कल सायंकाल मेरे एक मित्र का फोन आया और वह फोन पर ही अपनी शिकायत दर्ज करवाने लगे कि मिश्रा जी आपके लेखों में बड़ा भ्रम है ! कभी तो आप देवी-देवताओं का समर्थन करने लगते हैं और कभी आप उनके विरोध में लिखने लगते हैं ! इसी तरह मैंने यह भी देखा है कि कभी आप धर्म ग्रंथों के सिद्धांतों का समर्थन करते हैं और कभी आप धर्म ग्रंथों के विरोध में लिखने लगते हैं ! जिससे आप के विषय में समाज में एक भ्रम की स्थिति पैदा हो गई है कि आपको नास्तिक गिनें या आस्तिक !
मैंने अपने मित्र को जो जवाब दिया ! वह मैं इस लेख में आप लोगों को भी स्पष्ट करना चाहता हूं ! मेरा स्पष्ट मत है कि मैं उन्हीं विषयों पर विश्वास करता हूं जो शास्त्र में प्रमाण के तौर पर दिये गये हैं और जो सनातन धर्म के मूल सिधान्तों से मेल खाते हों ! किसी भी पंडित, पुरोहित, कथावाचक या भगवान की महिमा का बखान करने वाले व्यक्ति के द्वारा कहीं गई किसी भी बात को मैं प्रमाण नहीं मानता हूं !
आजकल समाज में हो यह रहा है कि लोग अपने को ज्ञानी सिद्ध करने के लिये प्राय: भगवान और शास्त्र के संदर्भ में उन बातों को बतलाते फिरते हैं ! जिनका वास्तव में सनातन धर्म, भगवान या शास्त्र से कोई लेना देना नहीं है ! ऐसी स्थिति में जो लोग अपने स्वाध्याय के बिना मात्र सुनी सुनाई बात पर समाज में अपना फ्री ज्ञान बांटते फिरते हैं ! वही लोग आज सनातन धर्म के लिये बहुत बड़ी समस्या बन गये हैं !
जैसे उदाहरण के लिये भगवान श्री राम के संदर्भ में प्रमाणिक ग्रंथ के तौर पर बाल्मीकि रामायण में कहीं भी लक्ष्मण रेखा का वर्णन नहीं है ! लेकिन फिर भी लोग लक्ष्मण रेखा की चर्चा प्राय: अपने धार्मिक कथाओं में करते रहते हैं !
इसी तरह भगवान श्री राम के विवाह के समय सीता स्वयंवर का वर्णन भी रामायण के अंदर नहीं है ! लेकिन गोस्वामी तुलसीदास द्वारा जो रामचरितमानस लिखा गया ! जो कि एक नाट्य ग्रंथ है ! उसमें सीता स्वयंवर को मात्र जन मनोरंजन के लिये लिखा गया था ! इसका भगवान श्री राम के यथार्थ जीवन से कोई लेना-देना नहीं है !
वर्तमान जाति व्यवस्था पर जब भी प्रवचन दिया जाता है तो उदाहरण दिया जाता है कि भगवान श्रीराम ने शबरी के जूठे बेर खाये थे और इसको कथावाचक प्राय: मंच पर गा बजा कर बड़े अच्छे ढंग से प्रस्तुत करते हैं ! किंतु सत्य यह है कि जंगल में रहने के कारण भगवान श्री राम के स्वागत के लिये अन्य कोई खाद्य पदार्थ उपलब्ध न होने के कारण शबरी ने भगवान श्रीराम को बेर खिलाये थे ! लेकिन वह बेर झूठे थे ! इसका कोई भी वर्णन कहीं भी शास्त्रों में नहीं पाया जाता है !
ठीक इसी तरह महाभारत काल में भी बहुत से ऐसे दृष्टांत मिलते हैं जो किसी और उद्देश्य से घटना घटी थी ! लेकिन उसकी प्रस्तुतीकरण किसी अन्य रूप में समाज के सामने की जाती है ! जैसे कि श्रीमद्भागवत पुराण जो कि भगवान श्री कृष्ण के समकालीन श्री वेदव्यास द्वारा लिखा गया ग्रन्थ है ! उसमें कहीं भी भगवान श्री कृष्ण की महिला मित्र के रूप में राधा जी का वर्णन नहीं है ! किंतु सभी भागवत कथावाचक आज कृष्ण से ज्यादा मंचों पर राधा जी के व्यक्तित्व और सौन्दर्य का वर्णन करते रहते हैं !
