रामचरितमानस का निर्माण भारतीय सनातन संस्कृति के विकट संघर्ष काल में हुआ है ! उस समय लंबे समय तक भारत में मुगलों का शासन था ! जिन्होंने छल और बल दोनों तरीके से भारतीय संस्कृति को नष्ट करके अपनी इस्लामिक संस्कृति का विस्तार करने के लिये अनेक षड्यंत्र रचे थे !
उसका यह परिणाम हुआ था कि लोग अपनी सनातन संस्कृति और हिंदू धर्म को छोड़कर इस्लामिक राजाओं के प्रभाव में इस्लामिक संस्कृति को स्वीकार करने लगे थे ! जिससे समाज में हिन्दू रीति रिवाज और हिंदू चाल चलन का प्रभाव तेजी से ख़त्म रहा था !
हिंदुओं के होते इस पतन को देखकर गोस्वामी तुलसीदास जी ने यह विचार किया कि यदि मनुष्य मनुष्य को प्रशिक्षित करेगा, तो इस समस्या का समाधान नहीं किया जा सकता है !
अतः पैतृक कवि की विरासत का पालन करते हुए गोस्वामी तुलसीदास जी ने भगवान श्रीराम को आदर्श मानते हुए सनातन हिंदू जीवन शैली के रीति-रिवाजों के पुन: स्थापन के लिए भगवान श्री राम के रामराज्य की अवधारणा का सहारा लिया !
और अपने लेखन प्रतिभा से समाज को यह बतलाने की चेष्टा की कि भगवान श्री राम के राम राज्य में मनुष्य के जीने का आदर्श तरीका क्या था ? वह किस तरह से धर्म के आदेशों का पालन करता था ! किन रीति-रिवाजों और परंपराओं को मान्यता देता था !
इस तरह की लोक परंपराओं और मान्यताओं के प्रचार प्रसार के लिये रामचरितमानस के सहायक ग्रंथों के रूप में गोस्वामी तुलसीदास ने 11 अतिरिक्त ग्रंथों की रचना भी की थी !
जिसका प्रभाव यह हुआ कि हिंदू समाज जो कि इस्लामिक संस्कृत की ओर आकर्षित हो रहा था, उसे पुनः अपने प्राचीन रीति-रिवाजों और परंपराओं को स्मरण करने का मौका मिला और भगवान श्री राम के आदर्श रामराज की पुनः स्थापना के आंदोलन को लेकर आम जनमानस ने अपने प्राचीन रीत रिवाज, परंपरा और धार्मिक अनुष्ठान आदि को पुनः महत्व देना शुरू कर दिया !
यही रामचरितमानस का हिंदू समाज में अभूतपूर्व महत्व है ! अगर सही समय पर गोस्वामी तुलसीदास इस अद्भुत ग्रन्थ का लेखन न करते तो शायद आज हिंदू समाज अपनी बहुत सी परंपराओं को भूल चुका होता है !
इसके लिए हिन्दू समाज की रक्षा के लिये संत शिरोमणि महान कवि गोस्वामी तुलसीदास को सदैव सदैव स्मरण करना चाहिए ! जिनकी वजह से आज हम सभी हिंदू रीति-रिवाजों का पालन कर रहे हैं !!