तंत्र भारत की मूल संस्कृति का आधार है ! इसीलिए भारत के मौलिक आराध्य भगवान शिव के द्वारा जितने प्रकार के तंत्रों का वर्णन किया गया है, तंत्र का उतना वर्णन कहीं नहीं पाया जाता है !
तंत्र का सीधा-सीधा तात्पर्य व्यक्ति की उस अवस्था से है जहाँ पर व्यक्ति प्रकृति द्वारा संचालित कार्य कारण व्यवस्था से सीधा सम्बन्ध स्थापित कर लेता है ! जब किसी व्यक्ति का संबंध प्रकृति की व्यवस्था से अनुकूल नहीं होता है तो उस व्यक्ति को अनेकों प्रकार के कष्ट प्राप्त होते हैं और जब व्यक्ति की व्यवस्था प्रकृति के अनुकूल होती है, तो उस स्थिति में व्यक्ति को अप्रत्याशित लाभ प्राप्त होने शुरू हो जाते हैं !
शिव उपासना पद्धति में जो तंत्र का विधान है वह स्पष्ट रूप से यह बतलाता है कि प्रकृति में सभी कुछ स्वाभाविक रूप से सहज उपलब्ध है ! बस आवश्यकता है प्रकृति से जुड़ कर उसे प्राप्त करने की !
प्राय: यह सामाजिक अवधारणा है कि एक तांत्रिक कहा जाने वाला व्यक्ति श्मशान में नंगे होकर अपने पूरे शरीर में बहुत सी भभूत लपेटकर, कुछ रुद्राक्ष की माला गले और जटाओं में बांधकर, एक हाथ में हड्डी और दूसरे में कपाल लेकर, तेज आवाज में अटपटे मंत्रों के जाप करके तांत्रिक क्रिया करता है !
लेकिन यह अवधारणा मात्र एक आडंबर है ! तांत्रिक होने के लिए कोई जरूरी नहीं कि वह शमशान में भूत लपेट कर हड्डी और दारू की बोतल लेकर तेज आवाज में चीखता-चिल्लाता नजर आये ! एक सफल और मजा हुआ तांत्रिक सामान्य जीवन यापन करता है ! उसे जब जो क्रिया करनी होती है एक क्षण के सौवे हिस्से में प्रकृति के साथ संबंध स्थापित करके उस कार्य का आग्रह प्रकृति से करता है और प्रकृति उसका कार्य करना आरंभ कर देती है ! जिस व्यक्ति के अंदर प्रकृति के साथ जितना अच्छा तालमेल बनाने की क्षमता होगी, वह व्यक्ति उतना अच्छा तांत्रिक होगा !
इसलिए तंत्र को यदि जानना समझना है तो तंत्र का आडंबर करने वाले व्यक्तियों से दूर रहना चाहिए ! आदि गुरु शंकराचार्य, स्वामी सूरदास, गोस्वामी तुलसीदास, स्वामी गोरखनाथ आदि अपने समय के तंत्र के प्रबल जानकार थे ! लेकिन उन्होंने कभी भी हड्डी और दारू की बोतल लेकर श्मशान में कोई ड्रामा नहीं किया !
इसलिए तांत्रिक के आडम्बरों से दूर हटकर यदि प्रकृति की व्यवस्था के साथ तालमेल बनाकर आप स्वयं अपने अंदर इस तरह की योग्यता क्षमता प्रतिभा पैदा कर लेते हैं तो आपका भी प्रकृति के साथ सीधा संबंध स्थापित हो जायेगा और आप स्वयं में भी एक बहुत बड़े तांत्रिक हों जायेगे !
थोड़ी सी साधना, थोड़ा खान-पान का संयम, विचारों के भाग-दौड़ से दूरी बना लेने मात्र से कोई भी व्यक्ति प्रकृति की व्यवस्था और निर्देशों को समझने की क्षमता प्राप्त कर लेता है और वह भी सफल तांत्रिक बन सकता है ! इसलिए कहीं भटकिये मत ! आप जहां जिस परिस्थिति में हैं, उसमें थोड़ा सा आत्म संयम रखिये, मन को एकाग्र करिये, आवश्यक हो तो इष्ट आराधना कीजिये और प्रकृति से संबंध स्थापित करने का प्रयास करिये, आप स्वयं ही एक बहुत बड़े तांत्रिक हो सकते हैं !
भगवान शिव की आडम्बर विहीन सामान्य पोशाक हमें प्रकृति के अति निकट रहने का संकेत देती है अर्थात तांत्रिक को हमेशा आडंबर विहीन और बहुत ही सामान्य तरीके से अपना जीवन यापन करना चाहिए !
जिनका आहार-विहार, विचार शुद्ध होता है और वह व्यक्ति दुनियां की भाग दौड़ से मुक्त होकर साधना करता है, तो उस व्यक्ति के मूलाधार में स्थित जीवनी ऊर्जा का संचालन सुषुम्ना नाड़ी से होते हुये “अष्ट भेदन” उपरांत सहस्त्र धार तक हो जाता है !
तब उस व्यक्ति में पहले “वायु तत्व” की प्रधानता होती है फिर “आकाश तत्व” सक्रीय होता है और व्यक्ति का सीधा सम्बन्ध प्रकृति की कार्य कारण व्यवस्था से हो जाता है ! जिससे व्यक्ति को भूत, भविष्य, वर्तमान की जानकारी होने लगती है और वह व्यक्ति प्रकृति से आग्रह करके उसकी व्यवस्था में हस्तक्षेप करने लगता है ! और फिर वह व्यक्ति शीघ्र ही सफल तांत्रिक बन जाता है !
अति जनसंपर्क, अति मानसिक और सामाजिक भाग दौड़ करने वाला व्यक्ति कभी भी सफल तांत्रिक नहीं बन सकता है ! वह तांत्रिक होने का आडंबर तो कर सकता है लेकिन तंत्र के परिणामों को कभी भी समाज के व्यक्तियों को नहीं दे सकता और न ही तंत्र विद्या का स्वयं ही कोई लाभ उठा सकता है ! इसलिये तंत्र के दुकानदारों से बचिये और स्वंम साधना कीजिये !
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योगेश कुमार मिश्र
ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता
एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)
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