इन्द्रा गाँधी को एक बार नहीं दो बार निकला गया था कांग्रेस से ! : Yogesh Mishra

वैसे तो 1857 की क्रांति के बाद हिंदुस्तान के जनमानस को राजनीतिक मंच देने के लिये 28 दिसंबर 1885 में एक अंग्रेज अफसर ए. ओ. ह्यूम ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस इसकी स्थापना की थी ! जो थियिसोफिकल सोसाइटी के प्रमुख सदस्य थे तथा उनके साथ दादा भाई नौरोजी और दिनशा वाचा भी इसमें शामिल हुये थे ! जो भारत में लोकतंत्र की शुरुआत थी ! कहने को तो यह कांग्रेस देश की आजादी के लिये लड़ रही थी लेकिन सच्चाई यह थी कि इस पार्टी के सदस्य अंग्रेजों के प्रतिनिधि के रूप में देश के लोगों के बीच उन्हें समझा-बुझाकर अंग्रेजों के विरुद्ध नियंत्रित किये रहने का कार्य कर रहे थे !

किन्तु द्वितीय विश्व युद्ध में जब एडोल्फ हिटलर ने ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था को ध्वस्त कर दिया तब भारत में शासन करने का सामर्थ्य अंग्रेजों का खत्म हो गया उस स्थिति में मजबूरी वर्ष अंग्रेजों ने एक गुप्त समझौता उस समय भारत के तत्कालीन कांग्रेसी नेताओं के साथ किया और भारत को औपनिवेशिक दर्जे की आजादी तथाकथित 15 अगस्त 1947 को दे दी इसके बाद 26 जनवरी 1950 को भारत में अंग्रेजों की मंशा के अनुरूप बनाया गया भारत का संविधान भारत में लागू हुआ और कांग्रेस ने आजादी के बाद पहली बार 1951-52 के पहले लोकसभा चुनावों में चुनाव लड़ा !

यह चुनाव तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की अगुवाई में कांग्रेस ने लड़ा गया था ! इसमें कांग्रेस का चुनाव चिंह दो बैलों की जोड़ी थी ! कांग्रेस ने तब यह चुनाव चिंह किसानों और ग्रामीण जनता को ध्यान में रखकर लिया था, क्योंकि भारत एक कृषि प्रधान देश था और उस समय बैलों के जरियह इन वोटरों को नई संवैधानिक लोकतांत्रिक व्यवस्था से जोड़ा जा सकता था !

कालांतर में 27 मई 1964 को नई दिल्ली मैं जवाहरलाल नेहरु की मृत्यु हो गई तब अस्थाई रूप से गुलजारी लाल नंदा को भारत का प्रधानमंत्री बनाया गया इसके बाद लाल बहादुर शास्त्री भारत के प्रधानमंत्री रहे किन डेढ़ वर्ष के अल्पकाल के उपरांत ही उनकी ताशकंद में हत्या हो गई और पुणे गुलजारी लाल नंदा को प्रधानमंत्री बना दिया गया फिर लोकसभा के चुनाव हुए जिसमें कांग्रेस के मुख्य प्रतिनिधि के रूप में श्रीमती इंदिरा गांधी जो कि जवाहरलाल नेहरु की बेटी थी उनके नेतृत्व में चुनाव लड़ा और जीत आ गया परिणाम स्वरूप 24 जनवरी 1966 को श्रीमती इंदिरा गांधी भारत की प्रधानमंत्री बनी !

लेकिन श्रीमती इंदिरा गांधी के कार्य करने का तरीका एकदम अनूठा था जोकि कांग्रेश के अन्य वरिष्ठ नेताओं को पसंद नहीं आया उस समय मूल कांग्रेस की अगुवाई कामराज और मोरारजी देसाई कर रहे थे ! अतः श्रीमती इंदिरा गांधी पर अनुशासनहीनता का आरोप लगाते हुये ! इन्हें 1969 में कांग्रेस पार्टी से निष्कासित कर दिया गया ! पार्टी टूटने के साथ पार्टी के लोगो पर कब्जे को लेकर लड़ाई शुरू हुई ! कांग्रेस (ओ) यानि कांग्रेस ओरिजनल और कांग्रेस (आर) दोनों बैलों की जोड़ी के चुनाव चिंह पर अपना दावा जता रहे थे !

