था ! जिसके दुष्परिणाम समय-समय पर अलग-अलग अंग्रेज अधिकारियों को भोगने पड़े ! जिसको उन्होंने अपने जीवन संस्मरण संग्रह में लिखा है !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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