भारत को आतंक से लड़ना इजराइल से सीखना होगा ! Yogesh Mishra

जम्मू-कश्मीर में कल गुरुवार को अब तक का सबसे बड़ा आतंकी हमला हुआ ! जम्मू-श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग पर अवंतीपोरा के पास गोरीपोरा में हुए हमले में सीआरपीएफ के 44 जवान शहीद हो गये ! लगभग दो दर्जन जवान जख्मी हैं ! इनमें से कई की हालत गंभीर है !

हमले को पाकिस्तान से संचालित जैश ए मुहम्मद के आत्मघाती दस्ते अफजल गुरु स्क्वाड के स्थानीय आतंकी आदिल अहमद उर्फ वकास ने अंजाम दिया ! उसने 320 किलो विस्फोटकों से लदी स्कॉर्पियो को सीआरपीएफ के काफिले में शामिल जवानों से भरी एक बस को टक्कर मारकर उड़ा दिया ! काफिले में शामिल तीन अन्य वाहनों को भी भारी क्षति पहुंची है !

इस आतंकी हमले की अमेरिका, रूस और फ्रांस समेत दुनियाभर के कई देशों ने निंदा की और कहा है कि आतंकवाद के खतरे से लड़ने के लिए वे भारत के साथ खड़े हैं ! भारतीय नेताओं के भी आक्रोश और हमदर्दी से भरे बयान आ रहे हैं ! लेकिन इतना काफी नहीं है ! अब हमें इस आतंक वाद को भारत की धरती पर जड़ से ख़त्म करना होगा ! इसके लिये इसरायल के यहूदियों से प्रेरणा लेनी चाहिये !

यहूदियों का यदि इतिहास देखें तो विश्व की एक संस्कृति है जीवन ! इसको मानने वाले “जेविश” कहलाये ! सामान्य भाषा में इन्हें ही “यहूदी” कहते हैं ! 1492 तक यहूदी स्पेन में बसे थे ! यहाँ से स्पेन के मूल ईसाइयों नागरिकों ने यहूदियों और मुसलमानों को खदेड़ दिया था ! मुसलमान तो अरब तक खदेड़े गये ! कुछ यहूदी पेलेस्टाइन में बसे जहाँ से बाद में अरब के लोगों ने इन्हें भगा दिया !

यहूदी इसरायल को अपने ईश्वर के अवतार की भूमि मानते थे ! यहाँ से खदेड़े जाने के बाद यह बडी संख्या जर्मनी में जाकर बस गये और कुछ पुर्तगाल, ब्रिटेन, अमेरिका आदि अन्य देशों में भी बिखर गये ! पन्द्रहवीं शताब्दी से यह बराबर अलग अलग देशों से खदेड़े ही जा रहे थे और दुनिया भर में सिर छिपाने की जगह तलाशते रहे थे !

हिटलर का दौर आया, तो जर्मनी में यहूदियों पर कहर बरपाया जाने लगा ! गाजर-मूली की तरह यहूदी काटे गये ! जिन्दा या मुर्दा यहूदी पकड़कर लाने पर इनाम मिलता था ! उस समय जर्मनी में ही नहीं दूसरे यूरोपीय देशों में भी यहूदियों पर अत्याचार होने लगे ! उस समय भारत छोड़कर कोई देश ऐसा नहीं था, जहाँ यहूदियों को सताया न गया हो ! यह दौर 18वीं शताब्दी तक चलता रहा ! 19वीं शताब्दी में भी यहूदी पूरी दुनिया में आश्रयहीन होकर भटकते रहे ! पाँच सौ साल से ज्यादा का समय इन्होने प्रताड़ना और भटकाव में गुजरा !

