कल में कोर्ट से सीधे ही राष्ट्रीय राष्ट्रवादी पार्टी के अध्यक्ष श्री प्रताप चन्द्रा जी के आवास पर गया था ! वहां पर भारतीय लोकतंत्र के रक्षार्थ गहरी चर्चा होने लगी ! उस चर्चा के कुछ वाक्यांश आपके समक्ष रख रहा हूँ !
प्रताप चन्द्रा जी का मानना है कि देश में पहली बार लोकतंत्र के माडल देनें और व्यवस्था परिवर्तन की योजना भाई राजीव दीक्षित जी नें की थी, यह लोगों की ग़लतफ़हमी है कि जेपी और अन्ना व्यवस्था परिवर्तन की सोच रखते थे कहें चाहे जो कुछ पर जेपी नें भी सिर्फ सत्ता परिवर्तन किया और अन्ना नें भी जो वैसे भी हर 5 साल में अमूमन होता ही रहता है पर इससे बदलता कुछ इसलिए नहीं है क्यूंकि लोकतंत्र का अपहरण पार्टीतंत्र नें कर रक्खा है…
…पर अब वो समय आ गया है कि लोकतंत्र को आज़ाद करानें के लिए एकजुट होकर लोकतंत्र सेनापति भाई राजीव दीक्षित जी के कल्पना को साकार करनें का संकल्प कर लोकतंत्र का माडल दिया जाये जिसे राष्ट्रीय राष्ट्रवादी पार्टी लोकतंत्र को आज़ाद करानें के लिए इस लोकसभा में देनें जा रही है जो इस प्रकार होगा :
1- EVM मशीन पर लगी प्रत्याशी की फोटो ही उसका चुनाव-चिन्ह होगा जिससे जनता के प्रति जवाबदेह रहे न कि पार्टी के प्रति !
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2- पार्टी व्हिप जारी नहीं करेगी जिससे कि जनता का जिताया प्रतिनिधि पार्टी का गुलाम न बन सके और जनहित में काम करे !
3- जनप्रतिनिधि चुने जाने के बाद सिर्फ १ पेंशन का ही हक़दार होगा (अभी जितनी बार प्रतिनिधि बनता है उतनें पेंशन पाता है)
4- प्रतिनिधि का चुनाव के समय घोषित संपत्ति एक जायज अनुपात से अधिक बढती है तो उसे राष्ट्र कि संपत्ति घोषित कर दी जाये !
5- चुने जाने के बाद जनप्रतिनिधि पार्टी का पधाधिकारी नहीं रहेगा और पार्टी हेतु प्रचार नहीं करेगा जिससे सिर्फ जनसेवक ही रहे और जनहित में काम करे !
देश में गड़बड़ी की सबसे बड़ी वजह जवाबदेही है क्यूंकि लोक-तंत्र का सीधा सम्बन्ध है जवाबदेही से ! लोकतंत्र कि परिभाषा है “जनता अपनें प्रतिनिधि के माध्यम से सत्ता पर नियंत्रण रखेगी” परन्तु पार्टियों के गिरोह बन जानें से बन गई “इलेक्टेड मोनार्की”…
….संविधान के 19-ABC के अनुसार समूह, संस्था, यूनियन, कोआपरेटिव, सोसाइटी बनानें का अधिकार है, इसी के तहत पार्टियाँ (समूह) बनीं जिसे चुनाव आयोग नें 1989 में RP Act-29 तहत पार्टियों का पंजीकरण किया ताकि पार्टियाँ अपनी विचारधारा का प्रचार कर सकें और अपनी विचारधारा का प्रतिनिधि विकल्प दे सकें, परन्तु चुनाव आयोग द्वारा पार्टियों के लिए किये आरक्षित चुनाव-चिन्ह को पार्टियों नें अपना पहचान-चिन्ह बनाकर ब्रांड प्रोडक्ट के रूप कमल, पंजा, साइकिल, हाथी, झाड़ू, लालटेन आदि स्थापित कर चुनाव-चिन्ह की नीलामी करनें लगे और प्रतिनिधि उस स्टेब्लिश चुनाव-चिन्ह के प्रति जवाबदेह बन गया बजाये जनता के प्रति जवाबदेह होनें के !
चुनाव-चिन्ह की लोकतंत्र में भूमिका : EVM पर चिन्ह (आकृति) केवलअशिक्षितमतदाताओं के लिए लगाया जाता है चूँकि वो नाम नहीं पढ़ पाते है लिहाज़ा चिन्ह (आकृति) देखकर अपने प्रत्याशी को वोट दे पाते हैं, अब EVM पर प्रत्याशी की फोटो (आकृति) लगने लगी है जिसने चुनाव चिन्ह की भूमिका को समाप्त कर दिया ! अब अशिक्षित लोग फोटो पहचान कर मतदान कर सकेंगे लिहाज़ा EVM पर दो-दो चिन्ह को रखना न सिर्फ बेमानी है बल्कि अवसर की समता का उलंघन भी है !
…..चुनाव लडनें की योग्यता संविधान के अनुच्छेद 84 में दी गयी है जिसके अनुसार चुनाव वहीलड़ेगा जो भारत का नागरिक हो, वोटर हो और बालिग भी हो लिहाज़ा साफ़ हो जाता है कि कोई दल, निकाय इन योग्यताओं को पूरा नहीं कर सकती इसीलिए कभी भी दलों का नाम EVM पर नहीं छपता है फिर भी चुनाव-चिन्ह की वजह से ही तय होता है कि किस चिन्ह वाले की सत्ता है और उस चिन्ह के समर्थक भौकाल झाड़ते हैं !