सप्तमुखी रुद्राक्ष का महत्व एंव सिद्ध करने की पूर्ण विधि । जरूर पढ़ें , महत्वपूर्ण जानकारी ।

माँ लक्ष्मी की स्थाई कृपा और धन आभव से छुटकारे इस रुद्राक्ष के बिना नहीं होता है | दुश्मनों को नष्ट करके, कारावास योग, काल सर्प योग, विषाक्तता, अकाल मृत्यु, शनि के नकारात्मक प्रभावों से बचाता है यह “सिद्ध रुद्राक्ष” |

महाशिवपुराण के अनुसार “स्वर्ण आदि धातुओं की चोरी या बेईमानी करने के पाप से व्यक्ति सदैव धन आभव से परेशान रहता है, इससे मुक्ति के लिये सात आवरण, पृथ्वी, जल, वायु, आकाश, अग्नि व अन्धकार का स्वरूप सात मुखी रुद्राक्ष विशेष प्रक्रिया द्वारा जागृत करके धारण करना चाहिए । सात मुखी रुद्राक्ष के देवता सप्तऋषि हैं जिनकी कृपा से धन, यश, संपत्ति, संतान,स्वास्थ्य, आयु तथा मोक्ष प्राप्त होता है ।

“सप्तवक्त्रो महासेन अनंतो नाम नामतः।
स्वर्णस्तेयं गोवधंच कृत्वा पापशतानि च।।”

हे महासेन ! सप्तमुखी रुद्राक्ष ’अनन्त’ नाम करके विख्यात है। जिस मनुष्य ने सोने की चोरी की है, अनेक प्रकार के सैकड़ों पाप किए हैं उनको यह पवित्र बना देता है। यह रुद्राख अभीष्ट सिद्धियों को देने वाला, पाप नाशक एवं भूमि प्रदाता है।

विशेष :- रुद्राक्ष कई वर्ण का होता है | तंत्र या कामना सिद्धि के लिए लक्ष्य के अनुरूप रुद्राक्ष का प्रयोग किया जाता है |

ब्राम्हण वर्ण का रुद्राक्ष : साधना व सिद्धि, शिक्षा, ज्ञान प्राप्ति, प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता प्राप्ति हेतु किया जाता है |

क्षत्रिय वर्ण का रुद्राक्ष : शत्रु शमन, पौरूष जागरण, न्यायालय के विवादों को निपटाने हेतु किया जाता है |

वैश्य वर्ण का रुद्राक्ष : सांसरिक कामना सिद्धि, धन आगमन सिद्धि, धन रक्षा सिद्धि, हेतु किया जाता है |

शुद्र वर्ण के रुद्राक्ष : शनि की ढैया व साढेसाती से बचने हेतु, कारावास योगके निदान हेतु, शुद्रों से सहयोग की प्राप्ति हेतु किया जाता है |

रुद्राक्ष के दानों में गैसीय तत्व होते हैं | कार्बन 50 |031 %, हाईड्रोजन 17 |897 % नाइट्रोजन 0 |095 %, आक्सीजन 30 |453 % इसके अतिरिक्त एल्युमिनियम, कैल्शियम, तांबा, कोबाल्ट, तांबा, आयरन की मात्रा भी पर्याप्त होती है । इसी चुम्बकीय और विद्युत ऊर्जा से वर्णानुसार रुद्राक्ष धारण करने से शरीर को अलग-अलग लाभ होता है। असली शुद्ध रुद्राक्ष दुर्लभ है । मशीनों द्वारा इसका कृतिम निर्माण किया जाता है जो प्रभावहीन होते हैं | बाजार, टैलीविजन में बेधड़क जो रुद्राक्ष बिक रहे हैं वह शायद ही शुद्ध हों।