1881 में एक घटना घटी जिसे चमत्कारिक ही माना जा रहा है ! एक महाशय अमेरिका में रहते थे ! उनका नाम था “थियोडोर हर्जिल” ! इन्हें यहूदियों का अपना कोई देश न होने की बेचैनी हुई ! इनके सिर पर जुनून सवार हो गया कि यहूदियों की इस समस्या का समाधान होना चाहिए ! इन्होंने अपने को एक कमरे में बन्द कर लिया ! बिना खाये पिये कई दिन बीत गये ! इन्हें युक्ति सूझी ! यहूदी कहते हैं हर्जिल खुद भी यहूदी थे ! इसलिए वह अपने लोगों की पीड़ा से भलीभाँति अवगत थे ! इन्हें समाधान सूझा ! यह कि अब यहूदी जब आपस मे मिलेंगे, तो एक-दूसरे से अभिवादन की जगह कहेंगे कि “अगले बरस यरूशलम में” ! यह परस्पर नमस्कार अभिवादन का पर्याय बन गया !

हर्जिल ने दुनिया के तमाम देशों में भ्रमण किया ! सबको समझाया, चलो येरूशलम ! “अस्तित्व को बचाना है तो इकट्ठे हो अपनी जमीन पर !” वहीं बसो ! भूखों मरना है, तो अपनी जमीन पर मरो ! हर्जिल का यह सन्देश एक भावनात्मक अपील की तरह यहूदियों में बड़ी गहराई तक छा गया ! 1881 से 1896 तक हर्जिल की इस भावनात्मक अपील ने दुनिया के सरे यहूदियों तक फैल गयी ! उन्होंने 1881 में यरूशलम चलने का पहला आहान किया ! इसे “प्रथम अलियाह” कहा जाता है ! 1886 में हर्जिल ने एक पत्र खास यहूदियों के लिए प्रकाशित किया ! इसमें अपने यहूदी राष्ट्र की विस्तृत रूपरेखा प्रस्तुत की !

“दूसरी अलियाह” 1904 से 1914 तक की गई ! यानी इस दौर में एक बार पूरी दुनिया के यहूदियों को हर्जिल की अपील ने फिर झकझोरा ! परिणाम हुआ और 40 हजार से ज्यादा यहूदी यरूशलेम पहुँच गये ! पैलेस्टाइन (आज के फलस्तीन) में ये यहूदी जहाँ तहाँ बस गये !

प्रथम विश्व युद्ध के समय ब्रिटिश की विदेश मन्त्री “अर्थर बलफोर्ड” ने आग में घी का काम कर दिया ! बलफोर्ड ने एक प्रस्ताव की घोषणा की जिसे आज इतिहास में “बलफोर्ड घोषणा” के नाम से जाना जाता है ! इन्होंने कहा कि फिलिस्तीन में ही एक हिस्सा यहूदियों को अपना देश बनाने लिये दिया जाना चाहिए ! क्योंकि यह इनके पूर्वजों की जगह है ! 1922 में लीग ऑफ नेशन्स ने बलफोर्ड के प्रस्ताव के समर्थन में एक नया प्रस्ताव पारित कर दिया !

उस समय फलस्तीन में अरब, मुस्लिम जनसंख्या 89 प्रतिशत और 11 प्रतिशत यहूदी थे ! उक्त प्रस्ताव से यहूदियों का मनोबल और बढ़ा ! हर्जिल के विचार के साथ एक बड़ी फौज खड़ी हो गयी ! इनके लोग अपने यहूदी साथियों को दुनिया भर से बटोर कर फलस्तीन में बसने के लिए समझाने लगे ! यह 1924 से 1929 तक “तीसरा अलियाह” कहा जाता है ! इस अवधि में एक लाख और यहूदी फलस्तीन पहुँच गये ! नाजियों ने जब 1930 में प्रचण्ड अत्याचार किये, तो “पाँचवाँ अहियाह” हुआ ! इस दौर में बड़ी संख्या में यहूदी फलस्तीन पहुँचे ! इनकी संख्या दो लाख 50 हजार आकी गयी ! इससे फलस्तीन में दंगे भड़कने लगे ! अरब मुसलमान इस तरह यहूदियों को आकर बसते जाने से परेशान होकर हमलावर हो गये !

