महर्षि पाराशर ने प्रत्येक ग्रह को निश्चित आयु पिंड दिये है,सूर्य को 18 चन्द्रमा को 25 मंगल को 15 बुध को 12 गुरु को 15 शुक्र को 21 शनि को 20 पिंड दिये गये है उन्होने राहु केतु को स्थान नही दिया है। जन्म कुंडली मे जो ग्रह उच्च व स्वग्रही हो तो उनके उपरोक्त वर्ष सीमा से गणना की जाती है।
जो ग्रह नीच के होते है तो उन्हे आधी संख्या दी जाती है, सूर्य के पास जो भी ग्रह जाता है अस्त हो जाता है उस ग्रह की जो आयु होती है वह आधी रह जाती है,परन्तु शुक्र शनि की पिंडायु का ह्रास नही होता है, शत्रु राशि में ग्रह हो तो उसके तृतीयांश का ह्रास हो जाता है। इस प्रकार आयु ग्रहों को आयु संख्या देनी चाहिये। पिंडायु वारायु एवं अल्पायु आदि योगों के मिश्रण से आनुपातिक आयु वर्ष का निर्णय करके दशा क्रम को भी देखना चाहिये। मारकेश ग्रह की दशा अन्तर्दशा प्रत्यंतर दशा में जातक का निश्चित मरण होता है।
उस समय यदि मारकेश ग्रह की दशा न हो तो मारकेश ग्रह के साथ जो पापी ग्रह उसकी दशा में जातक की मृत्यु होगी । ध्यान रहे अष्टमेश की दशा स्वत: उसकी ही अन्तर्द्शा मारक होती है । व्ययेश की दशा में धनेश मारक होता है तथा धनेश की दशा में व्ययेश मारक होता है । इसी प्रकार छठे भाव के मालिक की दशा में अष्टम भाव के ग्रह की अन्तर्दशा मारक होती है । मारकेश के बारे अलग-अलग लग्नों के सर्वमान्य मानक इस प्रकार से है।