हर मनुष्य के भीतर एक नाद बजता है ,मुक्ति के लिये भीतर के नाद सुनना चाहिए । Yogesh Mishra

मुक्ति के लिये भीतर के नाद को सुनो
108 प्रधान उपनिषदों में से नाद-बिंदु एक उपनिषद है, जिसमें बहुत से श्लोक इस नाद पर आधारित हैं। नाद क्या है, नाद कैसे चलता है, नाद के सुनने का क्या लाभ है, इन सब की चर्चा इसमें की गयी है। नाद को जब आप करते हो तो यह है इसकी पहली अवस्था।

दूसरी अवस्था है जहाँ नाद करोगे नहीं, सिर्फ़ अपने कानों को बंद किया और भीतर सूक्ष्म ध्वनि को सुनने की चेष्टा करना। यह सूक्ष्म ध्वनि आपके भीतर हो रही है। इसे अनाहत शब्द कहते हैं पर तुम्हारा मन इतना बहिर्मुख है, बाहरी स्थूल शब्दों को सुनने में तुम इतने व्यस्त हो कि तुम्हारे भीतर जो दैवी शब्द हो रहे हैं, तुम उनको सुन भी नहीं पा रहे। कहाँ से ये शब्द उत्पन्न हो रहे हैं, ये शब्द सुनाई भी पड़ रहे हैं या नहीं, तुम्हे कुछ नहीं पता। यह ध्वनि बहुत ही सूक्ष्म है।

नाद-योग गहरी साधना है। नाद-योग की साधना वही कर पाएँगे जो लोग पहले भ्रामरी, ऊँकार के गुंजन से भी पहले ऊँ के उच्चारण का अभ्यास करें। फिर ऊँ का गुंजन हो। इसके साथ ही साथ योगनिद्रा चल रही हो तो धीरे-धीरे तीन से चार महीने में अथवा छह महीने में अगर आप इसे ईमानदारी से करते रहेंगे, तो छह महीने में आप नाद-योग की साधना सिद्ध कर सकेंगे। इसकी सिद्ध होते ही ईश्वरीय सिद्धियाँ स्वतः प्राप्त होने लगती हैं |

अनाहत शब्द योगाभ्यास द्वारा सुनने और जानने में आते हैं। श्वांस-प्रश्वांस के समय सो एवं अहम् की ध्वनियाँ होती रहती हैं। यह स्पष्ट रूप से कानों के द्वारा तो नहीं सुनी जाती पर, ध्यान एकाग्र करने पर उस ध्वनि का आभास होता है। अभ्यास करने से वह कल्पना प्रत्यक्ष अनुभव के रूप में समझ पड़ती है। इसके बाद कानों के छेद बन्द करके ध्यान की एकाग्रता के रहते, घण्टा, घड़ियाल, शंख, वंशी, झींगुर, मेंढक, बादल गरजन जैसे कई प्रकार के शब्द सुनाई देने लगते हैं। आरम्भ में यह बहुत धीमे और कल्पना स्तर के ही होते हैं किन्तु पीछे एकाग्रता के अधिक घनीभूत होने से वे शब्द अधिक स्पष्ट सुनाई पड़ते हैं। इसे एकाग्रता की चरम परिणति भी कह सकते हैं और अंतरिक्ष में अनेकानेक घटनाओं की सूचना देने वाले सूक्ष्म संकेत भी। गोरख पद्धति में ॐकार की ध्वनि पर ध्यान एकाग्र किया जाता है और उसे ईश्वर की स्व उच्चारित वाणी भी कहा जाता है। गोरख सम्प्रदाय के अतिरिक्त और भी कितने ही उसके भेद-उपभेद हैं जो नादयोग को प्रधानता देते और उसी आधार पर अपनी उपासनाएँ करते हैं। कबीर पन्थ, राधा स्वामी पन्थ आदि में नाद योग की साधना ही प्रधान है।

प्राण विद्युत शरीर के विभिन्न क्रिया-कलापों का संचार करती है। बिजली में एक प्रकार के सूक्ष्म कम्पन होते हैं और वे विभिन्न प्रयोजनों के लिए विभिन्न मन्त्रों द्वारा प्रयुक्त किये जाने पर उन झंकृतियों में थोड़ा बहुत अन्तर पड़ता रहता है। नादयोग में विभिन्न प्रकार की ध्वनियों का अनुभव इसी आधार पर होता है।

आकाश में अदृश्य घटनाक्रमों के कम्पन चलते रहते हैं। जो हो चुका है या होने वाला है, उसका घटनाक्रम ध्वनि तरंगों के रूप में आकाश में गूँजता रहता है। नाद योग की एकाग्रता का सही अभ्यास होने पर आकाश में गूँजने वाली विभिन्न ध्वनियों के आधार पर भूतकाल में जो घटित हो चुका है या भविष्य में जो घटित होने वाला है उसका आभास भी प्राप्त किया जा सका है। यह एक असामान्य सिद्धि है।

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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