कर्म, भाग्य और ज्योतिष का आपसी सम्बन्ध ! : Yogesh Mishra

कर्म, मनुष्य का परमधर्म है ! पूरी गीता ही निष्काम कर्म योग का ही शास्त्र है ! कर्म ही व्यक्ति को बंधन में बांधता है ! व्यक्ति का जन्म और मरण, उसके कर्मों के अनुसार होता है ! व्यक्ति का पुनर्जन्म कब, कहां, किस योनि में, किस कुल में होगा का निर्धारण भी कर्म ही करता है ! इसलिये यह मनुष्य के आवागमन सुख-दुख, जय पराजय, हानि-लाभ, यश-अपयश आदि सभी का मूल कारण है !

जिसे श्रीमद् भगवत गीता में इस प्रकार कहा गया है !

न हि कश्चित्क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत् !
कार्यते ह्यवशः कर्म सर्वः प्रकृतिजैर्गुणैः ॥ अध्याय 3, श्लोक 5

अर्थात, बिना ज्ञान के केवल कर्म संन्यास मात्र से मनुष्य निष्कर्मतारूप सिद्धि को क्यों नहीं पाता इसका कारण जानने की इच्छा होने पर कहते हैं कोई भी मनुष्य कभी क्षण मात्र भी कर्म कियह बिना नहीं रहता क्योंकि सभी प्राणी प्रकृति से उत्पन्न सत्त्व, रज और तम इन तीन गुणों द्वारा परवश हुए अवश्य ही कर्मों में प्रवृत्त कर दियह जाते हैं ! यहाँ सभी प्राणी के साथ अज्ञानी शब्द और जोड़ना चाहिये अर्थात् सभी अज्ञानी प्राणी ऐसे पढ़ना चाहिये क्योंकि आगे जो गुणों से विचलित नहीं किया जा सकता इस कथन से ज्ञानियों को अलग किया है !

अतः अज्ञानियों के लिये ही कर्मयोग है, ज्ञानियोंके लिये नहीं ! क्योंकि जो गुणों द्वारा विचलित नहीं कियह जा सकते उन ज्ञानियों में स्वतः क्रिया का अभाव होने से उनके लिये कर्मयोग सम्भव नहीं है ! वेद, उपनिषद और गीता, सभी कर्म को कर्तव्य मानते हुए इसके महत्व को बताते हैं !

वेदों में ब्राह्मण, क्षत्रिय, शुद्र और वैश्य को कर्म के आधार पर बांटा गया है, आप बताए गए माध्यम से सही-सही कर्म करते रहें तब आपके वही कर्म, धर्म बन जायेंगे और आप धार्मिक कहलायेंगे !

कर्म ही पुरुषार्थ है, धर्मशास्त्र और नीतिशास्त्रों में कहा गया है कि कर्म के बगैर जीव और संसार की कोई गति नहीं है ! इसीलिये प्रकृति व्यवस्था के तहत कोई भी जीव संसार में कर्म किये बिना नहीं रह सकता है !

हमारे धर्मशास्त्रों में मुख्यतः 6 प्रकार के कर्मों का वर्णन मिलता है !

नित्य कर्म (दैनिक कार्य)
नैमित्य कर्म (नियमशील कार्य)
काम्य कर्म (किसी मकसद से किया हुआ कार्य)
निश्काम्य कर्म (बिना किसी स्वार्थ के किया हुआ कार्य)
संचित कर्म (प्रारब्ध से सहेजे हुए कर्म) और
निषिद्ध कर्म (नहीं करने योग्य कर्म) !

बृहदारण्यक उपनिषद का पवमान मंत्र (1.3.28) कहता है:

ॐ असतो मा सद्गमय !
तमसो मा ज्योतिर्गमय !
मृत्योर्मामृतं गमय ॥
ॐ शान्ति शान्ति शान्तिः ॥

अर्थात: हे ईश्वर! मुझे मेरे कर्मों के माध्यम से असत्य से सत्य की ओर ले चलो ! मुझे अन्धकार से प्रकाश की ओर ले चलो ! मुझे मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो !

