जानिये । वर्ण व्यवस्था पर क्या कहते है भारतीय शास्त्र । महत्वपूर्ण जानकारी ,जरूर पढ़ें ।

व्यक्ति कर्म से पूजनीय है जन्म से नहीं: वर्ण व्यवस्था हिन्दू धर्म में प्राचीन काल से चले आ रहे सामाजिक गठन का अंग है, जिसमें विभिन्न समुदायों के लोगों के आध्यात्मिक विवेक के आधार पर काम निर्धारित होता था। प्रायः इन लोगों की संतानों के कार्य भी इन्हीं पर निर्भर करते थे तथा विभिन्न प्रकार के कार्यों के अनुसार बने ऐसे समुदायों को वर्ण कहा जाता था। प्राचीन भारतीय समाज ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र वर्णों में विभाजित था। ब्राह्मणों का कार्य शास्त्र अध्ययन, वेदपाठ तथा यज्ञ कराना होता था जबकि क्षत्रिय युद्ध तथा राज्य के कार्यों के उत्तरदायी थे। वैश्यों का काम व्यापार तथा शूद्रों का काम सेवा प्रदान करना होता था। भारतीय परम्परा में वर्ण शब्द का प्राचीनतम उल्लेख यजुर्वेद के ३१वें अध्याय में मिलता है, लेकिन जाति शब्द का प्रयोग अपेक्षाकृत नया है।

यह चारों वर्ण मनुष्यों की प्रकृति (स्वभाव या विवेक) के तीन गुणों के मिश्रण से बना था – सत, रज और तम। हाँलांकि आज वर्ण और जाति को एक ही व्यवस्था समझ लिया जाता है, लेकिन जाति अपेक्षाकृत नया विचार है। आधुनिक काल में इसी वर्ण व्यवस्था को जाति या जादि (तमिळ) या कुलम (तेलगु) कहते हैं। सिर्फ जन्म के आधार पर निर्धारित हो जाने के कारण इसे कालान्तर में जाति (या कुलम यानि वंशवार) कहा जाने लगा लेकिन गीता जैसी प्राचीन पुस्तकों में वर्ण शब्द का उल्लेख मिलता है लेकिन जाति का नहीं।

गीता में सत (सात्विक), रज (राजसी) और तम (तामसी) गुणों को एकाधिक परिप्रेक्ष्य में बताया गता है। माना जाता है कि प्रत्येक मनुष्य एक समय में इन्हीं तीनों गुणों से मिलकर बना होता है। जो सत गुण प्रधान हो उसे ब्राह्मण (सत्य यानि ब्रह्म में अग्रसर), जो रज गुण प्रधान हो उसे क्षत्रिय, जो रज और तमगुणों का मिश्रण हों उसे वैश्य तथा तम गुणी को शूद्र कहते हैं। भारतीय सिद्धांत के प्रचीनतम पुस्तक वेदों तथा गीता में वर्ण शब्द का उल्लेख मिलता है लेकिन जाति का नहीं। वर्ण शब्द के प्रचलित अर्थों में रंग समझ में आता है।

गीता कर्म से जाति मानती है। जो जैसा कर्म करता है, वह उस जाति का माना जाता है। गुण, कर्म और स्वभाव के कारण मनुष्य-मनुष्य में भेद हो सकता है, पर किसी कुल में जन्म लेने मात्र से नहीं। गीता में कृष्ण कहते हैं, ‘हे अर्जुन, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्रों के कर्म (अपने-अपने) इनके स्वभाव के गुणों के अनुसार अलग-अलग बांटे गए हैं। गीता के श्लोक (18/41) गुण कर्म के अनुसार ये चारों वर्ण मेरे ही द्वारा रचे गए हैं। लेकिन उनका कर्त्ता होते हुए भी तू मुझ को अविनाशी को अकर्ता ही जान। गीता के श्लोक ( 4/13) श्रीकृष्ण आगे कहते हैं, शांत चित्त, इंद्रियों और मन पर नियंत्रण, शरीर, मन और बुद्धि में शुद्धता, सरलता तथा ज्ञान-विज्ञान एवं परमात्मा में विश्वास -ये स्वाभाविक कर्म ब्राह्मण के हैं। गीता के श्लोक (18/42). शूरता, तेज, धैर्य, चतुराई (कार्य करने का उचित ढंग) तथा युद्ध में न भागने का स्वभाव, दान देना, परमात्मा पर विश्वास -ये स्वाभाविक कर्म क्षत्रिय के हैं। गीता के श्लोक (18/43). इसी तरह खेती, गोपालन तथा व्यापार वैश्य के स्वाभाविक कर्म हैं और सेवा कार्य करना शूद्र का स्वाभाविक कर्म है। गीता के श्लोक (18/44) इन सभी में तो व्यवसाय और स्वभाव के अनुसार ही वर्ण विभाजन की बात कही गई है। इसमें किसी जाति में जन्म ने के कारण ऊंच या नीच होने का कोई संकेत नहीं है।

ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र कौन हैं ?

ब्राह्मण : ब्राह्मण वह है जो सिर्फ ब्रह्म की तलाश में है और कह्ता है कि संसार में सब व्यर्थ की आपाधापी है. न तो आलस्य का जीवन अर्थपूर्ण है, क्योंकि वो प्रमाद है; न धन के पीछे की दौड़ अर्थपूर्ण है, क्योंकि वो कहीं भी नहीं ले जाती है; न अहंकारपूर्ण जीवन अर्थपूर्ण है, क्योंकि जगत के अनंत विस्तार में हमारा अस्तित्व ही क्या है ? हम कौन हैं? कहां से आये हैं ? कहां जायेंगे ? जीवन के इन मूल प्रश्नों के साथ आत्म-साक्षात्कार की यात्रा मे उतर जाना ही ब्राह्मणत्व है.

क्षत्रिय : क्षत्रिय वह है. जो राष्ट्र व धर्म की रक्षा के लिये अपना सब कुछ दांव पर लगा दे | जिससे समाज व्यवस्थित तरीके से चलता रहे |

वैश्य : वैश्य वह है, जो समाज के विकास के लिये व्यापार करे और नागरिकों की आवश्यकता की पूर्ति करे |

शूद्र : शुद्र वह है जो समाज के प्रत्येक वर्ग के साथ कंधे में कंधा लगा कर खड़ा हो
फिर भी गीता के एक श्लोक (5/18) में भगवान कृष्ण ने विद्वान, ब्राह्मण, गाय, हाथी, कुत्ता और चाण्डाल को एक समान देखने का निर्देश दिया है और समत्व की भावना रखने वाले की प्रशंसा की है। सभी प्राणियों में एक ही आत्मा समाई है, अर्थात सब प्राणियों में भगवान है।:

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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