इसे धारण करने से एक ऐसी सकारात्मक उर्जा मिलती है, जो मनुष्य को उसके दैहिक, दैविक व भौतिक दु:खों को दूर करने में सहायक है। वैसे तो सामान्यत: 24 से 48 घंटे में ही इसका प्रभाव दिखने लगता है पर कार्यसिद्धी में रुद्राक्ष का प्रभाव चालीस दिन में दिखता है।

प्राचीन काल में ऋषियों को यह अत्यन्त प्रिय था और ऋषिगण प्रायः रुद्राक्षों में इसका प्रयोग ही सर्वाधिक किया करते थे। यह रुद्राक्ष वृष, कन्या,कुम्भ लग्न के जातकों को विशेष लाभ प्रदान करता है। सात मुखी रुद्राक्ष शरीर में सप्त धातुओं की रक्षा करता है और शरीर के मेटाबोलिज्म को दुरुस्त करता है |

ग्रन्थों के अनुसार सात मुखी रुद्राक्ष धारण करने वाले पर शनि देव की विशेष कृपा होती है इसलिए जो व्यक्ति जो व्यक्ति शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या से परेशान हैं या शनि की महादशा से प्रभावित हैं या मानसिक रूप से परेशान हैं, किसी कों जोड़ो मेँ दर्द की शिकायत हो तो उसे सात मुखी रुद्राक्ष धारण करने से विशेष लाभ होता है |

जो लोग कोर्ट-कचहरी के मामलों में फंसे हों व्यक्ति कारावास में हो या कुंडली में प्रबल कारावास योग चल रहा है तो उनके लिए यह रुद्राक्ष एक बेहद उपयोगी है।
महामृत्युंजय मंत्र का जाप करने वाले को यह रुद्राक्ष अवश्य धारण करना चाहिये ।

सप्त मुखी रुद्राक्ष धारण करने के लाभ सप्तमुखी रुद्राक्ष सात माताओं तथा सप्तऋषियों का प्रतिनिधित्व करता है | इसके उपयोग से धन-संपत्ति, कीर्ति और विजय प्राप्त होती है | सात मुखी रूद्राक्ष महालक्ष्मी का स्वरूप माना गया है |
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इसे धारण करके व्यक्ति लोभ ओर मद के भाव से मुक्त होता है | धन की कमी दूर होती है |

· काल सर्प रोग के बुरे प्रभावों से बचाव होता है |

· व्यक्ति को आध्यात्मिक सुख प्रदान करता है |

· विषाक्तता से ग्रस्त व्यक्ति यदि इसे धारण करे तो वह किसी भी तरह के
कष्ट से मुक्ति अवश्य प्राप्त करता है |

· मारक ग्रह की दशा होने पर इसे धारण कर सकते है यह रक्षा कवच का कार्य करता है और व्यक्ति अकाल मृत्यु के भय से भी मुक्त हो जाता है |

· यह शनि द्वारा संचालित होता है | आर्थिक, शारीरिक और मानसिक विपत्तियों से रक्षा करता है | शनि के नकारात्मक प्रभावों से मुक्ति प्रदान करता है

· चोरी, व्यभिचार और हत्या जैसे जघन्य पापों से मुक्त करता है | दुश्मनों को नष्ट करता है

· व्यक्ति को आध्यात्मिक सुख प्रदान करता है | यश सम्मान तथा जीवन में प्रगति लाता है | इसे पहनने से देवी महालक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होता है |

औषधिय लाभ :

सात मुखी रूद्राक्ष को धारण करने से अनेक प्रकार के स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होते हैं | यह गठिया दर्द, सर्दी, खांसी, पेट दर्द, हड्डी एवं मांसपेशियों में दर्द, लकवा, मिरगी, बहरापन, मानसिक चिंताओं, अस्थमा जैसे रोगों पर नियंत्रण करता है | इसके अतिरिक्त यौन रोगों ,हृदय की समस्याओं ,गले के रोगों में भी फ़ायदेमंद है |