जब यह मामला भारतीय चुनाव आयोग के पास पहुंचा तो उसने बैलों की जोड़ी का कांग्रेस का सिंबल कांग्रेस (ओ) को दिया ! ऐसे में इंदिरा ने अपनी कांग्रेस के लिये गाय-बछड़ा का चुनाव चिन्ह लिया ! हालांकि इंदिरा ने यह चुनाव चिन्ह लेने से पहले इस पर काफी सोच विचार किया !

1971 से लेकर 1977 के चुनावों तक कांग्रेस ने इसी चुनाव चिंह से चुनाव लड़ा लेकिन हालात कुछ ऐसे पैदा हुए कि फिर कांग्रेस के टूटने की स्थिति आ गई ! 1977 के चुनावों में इंदिरा गांधी की बुरी शिकस्त के बाद कांग्रेस के उनके बहुत से सहयोगियों को लगा कि इंदिरा अब खत्म हो चुकी है ! लिहाजा कांग्रेस में फिर इंदिरा गांधी को लेकर असंतोष की स्थिति थी ! ब्रह्मानंद रेड्डी और देवराज अर्स समेत बहुत से कांग्रेस चाहते थे कि इंदिरा को किनारे कर दिया जाये !

ऐसे में जनवरी 1978 में इंदिरा को फिर कांग्रेस से निकाल दिया गया ! फिर उन्होंने नई पार्टी बनाई ! इसे उन्होंने कांग्रेस (आई) का नाम दिया ! उन्होंने इसे असली कांग्रेस बतलाया ! इसका असर राष्ट्रीय राजनीति से लेकर राज्यों की राजनीति तक पड़ा ! हर जगह कांग्रेस दो हिस्सों में टूट गई ! अबकी बार इंदिरा गांधी ने चुनाव आयोग से नये चुनाव चिन्ह की मांग की ! गाय-बछड़े का चुनाव चिन्ह देशभर में कांग्रेस के लिए नकारात्मक चुनाव चिन्ह के रूप में पहचान बन गया था ! देशभऱ में लोग गाय को इंदिरा और बछड़े को संजय गांधी से जोड़कर देख रहे थे ! जनसंघी इस चुनाव चिन्ह के जरिये मां-बेटे पर लगातार हमला कर रहे थे !

माना जा रहा था कि इंदिरा खुद अब इस चुनाव चिंह से छुटकारा चाह रहीं थीं ! जब उन्होंने कांग्रेस को 1978 में तोड़ा तो चुनाव आयोग ने इस सिंबल को फ्रीज कर दिया ! तब कांग्रेस आई को चुनाव चिन्ह पंजा मिला ! हालांकि इस समय भी ज्यादातर सांसदों का समर्थन इंदिरा के साथ थे !

वैसे आज तक कांग्रेस पार्टी 70 से अधिक बार टूटी चुकी है ! किन्तु इंदिरा गांधी को जब-जब कांग्रेस से निष्कासित किया गया ! तब तब उनके साथ पुराने वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं का बहुत बड़ा समूह कांग्रेस छोड़कर बाहर आया ! जिस कारण से इंदिरा गांधी का वर्चस्व हमेशा भारत की राजनीति में बना रहा ! यह उनकी नीति कुशलता और व्यक्तिगत संबंधों का परिणाम था कि भारत की राजनीति में कांग्रेस ने इंदिरा गांधी को मिटाने की एक नहीं दो बार कोशिश की लेकिन दोनों ही बार उन्हें पूर्ण सफलता ही हाथ लगी !

यही इंदिरा गांधी का व्यक्तित्व है ! जिस वजह से मैं उन्हें एक कुशल राजनीतिज्ञ के रूप में पसंद करता हूं ! वरना आजकल तो लोग राजनीति के नाम पर दूसरे सामाजिक संगठनों के कंधों पर टिके खड़े हैं और जिन लोगों को राजनीतिक दलों से निष्कासित कर दिया जाता है ! उनका तो वजूद ही खत्म हो जाता है !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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