आध्यात्मिक ऊर्जा सम्प्रेषण का विज्ञान !
किसी अन्य व्यक्ति को आध्यात्मिक ऊर्जा देने के लिये कुछ बिदु अत्यंत महत्वपूर्ण हैं !
प्रथम तो ऊर्जा देने वाले गुरु का परम चेतना के साथ सम्बन्ध होना परम आवश्यक है ! दूसरा ऊर्जा के आह्वाहन और हस्तानान्तरण करते समय ऊर्जा लेने व देने वाले दोनों की स्थिर मन: स्थिती ! अर्थात गुरु ईमानदारी के साथ देना चाहता हो और शिष्य सहज भाव से ऊर्जा लेना चाहता हो !
तीसरा सबसे महत्वपूर्ण विषय है ऊर्जा हस्तांतरण के समय काल अर्थात समय की अनुकूलता ! जिसमें ग्रह-गोचर, कुण्डली महादशा चक्र और उचित महूर्त देखना आवश्यक है ! इसके लिये अभिजित नक्षत्र और स्थिर योग सर्वश्रेष्ठ रहता है !
चौथी बात है ऊर्जा देने वाले का ज्ञान, अनुभव और कौशल तथा ऊर्जा लेने वाले का देने वाले गुरु के प्रति समर्पण इसके लिये स्थान और दूरी कोई माने नहीं रखती है !
ऊर्जा देने वाले व्यक्ति का परम चेतना के साथ सम्बन्ध जितना गहरा होगा है ! उतनी ही अधिक उसकी क्षमता से वह आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार कर सकेगा ! उस आध्यात्मिक ऊर्जा की गुणवत्ता और सघनता का प्रभाव उतना ही अधिक होगा ! ऊर्जा ग्रहण करने वले व्यक्ति का जितना अधिक मन और बुद्धि शुद्ध होगी ! उस आध्यात्मिक ऊर्जा के साथ उसका सम्बन्ध उतना ही घनिष्ठ होगा !
कुछ विशेष तिथियाँ होती है जैसे नवरात्र, रक्षाबंधन, दीपावली, होली, ईश्वर या गुरु के जन्म दिवस इत्यादि ! जिनमे आध्यात्मिक ऊर्जा की मात्रा प्रकृति में प्रचुर मात्रा में विद्यमान होती है ! जिसके कारण उनका आह्वाहन सहज हो जाता है ! इन तिथियों में मन एवं शरीर भी उसको ग्रहण करने अदभुद योग्य रखता है !
आध्यात्मिक ऊर्जा को किसी अन्य व्यक्ति को देने के लिये ऊर्जा को उसके योग्य बनाना होता है ! क्योकि जो व्यक्ति शरीर और मन से आध्यात्मिक ऊर्जा के लिये तैयार नहीं होता है ! उसको यदि यह आध्यात्मिक ऊर्जा दी जायेगी तो वह व्यक्ति पागल हो सकता है या उसकी मृत्यु भी हो सकती है !
इसलिये जो व्यक्ति आध्यात्मिक ऊर्जा दे रहा है ! उसको ग्रहण करने वाले व्यक्ति की प्रकृति, प्राकृतिक क्षमता और आध्यात्मिक स्तर के अनुरूप ही देना आवश्यक है ! जिसके आधार पर ही यह निर्धारित होता है कि किसको कितनी मात्रा में, किस प्रकार की ऊर्जा, किस समय दी जायेगी ! जिससे वह ग्रहण करने वाले व्यक्ति के लिये उपयोगी हो सके !
ऊर्जा देने वाले और ग्रहण करने वाले व्यक्ति के मध्य समर्पण और स्नेह का सम्बन्ध होना अनिवार्य है ! यह सम्बन्ध इस प्रकार का हो सकता है जैसे – शिक्षक और छात्र का, रोगी और वैद्य का, संस्था प्रमुख और कर्मचारी आदि आदि ! स्वार्थ, भय, कामना, लोभ, दया आदि से किया गया ऊर्जा का हस्तांतरण देने और लेने वाले दोनों को क्षति पहुंचता है ! सर्वश्रेष्ठ आध्यात्मिक सम्बन्ध योग्य गुरु और समर्पित शिष्य का होता है ! दीक्षा की प्रक्रिया इस सम्बन्ध को दृढ़ता प्रदान करती है ! बिना किसी सम्बन्ध के ऊर्जा को संकेंद्रित करने में दोनों को ही तरह-तरह की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है !
स्थान के कारण दूरी अधिक हो तो ऊर्जा के परिवहन के लिये अधिक मात्रा में आध्यात्मिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है ! आध्यात्मिक ऊर्जा सम्प्रेषण के समय उसको ग्रहण करने वाला व्यक्ति यदि मानसिक रूप से तैयार न हो तो वह आध्यात्मिक ऊर्जा व्यर्थ चली जाती है और विपरीत कर्मों के कारण भी आध्यात्मिक ऊर्जा की ग्रहण शीलता कम हो जाती है !
इस प्रकार ऊर्जा के आदान प्रदान हेतु समस्त आवश्यक परिस्थितियों को ज्ञान रख कर ही दोनों को आध्यात्मिक ऊर्जा का सम्प्रेषण करना चाहिये ! यही उचित और शास्त्र सम्मत प्रक्रिया है !