पर दूसरे विश्व युद्ध की समाप्ति तक फलस्तीन में 33 प्रतिशत आबादी यहूदी हो चुकी थी ! 1945 में हजारों के झुण्डों में यहूदी फलस्तीन की तरफ दौड़ पड़े ! पूरे यूरोप से यहूदी अपना सामान बटोर कर पहुँचने लगे ! अन्तत: नवगठित संयुक्त राष्ट्र संघ ने फलस्तीन के विभाजन का प्रस्ताव मंजूर कर यूनाइटेड नेशन्स की जनरल एसेम्बली के प्रस्ताव 181 के अनुसार फलस्तीन का विभाजन तय कर दिया !

और 29 नवम्बर 1947 को अरब और यहूदियों (जविश) के बीच फलस्तीन राष्ट्र का बटवारा कर दिया गया ! येरूशलम को संयुक्त राष्ट्र संघ के अधीन अलग रखने की घोषणा की गयी ! यहूदियों ने संयुक्त राष्ट्र संघ का यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया पर अरब लोंगों ने इसे मानने से मना कर दिया ! इसीलिये दिसम्बर 1947 को अरब लीग के आहान पर तीन दिन की हडताल हई !

फलस्तीन में जातीय संघर्ष शुरू हो गया ! यहूदी शुरू में बचाव की मुद्रा में रहे ! फिर इन्होने मुसलमानों को खदेड़ना शुरू किया ! दो लाख 50 हजार अरब मुसलमान यहूदी के दंगों के कारण भाग खड़े हुए और 14 मई 1948 को यहूदियों ने अपने स्वतन्त्र देश होने की घोषणा कर दी ! इसका नाम रखा गया “इसरायल” !

इसके ठीक दूसरे दिन चार अरब देशों ने संयुक्त रूप से “इसरायल” पर हमला कर दिया ! मिस्र, सीरिया, लेबनान, इराक की सेनाएँ इस हमले में शामिल थी ! सऊदी अरब ने भी सेना भेजी ! यमन ने युद्ध की घोषणा की पर सेना नहीं भेजी ! इस संयुक्त हमले को भी इजरायल ने न केवल झेल लिया; बल्कि इन सभी देशों को उनकी औकात बता दी !

इस युद्ध के दौरान यहूदियों ने 7,11,000 बचे हुये अरब मुसलमानों को अपने देश से मारकर खदेड़ दिया ! इस तरह यह युद्ध यहूदियों के लिए बड़ा लाभदायक रहा ! उन्हें सारी शत्रु सम्पत्ति (इन अरबों की छोड़ी) मिल गयी ! तबसे लेकर अब तक इसरायल अरब देशों से निरन्तर लड़ रहा है ! एक से एक भारी हमले, संयुक्त हमले अरब देशों ने किये, पर वे इसरायलियों का कुछ नहीं कर पाये !

जबकि छोटा देश होते हुए भी इसरायल विविधताओं से भरा है ! उसके देश में हरा-भरा क्षेत्र है, तो कहीं सूखी पहाड़ियाँ भी हैं ! समुद्री तट हैं तो बर्फीली हवाओं के क्षेत्र के साथ एक हिस्सा रेगिस्तानी भी है ! आबादी बहुत जुझारू है ! देश की खातिर कुछ भी करने को तैयार राहते हैं ! एक आदमी कई काम करता है ताकि देश बढे ! इतनी लड़ाइयों के बाद भी हर क्षेत्र में सम्मान है, समृद्धि है ! गरीबी बिल्कुल नहीं ! लोकतन्त्र है ! प्रधानमन्त्री सर्वोच्च है ! भारत की तरह राष्ट्रपति रबर स्टैम्प ही है ! पर दलों को संसद में वोट के अनुपात में प्रतिनिधित्व मिलता है ! रक्षा क्षेत्र में बहुत ताकतवर है ! ऐसे देश इसरायल की जनता और राजनीतिक नेतृत्व का एक ही मिशन रहता है, “पहले हमारा देश फिर हम” ! उनसे शिक्षा लेकर हमें भी अपने को मजबूत बनाना चाहिये और आतंकियों को देश से खदेड़ देना चाहिये !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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