रुद्राक्ष की महिमा
रुद्राक्ष अड़तीस प्रकार के थे। इनमें कत्थई वाले बारह प्रकार के रुद्राक्षों की सूर्य के नेत्रों से,
श्वेतवर्ण के सोलह प्रकार के रुद्राक्षों की चन्द्रमा के नेत्रों से
तथा कृष्ण वर्ण वाले दस प्रकार के रुद्राक्षों की उत्पत्ति अग्नि के नेत्रों से मानी जाती है।
ये ही इनके अड़तीस भेद हैं।
ब्राह्मण को श्वेतवर्ण वाले रुद्राक्ष, क्षत्रिय को रक्तवर्ण वाले रुद्राक्ष,
वैश्य को मिश्रित रंग वाले रुद्राक्ष और शूद्र को कृष्णवर्ण वाले रुद्राक्ष धारण करने चाहिए।
रुद्राक्ष धारण करने पर बहुत से सांसारिक एवं आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होते हैं इसलिये मनुष्य को अपने कण्ठ में बत्तीस, मस्तक पर चालीस,
दोनों कानों में तीन-तीन, दोनों हाथों में बारह-बारह, दोनों भुजाओं में सोलह-सोलह, शिखा में एक और वक्ष पर एक सौ आठ रुद्राक्षों को धारण करना चाहिये, वह साक्षात भगवान नीलकण्ठ का रूप समझा जाता है।
उसके जीवन में सुख-शांति बनी रहती है। रुद्राक्ष धारण करना भगवान शिव के दिव्य-ज्ञान को प्राप्त करने का साधन है।
सभी वर्ण के मनुष्य रुद्राक्ष धारण कर सकते हैं।
रुद्राक्ष के पचास या सत्ताईस मनकों की माला बनाकर धारण करके जप करने से अनन्त फल की प्राप्ति होती है।
ग्रहण, संक्रांति, अमावस्या और पूर्णमासी आदि पर्वों और पुण्य दिवसों पर रुद्राक्ष अवश्य धारण किया करें।
रुद्राक्ष धारण करने वाले के लिए मांस-मदिरा आदि पदार्थों का सेवन वर्जित होता है।”