सात मुखी रुद्राक्ष को धारण करने की विधि व मंत्र

सात मुखी रुद्राक्ष को धारण करने का मंत्र “ॐ हूँ नमः” है | इस रुद्राक्ष को धारण के पश्चात इसी मंत्र की तीन माला रोज़ अगर जाप किया जाए तो इस रुद्राक्ष की क्षमता कई गुना बढ़ जाती है और धारक को धन एवं यश की प्राप्ति होती है अतः हर नौकरी या व्यवसाय करने वाले मनुष्य को सात मुखी रुद्राक्ष अवश्य धारण करना चाहिए | मंत्र का जप करते हुए गले या दाएँ बाज़ू में धारण करना चाहिये |

रुद्राक्ष सिद्ध करने की विधि

शनिवार के दिन रुद्राक्ष को सरसों के तेल में डुबोकर रखें। तीसरे दिन सोमवार को इसे निकाल कर तेल साफ करके एक दिन के लिए पंचामृत (वैदिक पध्दति से निर्मित) में डुबोंकर रखें। अगले दिन पंचामृत से निकाल कर साफ करके निम्न प्रकार से पूजा कर सिद्ध करने के उपरांत प्रयोग करें।

जो भी एक अथवा अधिक रुद्राक्ष आपने शुद्ध किया है उसे योग्य व्यक्ति से प्राण-प्रतिष्ठित करवा लें। यदि स्वयं कर सकते हैं तो सबसे अच्छा है। इस उपाय के लिए वैसे तो अमावस्या की कोई भी काल रात्रि चुनी जाती है परन्तु दीपावली की महानिषा इसके लिए सर्वाधिक उपयुक्त है। तकली से कता हुआ कच्चा सूत तथा चुना हुआ रुद्राक्ष लेकर आप किसी भी एकांत स्थान में किसी घने पीपल अथवा बड़ के वृक्ष के नीचे जहाँ शिव जी का वास हो वहाँ जाएं। उसके नीचे जड़ में यह रुद्राक्ष रख दें । इसके चारों ओर 7 बर्फी के टुकड़े तथा एक मुट्ठी साबुत उड़द की काली दाल सजा दें। मन में निरन्तर लक्ष्मी जी का ध्यान बनाएं रखें ।

अब निम्न लिखित मंत्र का जप करते हुए तथा हाथ से धीरे-धीरे कच्चा सूत वृक्ष पर लपेटते हुए वृक्ष की सात बार उल्टी प्रदक्षिणा करें अर्थात् अपने दाएं हाथ से बाएं हाथ की ओर – ‘‘रमन्ता पुण्या लक्ष्मीर्या पापीस्ता अनीनषम्’’ (अथर्व 7/115/4) । इस प्रकार मंत्र जपते हुए वृक्ष पर आप सात बार कच्चा सूत लपेट दें। उल्टी प्रदक्षिणा का तात्पर्य है प्रायष्चित स्वरुप आप वृक्ष को साक्षी मानकर अपना प्रारब्ध सुधार रहे हैं। यह उपाय पित्र जनों की शान्ति स्वरुप भी समझा जा सकता है। उपाय के अंत में मिटटी के पात्र से श्रद्धा पूर्वक वृक्ष को अघ्र्य दें और जल से भर कर पात्र को बर्फी के पास ही रख दें।

रुद्राक्ष को उठाकर उक्त मंत्र जपते हुए तथा यह भावना निरंतर बनाते हुए कि लक्ष्मी जी को आप घर में प्रवेश करवाने जा रहीं हैं। अब रुद्राक्ष या तो धारण कर लें अथवा इसे लाल कपड़े में लपेटकर अपने पूजा स्थल अथवा अन्य पवित्र स्थान पर स्थापित कर दें। नित्य एक माला नियम बनाकर निम्न लिखित मंत्र का नियमित जाप करते रहें।

“ॐ श्रीं श्रीयै नम:”

विशेष : प्रक्रिया में त्रुटी होने पर हानि भी हो सकती है अत: संस्थान से सिद्ध रुद्राक्ष प्राप्त कर सकते हैं

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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