क्या सारे सामाजिक सौहार्द की जिम्मेदारी मिडिल क्लास की ही है ! : Yogesh Mishra

आज देश कोरोना वायरस के झंझावात से देश गुजर रहा है ! हर व्यक्ति इससे बचने के लिये अपने घरों में छिपा बैठा है ! देश के सभी व्यवसायिक प्रतिष्ठान व कार्यालय आदि लॉक डाउन के कारण बंद हैं ! ऐसी स्थिति में जो लोग अपने घरों से दूर नौकरी, व्यापार, व्यवसाय आदि करने के लिये आये हुये थे ! वह एक महासंकट में फंस गये हैं ! यातायात के साधन बंद होने के कारण वह लोग अपने घर भी नहीं जा पा रहे हैं और कार्यालय तथा व्यवसायिक प्रतिष्ठानों के बंद होने के कारण उनके आय के स्रोत भी बंद हो गये हैं !

ऐसी स्थिति में समाज के मिडिल क्लास वर्ग ने संकट में फंसे हुये व्यक्तियों के लिये भोजन आदि की व्यवस्था का निर्णय लिया ! मेरे पास भी मेरे एक मित्र का फोन आया और उन्होंने आग्रह किया कि आप एक टीन तेल का सहयोग कीजिये ! अत: मैंने भी निकट बनिये से बात की ! संयोग से उसके पास एक टीन तेल उपलब्ध था ! अतः मैं उसे लेकर बगल के मंदिर में चला गया !

वहां पर बहुत सारे लोगों ने तरह-तरह का सहयोग कर रखा था ! भोजन बन रहा था और भोजन करने वाले लोगों के साथ प्रॉपर दूरी बनाकर उन्हें भोजन उपलब्ध करवाया जा रहा था ! तभी मेरी निगाह एक व्यक्ति पर पड़ी जो अपने कंधे पर एक झोला लटकाये हुये थे ! उसके झूले में नल ठीक करने का रिन्च था ! जिसे देखकर मैंने अनुमान लगाया कि संभवत यह व्यक्ति प्लंबर है ! क्योंकि मेरे घर में किचन का नल 5 दिन पहले ही खराब हो गया था ! उसमें बूंद बूंद पानी गिर रहा है !

अतः मैंने उस प्लंबर से आग्रह किया कि भैया भोजन करने के बाद बगल वाली बिल्डिंग में मेरा नल खराब है आकर इसको ठीक कर देना ! उसने पलट के तत्काल मुझे जवाब दिया 500 रुपये लगेंगे ! मैंने कहा कि यह तो 50 रुपये का काम है ! तो उसने कहा आपको मालूम नहीं पूरे देश में बंदी है ! अगर नल ठीक कराना है तो 500 रुपये ही देने पड़ेंगे ! मैंने उससे पुनः कहा कि भाई इसमें एक 50 रुपये का आधा ही तो लगता है तो उसने मुझे जवाब दिया तो अपने हाथ से खरीद के लगा लीजिये ! आपको मना किसने किया है !

इस बात से मैं बहुत दुखी हुआ ! मैंने उससे कहा कि क्या तुम्हारे पास अदधा उपलब्ध है ! उसने कहा हां है तो हमने कहा मुझे दे दो ! मैं अपने घर में खुद लगा लूंगा ! उस पर वह 50 रुपये के अदधे का लिये 200 मांगने लगा और मोलभाव करने पर 1 रुपये भी कम करने को तैयार नहीं था ! झक मार कर मुझे उसे 200 रुपये देने पड़े !

और जब उसने अदधा देने के लिये अपने बैग को खोला तो अदधा ढूंढने के लिये दो दारू की छोटी-छोटी बोतल निकाल कर बाहर रखी और मुझसे 200 रुपये लेकर अदधा दे दिया ! हमने कहा कि दारू खरीदने के लिये तुम्हारे पास पैसा हैं ! लेकिन रोटी खाने के लिये पैसा नहीं हैं ! तब उसने मुझे जवाब दिया कि जब हराम की लोग खिला रहे हैं ! तो हम पैसे से खरीद के क्यों खाया जाये !

फिर मैंने पूछा यह दारू कहां से मिली ! तो उसने जवाब दिया दुकान से खरीदी है ! पैसा लेकर जाओ आपको भी मिल जायेगी ! मैं चुपचाप उसे 200 रुपये दे देकर अदधा लेकर और वापस घर आ गया !

घर पर रिन्च उपलब्ध थी ! अत: मैंने नल का अदधा बदलकर उसे ठीक कर लिया ! किंतु उस व्यक्ति का व्यवहार और बातचीत ने मुझे यह सोचने के लिये बाध्य कर दिया कि समाज का जो संपन्न वर्ग है वह अपनी संपन्नता में ही मस्त है और समाज का जो निचला वर्ग है वह किसी भी स्थिति में समाज के साथ सामंजस्य बिठाने के लिये तैयार नहीं है ! ऐसी स्थिति में क्या समाज में सौहार्द का सारा ठेका बस सिर्फ हम मिडिल क्लास लोगों ने ही ले रखा है !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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