मानव बलि कभी सम्पूर्ण विश्व में धार्मिक अनुष्ठान का अंग था ! Yogesh Mishra

किसी धार्मिक अनुष्ठान के भाग (अनुष्ठान हत्या) के रूप में किसी मानव की हत्या करने को “मानव बलि” कहते हैं ! महाभारत के अनुसार हिडिंब नामक एक राक्षस था, जो अपनी बहन हिडिंबा के साथ वन में रहा करता था ! उसकी बहन हिडिंबा काली माता की भक्त थी और उसे प्रतिदिन चढा़वे के रूप मे एक मनुष्य की बलि देनी होती थी ! एक दिन हिडिंब बहन के लिए मानव बलि हेतु वनवासरत् पांडवों में से एक भीम को पकड़ लाया ! हिडिंबा भीम को देख उस पर मोहित हो गई, और भीम से बोली कि वह अपने भाई हिडिंब से उसे बचा कर कहीं दूर स्थान पर भेज देगी ! जब बहुत समय होने पर भी हिडिंबा मानव बलि के लिए भीम को लेकर नहीं आई, तो हिडिंब अपनी बहन के पास पहुँचा और भीम के साथ विहार करती हिडिंबा को मारने के लिए दौडा़ ! इस पर भीम ने उसे ललकारा और उसका वध कर दिया ! भीम और हिडिंबा के गन्धर्व विवाह से हिडिंबा को घटोत्कच नामक पुत्र प्राप्त हुआ ! जिसे महाभारत युद्ध के समय कर्ण ने मारा था !

मानव बलि के पीछे सामान्य तर्क धार्मिक बलिदान के जैसे ही हैं ! वेदों में वर्णित मानव बलि के बारे में 19 वीं सदी के सभी विचारों से बेहतर “हेनरी कोलब्रुक” का कहना है कि मानव बलि को धर्मग्रन्थ सम्बन्धी अधिकार बस ज़रा सा ही है, वास्तव में यह लिखित में कहीं नहीं पाया जाता है ! वेद छंद जो पुरुषमेध से सम्बंधित हैं, उन्हें सिर्फ प्रतीकात्मक रूप से पढ़ा जाना चाहिए, अथवा इन्हें पुरोहित की कल्पना समझा जाना चाहिए हालांकि, राजेंद्रलाल मित्रा ने इस विचारधारा के विरुद्ध प्रकाशन किया था ! उनके अनुसार भारत में मानव बलि की शुरुआत तंत्र प्रयोग हेतु बंगाल से हुई थी और इसे बंगाल में वैदिक समय से लगातार वास्तव में किया जाता था !

मानव बलि का अभीष्ट उद्देश्य अच्छी किस्मत लाना है या देवताओं को शांत करना होता है ! उदाहरण के रुप में एक मंदिर या पुल की तरह किसी भवन के समर्पण का सन्दर्भ चीनी की एक पौराणिक कथा से लेते हैं ! चीन की महान दीवार के नीचे हजारों लोग दफ़न हैं !

प्राचीन जापान में हीतोबशीरा (“मानवीय स्तम्भ”) के विषय में किवदंतियां हैं कि जिसमें किसी निर्माण के आधार में अथवा इसके निकट प्रार्थना के रूप में किसी कुंवारी स्त्री को जीवित ही दफ़न कर दिया जाता था ! जिससे कि इमारत को किसी आपदा अथवा शत्रु-आक्रमण से सुरक्षित बनाया जा सके ! रॉस हास्सिग जो कि एज्टेक वॉरफेयर के लेखक है उनके अनुसार 1487 में टेनोक्टिटलान के महान पिरामिड के पुनर्निर्माण के लिए एज्टेकों ने विनाश के देवता को खुश करने के लिये चार दिनों के अन्दर लगभग 80,400 बंदियों की बलि दे दी थी !

मानव बलि को युद्ध में देवताओं का अनुग्रह पाने के इरादे से भी दिया जाता था ! होमर की पौराणिक कथाओं में ट्रोजन युद्ध में उसके पिता ऐगामेम्नन द्वारा इफ़ीजेनिया की बलि चढ़ा दी गयी थी ! बाइबिल के अनुसार यिप्तह ने शपथ लेने के बाद अपनी पुत्री की बलि दी थी ! (जजेस 11)

मानव बलि के लिए एक अन्य प्रेरणा दफनाना है ! विश्वास है कि अगले जन्म में मृतक को अपनी अंत्येष्टि में पीड़ितों की मृत्यु से लाभ होता है ! मंगोलों, स्काइथियनों, प्रारंभी मिस्र के लोगों तथा कई मेसोअमेरिकन नायक अपने साथ अपना घरेलू सामान जिसमें उनके नौकर तथा रखैलें शामिल होते थे उन्हें अगली दुनिया के लिए ले जाते थे ! इसे कभी “सेवक बलि” कहा जाता था ! विश्व के महान नायकों के साथ इनके सेवकों को अपने स्वामियों के साथ ही दफ़न कर दिया जाता था !

इतिहास में कभी “मानव बलि” को किसी स्थिर समाज में किये जाने वाले संस्कार के रूप में या सामजिक बन्धनों के सुचालक के रूप में देखा जाता था ! कभी बलिदान करने वाले समाजों को जोड़ने वाले बंधन स्थापित करने के लिए तो कभी मानव बलि को प्राणदंड से जोड़ा जाता था !

किसी भी ऐसे व्यक्तियों को हटाने के लिये, जिनका सामाजिक स्थावित्व पर गलत प्रभाव पड़ सकता है (अपराधी, धर्म विरोधी, विदेशी गुलाम तथा युद्ध बंदी आदि) के लिये मानव बलि का खूब खुल कर उपयोग होता था ! लेकिन जब नागरिक धर्म से हटकर “मानव बलि” “रक्त उन्माद” के आवेग के रूप के साथ ही समूह हत्याओं के रूप में परिणित हो जाती है तो समाज का संतुलन खो सकता है !

गिनीज़ बुक ऑफ रेकॉर्ड्स के अनुसार “ठगी पंथ” लगभग 2 करोड़ मृत्युओं के लिए जिम्मेदार था ! यूरोपियन विच-हंट (चुड़ैलों का शिकार) के दौरान अथवा फ्रांसीसी क्रन्तिकारी आतंक के साम्राज्य के दौरान भी मृत्यु-दंड की बाढ़-सी आ गयी थी ! जो मानव बलि का प्रयोग विशुद्ध रूप से अपने निजी लाभ के लिये कर रहे थे !

इसीलिए इसको समाज हित में उचित न मानते हुए मृत्यु के अपराध की श्रेणी में रखा गया ! आज विश्व के लगभग सभी विकसित देशों में मानव बलि मृत्यु तुल्य अपराध है ! फिर भी अंधविश्वास बस कभी-कभी मानव बलि की घटनाएं सुनने को मिलती हैं !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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