अब उसका प्रभाव यह है कि नई जो भागवत पुराण आ रही है ! उसमें जबरदस्ती कुछ श्लोकों की संख्या बढ़ाकर वह कुछ श्लोकों में संशोधन करके राधा जी को भगवान श्रीकृष्ण के नायिका के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है ! जो नितांत आपत्तिजनक है ! अब यह आरोप आप किसी पर नहीं लगा सकते कि कोई विदेशी ताकत ऐसा कर रही है ! जब कि वास्तव में यह सब हमारे भागवतकथा वाचकों के षड्यंत्र के तहत किया जा रहा है ! अन्यथा कोई कथावाचक इस विषय पर अपनी टिप्पणी क्यों नहीं करता है !
ऐसे ही द्रोपती के चीरहरण की घटना को बतलाया जाता है कि यह भीष्म पितामह और धृतराष्ट्र के समक्ष राज दरबार में घटी थी ! जबकि यह नितान्त झूठ है ! क्योंकि राज दरबार में बैठकर ध्रुत क्रीडा नहीं हुई थी और यह जो घटना घटी थी ! वह भी द्रुत क्रीड़ा स्थल पर घटी थी न कि राजदरबार में !
दूसरा इसमें एक कहने का उद्देश्य यह भी है कि द्रोपती को नग्न करने के उद्देश्य से द्रोपती का कोई चीरहरण नहीं हुआ था बल्कि द्रोपती के जुयें में हारने के पूर्व वह महारानी थी और जुयें में हारने के बाद एक दासी !
उस काल में महारानी की एक अपनी विशेष पोशाक होती थी और दसियों की अलग पोशाक होती थी ! जब युधिष्ठिर जुयें में द्रोपती को हार गये ! तब द्रोपती का स्तर महारानी से हटकर दासी का हो गया था और दासी की अपनी अलग पोशाक होने के कारण ऐसी स्थिति में द्रोपती के ऊपर मात्र यह दबाव डाला गया था कि वह महारानी की पोशाक त्याग कर दासी की पोशाक धारण करे ! जिसको कथावाचकों ने मनोरंजन के लिये चीरहरण जैसी घटना में बदल दिया !
ऐसे ही धर्म, दर्शन, अध्यात्म, तंत्र ,ज्योतिष, कर्मकांड, अनुष्ठान, ध्यान, साधना आदि के संदर्भ में इसी तरह के हजारों भ्रम हमारे धर्माचार्य, पंडित, पुरोहित, कर्मकांडी ब्राह्मण, ज्योतिषाचार्य, कथावाचकों द्वारा फैलाया गया है ! जिस पर मैं अपने अध्ययन और संसाधन के अनुरूप लोगों को सत्य बतलाने का प्रयास करता हूं ! इसे मानना न मानना आपके विवेक का विषय है ! इसीलिये कभी-कभी मेरे लेखों से मैं नास्तिक घोषित कर दिया जाता हूं ! तो कभी विधर्मी !
पर मेरा एकमात्र उद्देश्य यह है कि सनातन धर्म के ज्ञान व इतिहास की चर्चा जब भी समाज में हो तो एकदम सत्य परख होनी चाहिये अन्यथा गलत दृष्टांतों के आधार पर समाज का संस्कार भी विकृत हो जाता है और जो कि आने वाली पीढ़ियों के लिये बहुत ही घातक है !
जैसे कि लिविंग टुगेदर के मुकदमे में माननीय सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधिपतियों ने एक टिप्पणी की थी कि जब भगवान श्री कृष्ण राधा के साथ लिविंग टुगेदर में रह सकते हैं ! तो आम व्यक्ति क्यों नहीं रह सकता है ! यह सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधिपतियों के अध्ययन का अभाव है या विकृत संस्कार का ! यह तो वही बतला सकते हैं किंतु आज न्याय के सर्वोच्च शिखर से अगर इस तरह की आवाज आ रही है तो यह निश्चित ही यह सनातन धर्म के भविष्य के लिये एक भयानक चेतावनी है !
इसीलिये मैं सदैव सनातन धर्म से संबंधित सूचनाओं को स्वाध्याय के आधार पर सत्य बतलाने का प्रयास करता हूं ! मेरी दृष्टि में मैं कहीं भी भ्रमित नहीं हूं और जो लोग मुझे भ्रमित मानते हैं ! उन से अनुरोध है कि मुझे नास्तिक, धर्मद्रोही और विधर्मी कहने के पहले एक बार स्वयं भी सही प्रकाशन के धर्म ग्रंथों का अध्ययन जरूर करें ! क्योंकि धर्म के साथ द्रोह मैं नहीं बल्कि अज्ञानतवश आप जैसे समाज के लोग कर रहे हैं !!