अब यह कर्म कैसे होते है या कौन से उपर्युक्त कर्म हैं इसके विषय में गहराई से न जाते हुए अब बात करते हैं भाग्य की, भाग्य क्या है ?

भाग्य या प्रारब्ध हमारे कर्मों के फल होते हैं ! ईश्वर किसी को कभी कोई दण्ड या पुरस्कार नहीं देता, ईश्वर की व्यवस्थाएं हैं, जो नियमित और निरंतर चलते हुए भी कभी एक दूसरे के काम में हस्तक्षेप नहीं करतीं ! ईश्वर की स्वचालित व्यवस्थाओं में उन्होंने इस के लिए हमारे कर्मों को ही आधार बनाया है ! जैसे कर्म वैसे ही उनके फल, जो जन्म-पुनर्जन्म चलते रहते हैं !

अब ज्योतिष पर चर्चा करते हैं !

आज का विज्ञान अभी इन बातों से कोसों दूर है लेकिन ईश्वरीय विधान पूर्णतः वैज्ञानिक है ! एक सेकेंड के हजारवें हिस्से की गणना उपलब्ध है ! चूंकि आपके कर्म आपके भाग्य का निर्धारण करते हैं तो उनको सही ढंग से प्रभावी बनाने के लिए ग्रहों, नक्षत्रों आदि की स्थिति और उनकी गति भी उन्ही के अनुरूप बनती है, जिससे हमें उनका फल मिल सके ! ग्रह हमारे कर्मों का प्रतिनिधित्व करते हैं ! उनकी गति यह निर्धारित करती है कि कब किस समय की उर्जा हमारे लिए लाभदायक है या हानिकारक है ! समय की एक निश्चित्त प्रवृति होंने के कारण एक कुशल ज्योतिषी उसकी ताल को पहचान कर भूत, वर्तमान और भविष्य में होने वाली घटनाओं का विश्लेषण कर सकता है !

एक ही ग्रह अपने पांच स्वरूपों को प्रदर्शित करता है ! अपने निम्नतम स्वरुप में अपने अशुभ स्वभाव/राक्षस प्रवृत्ति को दर्शाते हैं ! अपने निम्न स्वरुप में अस्थिर और स्वेच्छाचारी स्वभाव को बताते हैं ! अपने अच्छे स्वरुप में मन की अच्छी प्रवृत्तियों, ज्ञान, बुद्धि और अच्छी रुचियों के विषय में बताते हैं ! अपनी उच्च स्थिति में दिव्य गुणों को प्रदर्शित करते हैं, और उच्चतम स्थिति में चेतना को परम सत्य से अवगत कराते हैं !

उदहारण के लिए मंगल ग्रह साधारण रूप में लाल रंग की ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करता है ! अपनी निम्नतम स्थिति में वह अत्याधिक उपद्रवी बनाता है ! निम्न स्थिति में व्यर्थ के झगड़े कराता है ! अपनी सही स्थिति में यही मंगल ऐसी शक्ति प्रदान करता है कि निर्माण की असंभव कार्य भी संभव बना देता है !

अब इसका अर्थ हुआ कि वे हमारे कर्म के फल ही हैं जो भाग्य कहलाते हैं और उनको सही रूप से क्रियान्वित करने के लिए जो सटीक गणना या विज्ञान है वही ज्योतिष है !

आज ज्योतिषी तरह तरह के उपाय बताते हैं कि ऐसा करने से आपका भाग्य बदल जायेगा ! जबकि वास्तविकता यह है कि उन्हें कभी बदला नहीं जा सकता केवल अच्छे के प्रभाव को बढ़ा कर बुरे के असर को कम किया जा सकता है ! लेकिन ऐसा कोई नही बताता कि अब तो अच्छे कर्म कर लें क्योंकि यह तो एक सतत और सर्वकालिक प्रक्रिया है, जिस प्रकार अभी आप पिछले कर्म का सुख-दुख भोग रहें हैं, वही आगे भी होना है अतः कर्म का ध्यान रखें ! यही सभी बंधन और मोक्ष का साधन है

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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