ग्रहों के वक्री मार्गी होने का प्रभाव
जब ग्रह पृथ्वी के सापेक्ष सीधी दिशा में सामान्य गति करते हैं तो उन्हें मार्गी तथा जब ग्रह पृथ्वी के सापेक्ष उल्टी दिशा में गति करते हैं तो उन्हें वक्री ग्रह कहा जाता है |सूर्य व चन्द्रमा सदैव मार्गी रहते हैं तथा राहु और केतु सदैव वक्री रहते हैं | शेष पांच ग्रह सदैव वक्री मार्गी होते रहते हैं जिसके परिणाम निम्न हैं :-
1-शनि जब मार्गी हो तो उस समय शत्रुता और शत्रुनाश के लिए समस्त कार्यों में सफलता मिलती है।
2-शनि जब वक्री हो तो दो मित्रों में एवे दो प्रेमियों में विद्वेषण एवं उच्चाटन के लिए सफलता मिलती है।
1.गुरु जब वक्री होता है तो भूमि, जायदाद व प्रतिष्ठा में न्यूनता व कमी लाने वाला कार्य कराता है।2-इसके विपरीत जब-जब वह मार्गी होता है तो भूमि जायदाद, औहदे में बढ़ोत्तरी तथा सामाजिक प्रतिष्ठा व अन्य कार्यों में सफलता के कार्य करने हेतु किये गए तिलस्मों (यन्त्रों) में सफलता मिलती है।
1-मंगल जब मार्गी होता है तब यश, मान, पद, प्रतिष्ठा और किसी वस्तु का आयोजन- संयोजन, संगठन के लिए किये गए कार्यों में सफलता मिलती है।
2-इसके विपरीत इसके वक्री होने पर सभा, फौज को नष्ट करने के लिए विघटन सम्बन्धित सामूहिक कार्यों के लिए बचाये गए तिलस्मों (यन्त्रों) में सफलता मिलती है।
1-इसके मार्गी होने पर स्त्री-जाति में प्रेम-सम्बन्ध, मित्रता एवं ऐश्वर्यशाली वस्तुओं के क्रय-विक्रय, संयोजनात्मक कार्य, पार्टी, विवाह सगाई इत्यादि कार्यों में सफलता मिलती है।
2-इसके विक्री होने पर गर्भपात, संताननाश हेतु बनाये गए तिलस्मों (यंत्रों) में विशेषकर सफलता मिलती है।
1-बुध मार्गी होने पर यश, मान और हर प्रकार की विद्या प्राप्त करने हेतु बनाये गए तिलस्मों (यंत्रों) में सफलता मिलती है।
2-इसके विपरीत यह वक्री होने पर किसी को जलील करना, अपमानित करना व नीचा दिखाने के लिए किये गए तिलस्मों (यंत्रों) में सफलता मिलती है।