भगवान के नाम पर होने वाले 6000 करोड़ से अधिक के व्यवसाय का परिचय बतलाने की जरूरत आज किसी को नहीं है !
भारत के अंदर 12 लाख से अधिक छोटे-बड़े मंदिर, गांव गांव में भगवा लपेटकर और टीका लगाकर कर्मकांड करने वाले पंडित, बड़े-बड़े मंचों पर बैठकर भगवान का गुणगान करने वाले कथा वाचक, तो भगवान के नाम से सीधा कमा ही रहे हैं !
साथ ही पूजा में प्रयोग किये जाने वाली सामग्रीयों का उत्पादन, संग्रह और विक्रय करने वाले लाखों लोग भी भगवान के नाम पर अपना व्यापार करके जीवन यापन कर रहे हैं !
कमोवेश अगर एक गणना की जाये तो पूरे देश में 50 लाख से अधिक लोग भगवान के नाम पर धंधा कर रहे हैं ! जिनसे लगभग 15 करोड़ लोगों का जीवन यापन हो रहा है !
अब यह बात अलग है कि इन भगवान के नाम पर धंधा करने वालों के मन में भगवान के प्रति कोई श्रद्धा नहीं है, लेकिन जो भक्त श्रद्धा के साथ भगवान का पूजन करते हैं, वही इन श्रद्धा विहीन धर्म व्यवसायियों का पोषण भी करते हैं !
अब तो धर्म के नाम पर लूट के इस कारोबार में सरकार की भी हिस्सेदारी तय हो गई है ! आज न जाने कितने मंदिर, सरकार के सीधे नियंत्रण में हैं ! जहां पर श्रद्धालुओं द्वारा चढ़ाये जाने वाले धन का बहुत बड़ा हिस्सा सरकार अपने नियंत्रण में ले लेती है और उसका श्रद्धालुओं को कोई हिसाब भी नहीं देती है !
इस तरह धर्म प्रपंची कथावाचकों से लेकर महन्त, पुजारी, मंदिर के सेवक, मंदिर के बाहर दुकान लगाने वाले दुकानदार आदि सभी मिलकर आज भगवान के नाम पर व्यवसाय करने पर लगे हुये हैं !
पर इनमें से किसी ने कभी भी न तो भगवान को अनुभूत किया है और न ही इनकी भगवान के प्रति कोई श्रद्धा है ! यह लोग समाज की परंपरागत व्यवस्था का लाभ उठाकर भगवान के नाम पर समाज का शोषण करते रहते हैं !
और मजे की बात यह है कि सार्वजनिक रूप से यह लोग यह मानने को भी तैयार नहीं है कि यह लोग भगवान के नाम पर विशुद्ध व्यवसाय कर रहे हैं ! इनका भगवान में कोई श्रृद्धा, आस्था, विश्वास नहीं है !!