मेरा यह लेख समर्पित है श्री अब्दुल कलाम और सोली सोराबजी जैसे राष्ट्रप्रेमी बुद्धिजीवियों को ! किंतु ऐसे लोग हमारे देश में बहुत कम संख्या में हैं और इसका मूल कारण है ! देश की राष्ट्रद्रोही शिक्षा व्यवस्था !
“बुद्धिजीवी” से तत्पर जो डिग्री प्राप्त करके बुद्धि से जीवक चलते हैं (शाररिक श्रम से नहीं) ! यदि सभी तथाकथित “बुद्धिजीवियों” का वर्गीकरण किया जाए तो हमारे देश में तीन तरह के बुद्धिजीवी हैं ! एक वह जो “वेतन भोगी” हैं ! दूसरे वह जो अपना “निजी व्यवसाय” करते हैं और तीसरे वह जो इस देश की “राजनीति को सीधा-सीधा प्रभावित करते हैं” !
आइए हम सबसे पहले चर्चा करते हैं “वेतनभोगी बुद्धिजीवियों” की ! वेतनभोगी बुद्धिजीवी अपनी सारी बौद्धिक संपदा को बस सिर्फ अपने महीने के वेतन और लोन की किस्त तक ही प्रयोग करना चाहते हैं ! इसके अतिरिक्त यह लोग राष्ट्रहित या राष्ट्र चर्चा को ज्यादातर बकवास व समय की बर्बादी मानते हैं और जो इस पर चर्चा करते भी हैं वह राष्ट्रहित के लिए किसी भी तरह का कोई भी त्याग करने को तैयार नहीं हैं ! ऐसे वेतनभोगी बुद्धिजीवी अपनी सारी बौद्धिक संपदा का उपयोग वेतन के अतिरिक्त कानूनी या गैर कानूनी तरीके से और क्या कमाया जा सकता है इस पर करते हैं ! यह बुद्धिजीवी जिस किसी भी स्थान पर कार्य करते हैं वहां पर भी बस सिर्फ उतना ही कार्य करना चाहते हैं जिससे इनको प्राप्त होने वाले “मासिक वेतन” में कोई अवरोध पैदा न हो !
इन्हीं बुद्धिजीवियों में एक बहुत बड़ा वर्ग वह भी है जो भारतीय संसाधनों पर आश्रित होकर भारत के अंदर शिक्षा तो प्राप्त करते हैं ! लेकिन जब राष्ट्र को कुछ देने लायक बनते हैं तो देश छोड़ कर विदेशों में नौकरी करने लगते हैं और विदेशों में बड़े-बड़े मकान और गाड़ी खरीदकर भारतीयों को अपनी काबिलियत का प्रदर्शन करते हैं किंतु उनसे जब राष्ट्रहित में किसी कार्य को करने का आग्रह किया जाता है तो वह अपनी व्यस्तता का बहाना बना देते हैं ! इन व्यर्थ के आडंबरियों को देखा जाए तो ऐसे विदेशों में नौकरी करने वाले बुद्धिजीवियों के माता-पिता अपनी सुरक्षा और संवेदना के लिए हिंदुस्तान में तड़पते मिलते हैं ! ऐसे राष्ट्रघाती बुद्धिजीवी सम्मान के योग्य नहीं हैं !
दूसरा अपना “निजी व्यवसाय” करने वाले बुद्धिजीवी इसमें सर्वाधिक मात्रा अधिवक्ता और डॉक्टरों की है ! यह तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग अपने पूरे जीवन में जो भी शिक्षा प्राप्त करते हैं उसका उपयोग व्यवसाय का लाइसेंस प्राप्त कर लेने के बाद हिंदुस्तान के आम आवाम को गुमराह करके लूटने के लिए ही करते हैं ! बड़े बड़े अस्पताल के अंदर बड़े-बड़े डॉक्टर आज हिंदुस्तान के निरीह मरीजों को गुमराह करके उनका आर्थिक शोषण ही कर रहे हैं !
इसी तरह अधिवक्ता भी न्याय व्यवस्था का हवाला देकर न्याय के नाम पर अपने मुवकिल को भटका रहे हैं और उनका आर्थिक शोषण कर रहे हैं ! प्रायः यह भी देखा जाता है कि धन और यश की कामना में इस तरह के अधिवक्ता ऐसे लोगों के मुकदमों की पैरवी नि:शुल्क करना शुरू कर देते हैं जो राष्ट्र में आतंक फैलाते हैं या राष्ट्र में समस्या पैदा करते हैं !
समाज में तीसरा बुद्धिजीवी वर्ग है राजनेताओं का ! जो अपनी राजनीतिक महत्वकांक्षा की पूर्ति के लिए राष्ट्र विरोधी शक्तियों के साथ खड़े हो जाते हैं ! “हिंदुस्तान का टुकड़ा-टुकड़ा” करने वालों का मनोबल बढ़ाने के लिए उनके समर्थन में जनसभायें करते हैं ! भारत की मूल “सनातन सभ्यता और संस्कृति” को गाली देते हुये, उसके विरुद्ध जाकर विदेशों से आए आक्रमणकारी, षड्यंत्रकारी, डकैतों और लुटेरों को महान बताते हुये उनके वंशजों की पैरवी करते हैं ! इस सब के पीछे एकमात्र उद्देश्य है किसी भी तरह देश के गद्दारों के समर्थन से सत्ता को प्राप्त कर लेना और जब ऐसे लोग सत्ता प्राप्त कर लेते हैं तो भारतीय संसाधनों का दुरुपयोग कर भारत की स्वतंत्रता और अस्तित्व को अंतरराष्ट्रीय संविदा विधान के तहत विदेशों में गिरवी रख देते हैं !
लेकिन परेशान होने की कोई बात नहीं भगवान श्री कृष्ण ने कहा है की “जब-जब धर्म की हानि होगी तब तक साधुओं की रक्षा और दुष्टों का संहार करने के लिए मैं आऊंगा” ! भगवान श्री कृष्ण के इस आश्वासन पर विश्वास करके हम मुट्ठी भर राष्ट्रप्रेमी राष्ट्रभक्तों का यह कर्तव्य है कि वह राष्ट्र के हित में राष्ट्र के विरुद्ध कार्य करने वाले प्रत्येक व्यक्ति के विरुद्ध आवाज उठाएं चाहे वह सत्ता में कितनी भी ऊंचाई पर क्यों न हो ! यही हमारा राष्ट्रधर्म है और यही राष्ट्र के प्रति हमारा कर्तव्य ! चाहे हमारी आवाज सुनी जाये या न सुनी जाये !