पूर्व जन्म के संचित कर्मों के कारण हमारे अन्दर जन्म से ही कुछ सकारात्मक और नकारात्मक ऊर्जा होती है | जैसे कि ऊर्जा को समाप्त नहीं किया जा सकता, इसलिए हमारे पूर्व जन्म के कर्म, वर्तमान जन्म को हस्तांतरित हो जाते है | कर्मों का यह चक्र तब तक चलता रहता है जब तक नकारात्मक ऊर्जा को पूर्णतः सकारात्मक स्वरुप नहीं दे देते |
ऊर्जा का रख रखाव इस बात पर निर्भर करता है कि हम किस ऊर्जा को पोषित करते है | यदि हम नकारात्मक ऊर्जा को खराब वाणी, विचार और कर्म के द्वारा उसको सशक्त करते रहते है तो नकारात्मक ऊर्जा के वशीभूत होकर और नकारात्मक होते जाते है | किन्तु यदि हम धार्मिक पुस्तकों का अध्ययन, सत्संग, मन्त्र जाप, निःस्वार्थ सेवा और अन्य सकारात्मक कर्म करते है तो सकारात्मक ऊर्जा सशक्त होकर उन्नति के पथ पर ले जाती है |
सकारात्मक और नकारात्मक ऊर्जा के व्यवहार की एक निशिचत मात्रा और प्रक्रिया, कर्म के अनुसार होती है किन्तु हम अज्ञानता के कारण समझ नहीं पाते है | सकारात्मक ऊर्जा उर्ध्व गति के द्वारा उच्च आयामों तक पहुचाती है | इसके विपरीत नकारात्मक ऊर्जा अधोमुखी गति के कारण निम्न आयामों की ओर ले जाती है | उच्च आयाम में पहुच कर प्रसन्नता, प्रेम, शान्ति, सुखद सम्बन्ध, अच्छी कार्य क्षमता, अच्छी समझ, ज्ञान और आनंद की प्राप्ति होती है | निचले आयामों में पहुचने पर लोभ, वाद विवाद, संघर्ष, विरोध, असहमति, अहंकार, घृणा और सीमित कार्य -विचार-निर्णय क्षमता की उपलब्धि होती है |
नकारात्मक ऊर्जा के सकारात्मक ऊर्जा में रूपांतरण की प्रक्रिया को कुण्डलिनी जागरण के रूप में शास्त्रों में स्थापित किया है | नकारात्मक ऊर्जा का सकारात्मक स्वरुप में रूपांतरण एक अत्यंत जटिल कार्य है | क्योंकि नकारात्मक ऊर्जा बहुत आसानी से प्रवेश कर लेती है और हठी स्वभाव होने के कारण आसानी से जाती नहीं है | जब चेतना की उन्नति के लिए हम सकारात्मक कर्म जैसे ध्यान और मन्त्र जाप बढाते है तो नकारात्मक ऊर्जा का सकारात्मक रूप में परिवर्तन होने लगता है | किन्तु यहाँ पर एक समस्या आरम्भ हो जाती है | नकारात्मक ऊर्जा का स्वभाव हठी होने के कारण वह परिवर्तन का विरोध करती है | इस विरोध के फलस्वरूप रूपांतरण की प्रक्रिया को बाधित करने के लिए समस्याएं उत्पन्न करती है |
सकारात्मक ऊर्जा का स्वभाव होता है विघ्नों को दूर करना जबकि नकारात्मक ऊर्जा का स्वभाव है समस्याओं को उत्पन्न करना | ऊर्जा के दोनों स्वरुप अपने स्वभाव के अनुरूप ही कार्य कर रहे होते है | क्योकि हमारी ऊर्जा सकारात्मक और नकारात्मक ऊर्जा का मिश्रण होती है इसलिए आध्यात्मिक मार्ग पर चलते हुए हमें बाधाओं का सामना करना पड़ता है |
ऊर्जा के रूपांतरण के लिए हमेशा एक माध्यम की आवश्यकता होती है |उदाहरण के लिए बिजली का उत्पादन हवा, पानी और सूर्य से किया जा सकता है | किन्तु इनसे बिजली प्राप्त करने के लिए एक विस्तृत और प्रामाणिक व्यवस्था की आवश्यकता होती है | मुख्य विद्युत् गृह और व्यवसाय एवं घर में विद्युत् की प्राप्ति के लिए अलग अलग व्यवस्थाएं होती है |उसी प्रकार प्रतिकूल ऊर्जा को अनुकूल बनाने के लिए विभिन्न स्तरो पर विभिन्न व्यवस्थाओं और माध्यमों की आवश्यकता पड़ती है |
ऊर्जा के हर रूप, उपयोग और रूपांतरण को समझने के लिए ज्ञान और निपुणता की आवश्यकता होती है | आध्यात्मिक मार्ग के नियमों से अवगत नहीं होने के कारण हम सकारात्मक और नकारात्मक ऊर्जा को भिन्न प्रकार से नहीं समझ पाते है और ना ही उनकी कार्य प्रणाली का ज्ञान होता है | इसलिए ऊर्जा का विज्ञान पूरी तरह समझने के लिए हमें गुरु की आवश्यकता होती है | गुरु अपने संचित कर्मों को समाप्त कर आध्यात्मिक ऊर्जा के शिखर पर होते हैं, जिसके कारण वह हमारी सहायता करने में समर्थ होते है | गुरु की कृपा और दिशा निर्देशन ऊर्जा को संतुलित करने के जटिल कार्य को सहज बना देता है |